ध्यातब्य हो कि आदिवासी भाषाओं में से कुँड़ुख़ भाषा की अपनी विशिष्ट शैली एवं विशेषताएँ हैं। इस विशिष्ट पहचान पर आधारित इस भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि विकसित हुर्इ है। यह तथ्य है कि कुँड़ुख़ भाषा में कर्इ ध्वनियाँ है जिसे दिखलाने के लिए रोमन एवं देवनागरी लिपि में लिपि चिन्ह नहीं हैं। रोमन लिपि के माध्यम से अन्य भाषाओं को लिखने के लिए 2nd Oriental Congress, JENEVA, 1900 AD में किये गये मानकीकरण के आधार इस क्षेत्र की भाषाओं पर कर्इ साहित्य रचे गये। परन्तु, देवनागरी लिपि में आदिवासी भाषाओं को लिखने के लिए हिन्दी प्रचारिणी सभा या देवनागरी प्रचारिणी सभा आदि द्वारा किसी तरह का मानकीकरण किया गया हो, ऐसा इतिहास नहीं मिलता है। जिससे, जो जैसा समझ पाये, वे वैसा ही लिख-पढ़ रहे हैं। ..विस्तार से नीचे पढ़ें पीडीएफ में..
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