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कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि (लिपि) की स्थापना में भाषा विज्ञान के तथ्य

झारखण्ड सरकार द्वारा 06 जून 2003 को मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (Medium of  instruction of mother tongue) घोषित किया गया है तथा 18 सितम्बर 2003 को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोङ सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया। सरकार के इस निर्णय के बाद जैक द्वारा वर्ष 2009 से मैट्रिक में कुँड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा तोलोंग सिकि में लिखने की अनुमति मिलने तक में कई भाषाविदों के मार्गदर्शन मिले। उनमें से निम्नांकित भाषाविदों के मंतब्य आधार स्तंभ हैं -

Dr Francis Ekka

1. डा. फ्रांसिस एक्काब‚ भाषाविद्
प्रोफेसर एवं निदेशक
सी.आई.आई.एल‚ मैसूर (भारत सरकार)
दिनांक : 28 जून 1996
दुनियाँ में कोई भी लिपि 100 प्रतिशत सही नहीं है तथा दुनियाँ की सभी लिपियाँ, समाज एवं संस्कृति पर आधारित हैं। मानव, सर्वप्रथम बोलना सीखा, उसके बाद लिखना एवं पढ़ना। वर्तमान परिवेश में आदिवासी समाज को भी अपनी भाषा-संस्कृति को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने हेतु सामाजिक सह सांस्कृतिक आधार वाली लिपि तैयार करनी होगी। नई लिपि में निम्न प्रकार के गुण होने चाहिए – 
(क) नई लिपि, आदिवासी समाज और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला हो।
(ख) नई लिपि, एक ध्वनि, एक संकेत के अन्तर्राष्ट्रीय ध्वनि विज्ञान के सिद्धांत के अनुरूप हो।
(ग) आदिवासी भाषा की सभी ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने वाला हो। 
(घ) नई लिपि में phoneme के लिए ध्वनि चिन्ह होने चाहिए, Allophones के नहीं। संयुक्तामक्षर के लिए अलग से ध्व्नि चिन्हा रखने की आवश्यnकता नहीं।    
(ङ) नई लिपि में अक्षर का नाम और ध्वनिमान में एक समान हो।
(च) International Phonetic Alphabet (IPA)  के सिद्धांत के अनुसार 6 मूल स्वर हेतु लिपि चिन्ह  रखे जाएँ। लम्बी  ध्विनि के लिए  colon चिन्हन का प्रयोग किया जाए।
(छ) नई लिपि में, लिखने और पढ़ने में समानता होनी चाहिए।
(ज) नई लिपि, लिखने और समझने में आसान तथा सरल हो।             
(झ) अक्षर सिखलाने का तरीका आसान से कठिन की ओर होना चाहिए। 
(ञ) नई लिपि, अपने भाषा परिवार के अनुरूप Sitting Script  समूह के होने चाहिए।
(ट) नई लिपि, वर्णात्मक लिपि हो तथा अधिक से अधिक लिपि चिन्ह का घुमाव
दायें से बायें होते हुए दायें की दिशा में बढ़ने वाला हो क्योंकि अधिकतर लोग दायें
हाथ से लिखने वाले होते हैं।

DR Ramdayal Munda

2. डा. रामदयाल मुण्डाक
प्रोफेसर एवं विभागाध्यसक्ष
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग
रांची विश्वगविद्यालय‚ रांची
दिनांक : 05 मई 1997 
एखन कर बेरा में आदिवासी मन के देश कर मुख्य धारा संगे जुड़के चाही‚ संगे-संगे आपन सांस्कृतिक विरासत के बचायक ले भी तेयारी करेक चाही। अब आदिवासी मन के हिन्दी आउर अंगरेजी विषय कर पढ़ाई संगे पुस्तैनी बिरासत के बचाय ले मातृभाषा में पढ़ेक-लिखेक भी आवश्यक होवी। ई पुस्तक में राष्ट्रीय एकता रूपी गुलदस्ता में आपन सांस्कृतिक धरोहर रूपी गुलैची आउर गेंदा फूल के चिन्हेक‚ चुनेक आउर जोगाएक कर काम डॉ‚ नारायण उराँव शुरू कइर हँय। इकर ले उनके आउर उनकर सउब संगी मन के बहुत-बहुत बधाई। नया लिपि में ई लेखे गुन होवेक चाही –
क) नया लिपि एक ध्वनि‚ एक संकेत कर अन्तर्राष्ट्रीय ध्वनि विज्ञान कर सिद्धांत लेखे होवेक चाही।
ख) आपन भाषा कर सउब मूल ध्वनि ले चिन्ह् होवेक चाही। संयुक्ता ध्वपनि ले अलग से लिपि चिन्हा ना होवे।
ग) अक्षर सिखाएक कर तरीका आसान से कठिन दने जाएक लेखे होवेक चाही।
घ) नया लिपि‚ आदिवासी समाज और संस्कृति कर प्रतिनिधित्व करेक चाही।
आदिवासी मने प्रकृति से सीख के आपन दैनिक जीवन में दायाँ से बायाँ होतहे
दायाँ काम करयना। इकर माने वर्तमान घड़ी कर विपरित दिशा में कर्मकांड
करयना‚ ई बात मने भी लिपि चिन्ह में दिखेक चाही।
ङ) नया लिपि में‚ अक्षर कर नाम आउर ध्व नि मान एके लेखे होवेक चाही।
च) तकनीकी विज्ञान कर अनुरूप चिनहाँ के राखल जाएक चाही। पढ़ेक आउर लिखेक में समानता होवेक चाही।
छ) कम से कम चिनहाँ से अधिक से अधिक ध्वनि कर प्रतिनिधित्व होवे चाही।
ज) भाषा विज्ञान में कहल जाएला कि छउवा मने‚ प वर्गीय शब्द से बोलेक शुरू
करयना‚ से ले समाज और सभ्यता कर विकास कर भी बात सामने आवेक चाही।

3.  डॉ0 भोलानाथ तिवारी की पुस्तक ‘‘भाषा विज्ञान‚ पृष्ठह– 469 – 471’’ में उद्धृत तथ्य‚ जिसमें IPA  आधारित वैज्ञानिक लिपि के गुण बतलायs गयs gSa। उक्त तथ्य तोलोंग सिकि वर्णमाला निर्धारण में मददगार हुई। पुस्तक में उद्धृत तथ्य इस प्रकार है -

Excerpt from Book of Bholanath Tiwari

वैज्ञानिक लिपि के गुण :- विश्व  की कोई भी लिपि सभी दृष्टियों से पूर्णतः वैज्ञानिक नहीं है‚ किन्तु पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि की की कल्पना की जा सकती है और उसके मुख्य गुण गिनाये जा सकते हैं – 
(1) वैज्ञानिक लिपि को वर्णात्मक होना चाहिए‚ आक्षरिक नहीं। अर्थात उसके लिपि-चिह्न भाषा में प्रयुक्त हर व्यंजन एवं हर स्वर के लिए अलग-अलग होने चाहिए। उल्लेख है कि नागरी में क ख ग आदि व्यंजन चिह्नों में व्यंजन तथा स्वर मिले हुए हैं अर्थात वह वर्णात्मक नहीं है आक्षरिक हैं।
(2) लिपि में भाषा विशेष में प्रयुक्त हर ध्वनि (व्यंजन एवं स्वर) के लिए लिपि चिह्न होने चाहिए। न कम न अधिक। नागरी में दंतोष्ठ्य व के लिए लिपि चिह्न नहीं हैं।
(3) एक चिह्न से केवल एक ध्वनि व्यक्त होनी चाहिए‚ एकाधिक नहीं। नागरी में व - से कई ध्वनियाँ व्यक्त हैं।
(4) एक ध्वनि के लिए केवल एक लिपि चिह्न होनी चाहिए‚ एकाधिक नहीं। हिन्दी भाषा की दृष्टि से एक ही ध्वनि के लिए नागरी में रि - ऋ‚ ष - श चिह्न हैं।
(5) लेखन एवं लिपि चिह्नों को उसी क्रम में आना चाहिए जिस क्रम में उसका उच्चारण किया जाता  है।
(6) दो चिह्नों को एक पढ़े जाने का भ्रम नहीं होना चाहिए। नागरी में है‚ जैसे - घ-ध‚ म-भ‚ श-ष‚ ख-रव तथा रा (र् आ) - रा (राा का आधा) आदि में।
    इसके अतिरिक्त लेखन‚ टंकन तथा मुद्रण आदि की व्यवहारिक दृष्टि से भी कई बातें कही जा सकती है।

 

आलेख एवं संकलन -
डॉ. नारायण उराँव
शोध एवं अनुसंधान
(तोलोंङ सिकि‚ लिपि)

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