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आदिवासी परंपरानुगत अनुमान: औसत से कम वर्षा होने का मौसम पूर्वानुमान 2022

दिनांक 21.06.2022 दिन मंगलवार को उरागन डिप्पा, ग्राम : सैन्दा, थाना : सिसई, जिला : गुमला (झारखण्ड) में पारम्परिक ग्रामीण मौसम पूर्वानुमान कर्ता द्वारा वर्ष 2022 का मौसम पूर्वानुमान किया गया। पारम्परिक मौसम पूर्वानुमान कर्ता श्री गजेन्द्र उराँव, 65 वर्ष, ग्राम : सैन्दा, थाना : सिसई (गुमला) तथा श्री बुधराम उराँव, 66 वर्ष, ग्राम : सियांग, थाना : सिसई (गुमला) द्वारा अपने पारम्परिक ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर विगत 10 वर्षों से मौसम पूर्वानुमान किया जा रहा है, जो प्रशंसनीय एवं अतुलनीय है। 

वर्ष 2022 के मौसम पूर्वानुमान में ग्रामीण मौसम विज्ञानियों ने कहा कि - इस वर्ष, वर्षा की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। इस बार फसल के लिए औसत से कम वर्षा होने का अनुमान है। यह औसत से कम वर्षा क्षेत्र, गुमला जिला एवं इसके आस-पास का क्षेत्र है। इस बार अगहांत, मझहांत तथा पछहांत तीनों तरह का बरखा समय-काल में कमी होने की संभवना है।

पारम्परिक मौसम पूर्वानुमान के उराँव परम्परा-ज्ञान के अनुसार - बरखा (वर्षा) का समय-काल को तीन खण्ड में परिभाषित किया गया है। (1) अगहांत बरखा - पच्चो करम (बुढ़िया करम) से हरियनी पूजा तक अर्थात जेठ शुक्‍लपक्ष का प्रथम मंगलवार से आसाढ़ शुक्ल तृतीया तक। (2) मझहांत बरखा - हरियनी पूजा से डिण्डा करम (करम परब) तक अर्थात आसाढ़ शुक्ल पक्ष तृतीया से भादो शुक्ल एकादशी तक। (3) पछहांत बरखा - डिण्डा करम से सोहरई तक अर्थात भादो एकादशी से कार्तिक अमावश्‍या तक।

इन पारम्परिक मौसम विज्ञानियों द्वारा धान के बीज को देखकर पूर्वानुमान किया जाता है। इन दोनों मौसम विज्ञानियों का मानना है कि धान का बीज, प्रकृति में वातावरण के अनुकूल स्वयं को ढालता है और उसमें कई तरह की प्रतिक्रियाएँ होती है। इसे वे अपने लम्बे अनुभव से समझ पाते हैं। इन मौसम ज्ञानियों के विचारों तथा पुर्वानुमान के संबंध में सर्वप्रथम 2013 एवं 2014 में न्यूज विंग साप्ताहिक पत्रिका में लेख छपा। उसके बाद 2017 में त्रैमासिक पत्रिका बक्कहुही का 3रा अंक में लेख प्रकाशित हुआ और वर्ष 2021 में वेव न्यूज एवं पत्रिका https://kurukhtimes.com में दो बार प्रकाशित हो चुका है। 

इस तरह का अध्ययन अमेरिका के बरमिंघम विश्‍वविद्यालय में भी हुआ है जहाँ बीज के न्यूक्लियस का माइक्रोस्कोपिक अध्ययन करने के पश्‍चात मौसम पूर्वानुमान किये जाने का दावा है। पेड़-पौधों एवं बीज की प्राकृतिक स्थिति पर शोध कर रहे बरमिंघम विश्‍वविद्यालय के वैज्ञानिकों का नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ हैं, जिसमें कहा गया है - ‘‘पौधे करते हैं मौसम की भविष्यवाणी।’’ इस अध्ययन में बताया गया है कि पौधों में भी मनुष्य की तरह दिमाग होता हैं जो वर्तमान वातावरण को समझ कर मौसम में आनेवाले बदलाव की भविष्यवाणी करता है। इसी भविष्यवाणी पर बीज का अंकुरण और कलियों का प्रस्फुटन निर्भर करता है। शोध में कहा गया है कि पादप भ्रूण में कुछ कशिकाओं का समूह एक मानव मस्तिष्क की भाँति काम करता है। यह पौधे का निर्णय लेने वाला केन्द्र होता है। इसे एरेबिडोपसिस कहते हैं। (दिनांक 11.06.2017, हिन्दी दैनिक ‘प्रभात खबर’, पृष्ठ 13)।

वैसे पेशे से मैं एक चिकित्सक हूँ और अपने गांव-घर के अगल-बगल हो रही घटनाओं को विज्ञान परख तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रयास करता हूँ। इस प्रयास में मैं इन पारम्परिक मौसम विज्ञानी द्वय से विगत 10 वर्सों से जुड़ा हुआ र्हूँ। मेरा मानना है - क्या, यह देशी पारम्परिक ज्ञान, पर वृहत शोध हो सकता है? और यदि यह शोध कारगर हुआ तो मौसम पूर्वानुमान क्षेत्र में एक नया दृष्टिकोण स्थापित होगा, जो देश और दुनियाँ के लिए एक उपहार सिद्ध होगा। 

डॉ नारायण उरांव

रिपोर्ट एवं आलेख -
डॉ० नारायण उराँव
एम.जी.एम.एम.सी.एच.,जमशेदपुर।

 
 

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