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सकलराम तिरकी को बंगाल कैसे मिला 1500 एकड़ का खतियानी जमींदारी?

वर्तमान लोहरदगा जिला‚ कुड़ू थाना क्षेत्र के जिंगरी जोंजरो गांव के रहने वाला सकलराम तिरकी‚ एक उरांव परिवार में जन्मा् एवं पला–बढ़ा तथा एक मजदूर किसान का बेटा को जब अपने गांव–परिवार की गरीबी में अपने गांव से दूर जाने के लिए विवस होना पड़ा तो वह रास्ता  ढूँढ़ते हुए बंगाल के पहाड़ी क्षेत्र अर्थात वर्तमान दार्जिलिंग के तराई में मजदूर बनकर पहूँचा। ब्रिटिश भारत में 1840 से 1850 के दौर में बंगाल एवं असम में चाय की खेती के लिए रांची– लोहरदगा आदि जगहों से हजारों की संख्याग में मजदूरों को ले जाया गया। यह सिलसिला कमोवेश चलता रहा और 1890 में कुछ अधिक तेजी आयी। स्वच० सकलराम तिरकी के तीसरी पीढ़ी के वंशज बतलाते हैं कि उनके दादा जी का देहांत 1951 में हुआ। वे अपने पीछे दो पत्नि‚ दो+एक (तीन बेटा) एवं चार बेटि‍यों का भरापुरा परिवार तथा 1500 एकड़ का खतियानी जंमीदारी छोड़ गए। वर्तमान में स्वु० सकलराम की तीसरी पीढ़ी उस संपत्ति पर जीवन यापन कर रही है। पर उनकी 1500 एकड़ का खतियानी जमींदारी अब मात्र 15 एकड़ में सिमट कर रह गई। स्वथ० सकलराम तिरकी के छोटे बेटे स्व ० ईश्वर चन्द्र  तिरकी‚ कांग्रेस पाटी से विधायक थे और प० बंगाल सरकार में मंत्री के पद पर भी रहे। स्वन० ईश्व र चन्द्र  तिरकी के तीन बेटों में से बड़े बेटे  का नाम श्री सुनील चन्द्र  तिरकी‚ उम्र 74 वर्ष‚ जो आयल इंडिया में कार्यरत थे और सेवानिवृति‍ के बाद कांग्रेस आई से दो बार विधायक हुए तथा प० बंगाल सरकार में मंत्री भी रहे हैं। मझले बेटे का नाम श्री विजॉय तिरकी‚ उम्र 70 वर्ष‚ जो कृषक हैं। छोटे बेटे का नाम श्री एलि रविन्द्रे तिरकी‚ 66 वर्ष‚ जो भारतीय रेलवे में कार्यरत थे एवं सेवानिवृत हो चुके हैं। 


स्व० सकलराम तिरकी एक मेहनती कृषक‚ मजदूर‚ सेवक तथा कुशल planter (पौधा लगाने वाले) थे। ब्रिटिश भारत में आजादी के पूर्व‚ जंगलों का कूप  Deforestation (कूप कटाई) हुआ तथा Reforestation (पौधा रोपन) भी कराया गया। इन कायों में स्व ० सकलराम तिरकी अपनी लगन और मेहनत से अंगरेजों के चहेता बन गये और Deforestation तथा Reforestation के लिए मजदूरों को रांची–लोहरदगा से लाना एवं ले जाने का कार्य करते थे तथा मानव बल का प्रबंधन करते–करते अपने कार्य क्षेत्र का कृषक सरदार बन गये और अंगरेजी सरकार में स्वर० सकलराम तिरकी उर्फ़ स्व ० सकलराम सरदार को 1500 एकड़ का खतियानी जमींदार बना दिये गये। स्वे० सकलराम के वंशज बतलाते हैं कि उनके दादा जी को तीन स्थान 1. पटाराम जोत 2. भीमराम जोत तथा 3. भटागाछ जोत का जमींदारी मिला था।


स्व ० सकलराम तिरकी उर्फ़ स्व० सकलराम सरदार की दो पत्नियाँ थीं। उनकी पहली पत्नि से दो बेटियाँ हुईं और फिर से जब गर्भवती होने में कठिनाई होने लगी तब उनकी पत्नि ने ही कहा कि बेटा के लिए आप दूसरी पत्नि ले आएँ। परिवार वालों के कहने पर वे एक विधवा से सगई किये जिसका पहले से एक बेटा था। बाद में दोनों पत्नि के साथ रहते हुए सगई वाली पत्नि से एक बेटा हुआ तथा कुछ ही दिन बाद पहली पत्नि (बिहउ वाली से) से भी एक बेटा एवं एक बेटी हुआ। इस तरह स्वन० सकलराम तिरकी के अपने दो बेटे एवं एक पोस बेटा तथा तीन बेटियां थी। इस तरह वर्तमान लोहरदगा जिला‚ कुड़ू थाना‚ जिंगो जांजरो गांव का एक गरीब किसान युवक सकलराम तिरकी अपनी लगन और मेहनत से सकलराम सरदार बनकर 1500 एकड़ मलकियत का जमींदार बना गया। स्व० सकलराम तिरकी के वशजों का वर्तमान पता इस प्रकार है –
पता – भीमराम जोत (रथ खोला)
पोस्टम – नक्स लवाड़ी‚ 
जिला – दार्जिलिंग‚ प० बंगाल।

 

Dr Narayan Oraon
आलेख –
डॉ० नारायण उराँव
सैन्दा ‚ सिसई‚ गुमला
झारखण्ड

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