'मन्दर बिरो' कुड़ुख शब्द है, जिसका अर्थ है - औषधि द्वारा उपचार करना। पारंपरिक चिकित्सा शैली जिसमें वैद्य ( मन्दर-अख़ 'उस ) द्वारा बीमारी को दूर करने या कम करने के लिए रोगी ( मन्दा ) को जड़ी-बूटी, चूरन या दवा के रूप में औषधि ( मन्दर ) दी जाती है। उपयोग में लाए गए पौधे के भाग एवं तैयारी की विधि ही औषधीय प्रभाव के लिए जवाबदेह हैं। पौधो के संरक्षण के साथ ज्ञान का उपयोग में लाना अति आवश्यक है। भविष्य के विषम परिस्थितियों में मानव जाति की स्वास्थ्य की सुरक्षा का हल प्रकृति से ही प्राप्त होगा। बदलते मौसम और वायुमंडलीय प्रभाव के कारण पौधों की संरचना में बदलाव देखा जा रहा है। जड़ी-बूटी के औषधीय होने का कारण उनकी विविधता और सुविधाएं हैं।
डब्ल्यू.एच.ओ के अनुसार, "हेल्थ फॉर ऑल" लक्ष्य, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में हर्बल दवाओं के निगमन के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है । प्रकृति हमें उचित विकल्प प्रदान करती है, ख़ासकर जब महंगी दवाईयां और इलाज मुहैया न कराई जा सके। परंतु दवहस ( हर्बलिस्ट ) के औषध संग्रह, कम आय जैसे कारणों से जीवनयापन में मुश्किल होती है। प्राकृतिक संसाधनों की सेवा व अनुभव का कम मुल्यांकन किया जाता है।
बदलते दौर में वन संसाधन का महत्व को समझते हुए व्यावसायिक तौर पर भी लाया जा रहा है। उदाहरण पर महुआ- इमली कैंडी और अचार 'एयर इंडिया' में थोक आपूर्ति की जा रही है; मदगी शराब मध्य प्रदेश में इस वर्ष पेटेंट करने की पहल हुई है ; गोवा में 'फेनी' नामक महुआ मदिरा पेटेंट कर बिक्री की जा रही है; चींटी की चटनी जो विशेष आदिवासी समुदायों द्वारा ही बनाईं जाती है जिससे जोड़ो का दर्द, गठिया, चर्म रोग, पीलिया, सर्दी-खांसी व नजर दोष में फायदेमंद पाया गया है उसे जी०आई टैग मिल गया है और इस कारण उत्पाद का मुल्य एवं महत्व दस गुना तक बढ़ जाता है इत्यादि।
इसी प्रकार प्राकृतिक तत्वों की प्रकृति जटिल होती है व समयानुसार लचीला मानकीकरण प्रकिया (Standardization process ) की जरूरत है। इससे प्राचीन पारंपरिक चिकित्सा शैली पर पुनःविचार कर उभरते जन स्वास्थ्य की समस्याओं से निपट सकते हैं। वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर प्राथमिक एवं पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल का लंबा इतिहास रह चुका है।
दस पेड़- पौधों के औषधीय गुणों , उपायों तथा कुछ उनसे जुड़ी सावधानियों का वर्णन दिया गया है-
१. मंडुकी (Centella asiatica)
झारखंड के स्थानीय भाषा में 'ब्रह्मी' को 'बेंग साग' कहा जाता है। जबकि कुड़ुख - मुख़ा अड़खा , संताली - चोके और मुंडारी - चोके आ कहा जाता है।
अंग्रेजी- Brahmi, Asiatic Pennywort, Gotu kola;
असमिया - बर मनिमुनी;
बंगाली- बह्ममा मंडुकी, थानाकुनी; डोगरी- बह्ममा बूटी, घोर-सुंबी; गुजराती- बह्ममी, खदबह्ममी;
हिंदी- बल्लरी,बह्ममी, खुलकुडी, मंडुकी;
कन्नड़ - बह्ममा सोप्पु, गड्डे बरगा, इलिकिवी सोप्पु, ओंडेलगा, सरस्वती सोप्पु, तंबुली गिड;
कोंकणी- एकपानी, उंदरी;
मलयालम-कुटकम, कुटन्नल;
मनिपुरी-पेरूक;
मराळी- बह्ममी, एकपानी, कारिवणा;
मिजो- लंबक, ह्नाह-बाय्ल;
नेपाली- बह्ममबूटी, घोड़-टपरे;
उड़िया- मंडूकपर्णी, मंडुकी, मूलपर्णी, सरस्वती, सोम-वल्ली;
संस्कृत- भाण्डि, भाण्डिरी, भेकी, मंडूकपर्णी;
तमिल- कचप्पी, परूणी, पिंटीरी, वल्लराइ, योकन वल्ली;
तेलुगू- मंडूकपर्णी, सरस्वती अकु;
तिब्बत- मंडु रग पर्णी;
तुलू- तिमारे;
मुख्य रासायनिक घटक: एशियाटिक एसिड, एशियाटिकोसाइड, मेडिकेसिक एसिड , ब्रह्मीक एसिड, थैंक्यूनिसाइड , सेंटेलॉज, पॉलिफेनोलिक यौगिक तथा कुल ट्राइटरपिनिओइडस पत्तियों में पाया जाती है।
औषधीय गुण एवं उपचार: गोटू कोला का उपयोग नसों और टूटी केशिकाओं की मरम्मत करता है। सुजन को घटाकर कोलाजन को बुस्ट करने की क्षमता , मेमोरी में सुधार तथा टीबी, साइफिलिस, पेचिश व सामान्य जुखाम में लाभकारी है। वहीं ट्राइटरपिनिओइडस माइग्रेन, न्युरोपैथी, रीढ की हड्डी में चोट व मनोदशा संबंधित क्षति के लिए उपयोगी है।
● पीसी हुई पत्तियों का इस्तेमाल शरीर के घाव - कटे स्थानों पर किया जाता है।
● पत्तियां और युवा प्ररोह (जमीन के ऊपर का भाग) की सब्जी खाने पर लीवर टॉनिक का काम करता है।
● एशियाटिक के पूरे पौधे को गाय के दुध में उबालकर पीने से मिर्गी व न्युरो आपक्षय रोगों का इलाज करता है।
सावधानियां बरतें:
● प्रतिदिन के लिए बेंग साग का लंबे समय तक उपयोग न करें।
● एंटी- कंवलसेंट ड्रग्स का गोटू कोला पर परस्पर प्रभाव देखा गया है।
२. नीरगुंडी (Vitex negundo)
इस पौधे में नीला फूल होता है जबकि सफेद फूल वाला पौधा सिंदुवार (Vitex trifolia) है। झारखंड में कुड़ुख - ख़ोख़रोम कहा जाता है।
अंग्रेजी- Chaste tree, Five leaf Chaste tree;
असमिया - अगलचिट्टो,पसुटिया, पोचो१ािया;
बंगाली- नि१ािंद, समलु;
गुजराती- नागओल;
हिंदी- नीरगुंडी, सिंदवार ;
कन्नड़ - नोची, बाइल-नेक्की;
पंजाबी- बन्ना, मरवन;
मलयालम- वेनोच्ची, इंद्राणी;
मनिपुरी- उरीक शिबि;
मराळी- नीरगुंड;
मिजो- पलछवी;
उड़िया- इंद्राणी, बेगुंडिया;
संस्कृत- सिंदुवार: , इंद्राणी, नीलनीरगुंडी;
तमिल- नोच्ची;
तेलुगू- वविली;
उर्दू- संभलु, तुख्म संभलु;
मुख्य रासायनिक घटक: फिनॉल , डलसिटॉल , केम्फिन, बीटा-सिटोसेरॉल, ऑरियनटिन , वीट्रीसिन , विटामिन सी, ऑक्युबिन व क्राइसोप्लेनॉल डी।
औषधीय गुण एवं उपचार:
● ताज़ा तोड़ी पत्तियों को जलाने व धुआं करने से मच्छरों को दूर भगाता है।
● सिंदवार पौधे के हरेक हिस्सों का काढ़ा बनाकर पीने से दवा का काम करता है जिससे अस्थमा, गले का दर्द , मुंह के अल्सर, ब्रोंकाइटिस, नेत्र रोग, सुजन, ल्युकोडर्मा, तिल्ली बढने की बीमारी व डाइरिया में इस्तेमाल किया जाता है।
● मुंह और गले से संबंधित विकारों जैसे फेरिंजाइटिस , टॉनसिल में राहत मिलती है।
● सिंदवार के पत्तियों का टॉनिक कृमिहर है, सुखी पत्तियों का धुआं सिरदर्द, सर्दी व जोड़ो के दर्द जकङन में लाभकारी है।
● सिंदवार की पत्तियों के साथ लहसुन, चावल और गुङ का मिश्रण खाने पर शरीर में कृमिहर प्रभाव पड़ता है ।
● पत्तियों का रस से ऑंखो पर एक-एक बुंद डालने पर दृष्टि बढ़ती है व चर्म रोग के लिए भी उपयोगी है।
● नीरगुंडी की पीसी पत्तियों को महिलाओं के नाभि के आसपास या शरीर के निचले हिस्से में लगाने पर डिलीवरी करने में आसानी होती थी।
● सिंदवार पत्तियों को उबालकर स्नान करने से बच्चेदानी व अंडाशय के सुजन में राहत मिलती है ।
● सिंदवार के फल का चूरन खाने से सिरदर्द, पीठदर्द व एथरालजिया कम करता है।
● पीसी पत्तियों को सरसों तेल में पकाकर अत्यधिक सुजन व सड़े अल्सर पर लगाने से फायदेमंद होता है।
● यदि नीरगुंडी का तेल एक से दो बूंदों के साथ थोड़ी शहद मिला कर कान में डालें तो यह कान से जुड़ी समस्याओं का निवारण करता है।
● जोड़ो के दर्द में सिंदुवार की पत्तियों को गर्म कर सेंकने से राहत मिलती है।
● चीनी बीमारी में सिंदवार, नीम और सदाबहार को बराबर मात्रा में पीसकर चूरन की पॉंच ग्राम की गोलियां बनाई जाती है जिसका दो टेबलेट सुबह खाली पेट में सेवन किया जाता है।
● शोध में यह भी पाया गया है कि नीरगुंडी के पत्त्तियों के अर्क से हरे चांदी के नैनो कण मानव में पेट के कॉलोन कैंसर को रोकते हैं।
३. बकस (Adhatoda vasica)
झारखंड के संताली, मुंडारी और कुड़ुख में बकस कहा जाता है।
अंग्रेजी -Malabar nut, White Vasa, Yellow vasa;
असमिया - बोग बहोक;
बंगाली- बसक;
गुजराती- अरदुसी, अरदुसो;
हिंदी- अरुस , प्रमदय, रुस सिंहपर्णी , वजिनी , विसौत;
कन्नड़ - आदुसोगे , करची , अटरुस , अटरुशक;
कोंकणी- अडुलश , अडुलसो ;
मलयालम- अटलुटकम;
मनीपुरी- नोंगमंगखा;
मराळी- अडुलशा;
मिजो- कॉडवल-दइ;
नेपाली- असुरों , कालो-भासक;
उड़िया- बसंगो;
संस्कृत- अटरुस , प्रामाद्य , सिंहास्या , वाजिदंत , वाजिन् , वासक, वसुक;
तमिल- अकलाइ , अट्टोटाइ , अट्टुकम ;
तेलुगू- अड्डासारमु;
मुख्य रासायनिक घटक:
वैसिसीन व वैसिसीनॉन, फिनॉल, टैनिन, विटामिन सी, सेपोनिन, फ्लेवोनॉयड्स, रिड्यूसिंग शुगर, ग्लाइकोडिन टर्प , अध्वासिनॉन , अध्टोडिन ।
औषधीय गुण एवं उपचार:
● बकस के जङ का काढा गोनोर्रह्या , मलेरिया, कृमिनाशक के उपचार हेतु सहायता करता है।
● बकस के पत्तियों से तैयार किए घोल से चर्म रोग, घाव, सिरदर्द, कुष्ठ रोग, रक्तस्राव, हेमोर्हेज में उपयोग किया जाता है। वहीं पत्तियों का रस प्लेटलेट्स गिनती बढाता है जैसे डेंगू, वायरल बुखार, एसिडिटी, मुत्र पथ संक्रमण, डकार में लाभकारी है।
● बकस का विलायक निष्कर्षण मच्छरों, सफेद चींटियां तथा मक्खियों को नष्ट करता है।
● बकस की ताज़ी पत्तियों का रस के साथ शहद और अदरक रस मिलाकर पीने से एक्युट खांसी, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, सांस फूलना, अस्थमा व बलगम से निजात दिलाती हैं।
● बकस के पत्तियों का काढा, ऑंवला और शहद के साथ लेने से अस्थमा में फायदेमंद होता है।
● पत्तियों के चूरन को तिल के तेल में उबालकर लेने से रक्त स्राव, कान दर्द, कान का पस ठीक करने की क्षमता रखता है।
● सांप के काटने पर तुरंत बकस की ताज़ी पत्तियों को चूर कर लगाया जाता है।
● बकस के पत्तियों का रस और गुङ का मिश्रण सेवन करें तो यह मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक स्त्राव का इलाज है।
● ताज़े जड़ का पेस्ट से भी कई फायदे हैं, टीबी , डिप्थेरिया, मलेरिया बुखार, ल्युकोर्रहिया, नेत्र रोग में फायदेमंद है और पेस्ट का प्रयोग डिलीवरी से पहले नाभि से नीचे तक लेप लगाया जाता था।
● पत्तियों को गर्म कर जोड़ो में सेंका जा सकता है जो पथरी, रह्युमेटिस्म, गठिया, कब्ज़, जोड़ो की अव्यवस्था में लाभकारी है।
● बकस की छाल और पत्तियों का रस उल्टी रोकने में मददगार है।
● बकस के फूल का सेवन शरीर में रक्त संचार में सुधार लाता है।
● दक्षिण भारत में पत्तियों का चूरन मलेरिया के इलाज में लिया जाता है।
● इस पूरे पौधे का उपयोग शरीर के आंत से परजीवी को हटाया जाता है।
● जड़ और छाल का काढा या पत्तियों का रस का सेवन एक चम्मच दिन में तीन बार, ऐसा तीन दिनों तक करना है।
● बकस के पौधे अपने आसपास के पौधों पर परजीवी का विकास के जांच एवं संकोची होते हैं।
सावधानियां बरतें:
● बकस की पत्तियों में एल्कालायड वैसिसीन पाया जाता है जो ठंडे रक्त वाले जानवरों के लिए घातक है।
● गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाएं इसके सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
● फ्लु मौसम में इसका उपयोग जरुर करे शरीर को सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
४. मुनगा (Moringa oleifera)
मौसम में बदलाव के साथ मुनगा के पोषक तत्वों पर प्रभाव डालते हैं गर्मियों में विटामिन ए की मात्रा अधिक पाई जाती है और सर्दी के मौसम में विटामिन सी व लौह तत्व अधिक पाई जाती है।
झारखंड में कुड़ुख - मुनगा, संताली - मुनगा और मुंडारी - मुनगे कहा जाता है।
अंग्रेजी- Miracle tree, Drumstick tree, Horseradish tree;
असमीया - साइजन;
पंजाबी- साइनजन, सोअजन ;
गुजराती- मिधोसरगावो;
हिंदी- सहजन , सेंजन ;
कन्नड़ - नुग्गे , गुग्गल , मोचक ;
कोंकणी- मशींग;
मलयालम- मुरिंगाइ , कट्टुमुरिंगा;
मनिपुरी- सजन;
मराळी- शेवगा;
उड़िया- मुनिनगा ;
संस्कृत- शिग्रु , शोभाञ्जन: , तीक्ष्णगन्ध: , काक्षीव: , मोचक: ;
तमिल- मुरुंगइ;
तेलुगू- मोचकमु , मुलगा;
मुख्य रासायनिक घटक: फाइटोस्टेरोल जैसे स्टिगमास्टेरॉल ,सिटोस्टेरॉल, केम्पेस्टेरॉल, विटामिन बी विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन डी, विटामिन ए, कैल्शियम, लोह तत्व, सेपोनिन, एंथ्राक्वीनॉन, एल्कालायड, कैंसर विरोधी कारक जैसे ग्लुकोसिनोलेट्स इत्यादि।
औषधीय गुण एवं उपचार:
मुनगा के पत्त्तियों का उपयोग अस्थमा, सीने में जलन, फ्लु, डायरिया, रक्तचाप, निमोनिया, कैंसर विरोधी, डायबिटीज विरोधी, व सुक्ष्मजीव विरोधी गुण पाए गए हैं। बीज का उपयोग अति थाइराइड, आर्थराइटिस, ऐंठन , क्रोन रोग व अल्सर में लाभकारी है।
● मुनगा के फली के सूप का सेवन लीवर, तिल्ली , पेंक्रियाज आदि के रोगों का समाधान करता है व हड्डियों और जोड़ो को मजबूती प्रदान करता है।
● मुनगा के पत्तियों और छाल का रस अर्क दर्द का प्राकृतिक उपचार है।
● मोरिंगा की पत्तियां फुंसी और मुहांसे से छुटकारा दिलाने में सहायक है। पत्तियों के पेस्ट में नींबू के रस में मिलाकर चेहरे पर पंद्रह मिनट के लिए लगाएं।
● मोरिंगा के फूलों का चूरन गर्भावस्था के दौरान मार्निंग सिकनेस या फीका स्वाद की स्थिति में लाभकारी है।
● ऑंखो में सुजन, ऑंख आना की स्थिति में पत्तियों का रस ऑंखो में दो- दो बूंद डालें। अन्यथा रस या पेस्ट को ऑंखो के आसपास लगाए।
● पत्तियों का काढा (५०-६०एम एल) दिन में दो बार पिएं इससे रक्त शुद्धि, पीठ दर्द व मुहांसे में फायदेमंद पाया गया है।
● मोरिंगा फूलों का चाय शरीर के कोलेस्ट्रोल को कम करता है। जबकि मुख्य जड़ मसाले का रुप हैं। (डॉ एम एस कृष्णामूर्ति- घरेलू नुस्खे)
● मोरिंगा के फल को टुकड़ों का काढ़ा बनाएं जिसमें हल्का नमक और इच्छानुसार विशेष जड़ी- बुटी भी मिलाए। इसके प्रतिदिन सायंकाल सेवन मात्र से हाइपरटेंशन, शरीर के खराब वसा मेटाबॉलिज्म का निवारण के लिए है।
सावधानियां बरतें:
● मोरिंगा का अत्यधिक सेवन लौह तत्व के अतिरिक्त होने पर जमाव का कारण बन सकती है जिससे गेस्ट्रो आंतरिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।
● प्रतिदिन 70 ग्राम ही मुनगा का सेवन उत्तम माना गया है जो इसके अतिरिक्त पोषक तत्व के इकट्ठे होने से रोकते हैं।
● जिन व्यक्तियों को गैस संबंधित बीमारियों की शिकायत रहती हो या संवेदनशील पेट हो उन्हें ध्यानपूर्वक सेवन करना चाहिए।यह थोड़ी ज्वलनशील प्रवृति का होता है और पित्त बढाता है।
● रक्तस्राव के विकारों में इसका उपयोग न करें तथा मासिक धर्म के दौरान भी सेवन अनुचित माना गया है।
● डिलीवरी के तुरंत बाद मुनगा का सेवन न करें और कम से कम पंद्रह दिनों तक परहेज करें।
● गर्भावस्था में मोरिंगा के पत्तियां, जङ, छाल और फल के बजाय फल को मुख्य रूप से खाने में शामिल करें।
५. महुआ (Madhuca latifolia)
झारखंड में कुड़ुख - मदगी , संताली- मटकोम कहा जाता है।
अंग्रेजी- Honey tree, Indian butter tree;
असमिया - महुआ ;
बंगाली- महुया;
गुजराती- महुङो;
हिंदी- गिलोंदा , महुआ ;
कन्नड़ - इप्पे;
कोंकणी- मोहवा;
मलयालम- इलुपा , इरिप्पा;
मराळी- मोहा;
नेपाली- मधुकम;
उड़िया- महुली;
संस्कृत- मधूक;
तमिल- इल्लुपेइ , कट्टिरुप्पइ;
तेलुगू- इप्पा ;
कश्मीरी - महवा मोवा , महोरा ;
मुख्य रासायनिक घटक: ग्लाइकोसाइड, फ्लेवोनॉयड्स, टर्पिन्स, सेपोनिन, विटामिन सी, नाएसिन, फोलिक एसिड,स्टियरिक एसिड, पालमिटिक एसिड, टेनिन्स, राइबोफ्लेविन, मधुसिक एसिड, मधुसाजोन इत्यादि।
औषधीय गुण एवं उपचार:
कसैला गुण सर्दी-खांसी, ब्रोंकाइटिस, कुष्ठ रोग, एक्जेमा, डायबिटीज, मसुढों से खून आना,चर्म रोग, सिरदर्द और पाइल्स।
● महुआ के पत्तियों के राख में घी मिलाकर घाव या जले हुए स्थान पर लगाने से ड्रेसिंग किया जाता है।
● महुआ का तैयार किए मिश्रण आंत कृमिहर, श्वासन संक्रमण अथवा दुर्बलता का इलाज करता है।
● महुआ के छाल का अर्क से कुल्ला करने से दंत संबंधित समस्याओं से निजात मिलती है और जोड़ो के दर्द व डायबिटीज में फायदेमंद है।
● महुआ के बीजों से 'डोरी तेल' के सेवन से कई फायदे जुड़े हैं, शरीर को पोषण देने के साथ बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करता है जिससे दिल के मरीजों के लिए सेहतमंद हैं।
६. सखुआ (Shorea robusta)
झारखंड के स्थानीय भाषा में 'साल' को 'सखुआ' कहा जाता है। जबकि कुड़ुख - मक्का और संताली - सरजोम कहा जाता है।
अंग्रेजी- Sal, House of tribal goddess;
असमिया - बोरसल , साल;
बंगाली- साल;
गुजराती- खखरा;
हिंदी- सखुआ , दमन , कंदर , साल;
कन्नड़ - असीना मव , असु;
मलयालम- करिमवथु;
मराळी- गुग्गिलु;
नेपाली- अगरख ;
उड़िया- सरगी गांछो ;
संस्कृत- अग्निवल्लभ , अश्वकर्ण;
तमिल- अकुवाकर्णकम;
तेलुगू- गुगल;
पंजाबी - सेरल;
मुख्य रासायनिक घटक: उरसोलिक एसिड, अल्फा- एमिरेनॉन, उरसोनिक एसिड, ओलिएनेन, शोरियाफिनॉल, जर्माक्रिन डी 24
औषधीय गुण एवं उपचार:
सखुआ छाल में शीतल गुण पाया जाता है। वहीं बीज और छाल मछलियों के लिए जहरीली हो जाती है।
● सखुआ के छाल के काढा एक से तीन ग्राम ( या 50- 60 एम एल ) प्रतिदिन सेवन करने से डिसेंट्री में लाभ होता है। साथ ही इस काढे से पुराने घाव को धोने से सुक्ष्मजीव विरोधी गुण पाए जाते हैं जो संक्रमण को रोकता है।
● छाल का चूर्ण अल्सर पर छिड़क दें तो यह उपचारात्मक गुण दर्शायेगा।
● सखुआ पेड़ से रॉल का पेस्ट मलहम का प्रयोग उपचारात्मक गुण दर्शाता है इससे घाव साफ किया जा सकता है और लेप दर्द के साथ सुजन वाले स्थान पर लगाने से राहत मिलती है।
● बीज और जड़ का उपयोग भी डिसेंट्री में फायदेमंद है।
● सरसों तेल के साथ रॉल को मिलाकर थोड़ा गर्म कर लगाने से दर्द से राहत मिलती है। फटी एड़ियों, खुजली, ढीली चमड़ी, झुरियां , रंजकता आदि में फायदेमंद है।
● सखुआ पेङ के रॉल का चूर्ण गर्म दूध के साथ लेने से पेट दर्द में आराम होता है।
● सखुआ गोंद को दही के साथ लेने से डिसेंट्री, गोनोर्रह्या, कमजोर पाचन, सीने में दर्द व पेट दर्द में लाभ देता है।
● फल का पेस्ट बनाकर पीने से डायरिया का उपचार किया जाता है।
● सखुआ के पत्त्तियों का रस से चर्म रोगों का इलाज में प्रयोग किया जा सकता है। यदि पत्तियों का पेस्ट , ग़ुलाब जल और मधु मिलाकर चर्म पर लगाने से दाग- धब्बे मिटाते हैं। पॉंच से सात मिनटों तक रखे और सप्ताह में दो से तीन दिन प्रयोग करें।
● सखुआ पेङ के राल का तेल एंटी सेप्टिक माना गया हैं जिसका चर्म रोग में फायदेमंद है।
● सखुआ पेङ से बना चूर्ण मधू के साथ, खाना खाने के बाद पानी के साथ लिया जाए तो महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े विकारों जैसे ल्युकोर्रहिया, मुत्र पथ संक्रमण, मेट्रोर्हेजिया (असमय रक्तस्राव होना) में बहुत उपयोगी है।
● सखुआ पेड़ से बने काढा का इस्तेमाल कई औषधीय गुणों के साथ कान दर्द में भी लाभ देता है । इसका सेवन आठ- दस चम्मच दिन में एक या दो बार खाना खाने के बाद पिएं।
सावधानियां बरतें:
● बच्चों के लिए लाभदायक परंतु स्तनपान कराने वाली माताएं सेवन से पहले डॉक्टर से परामर्श कर लें।
● सखुआ पेड़ का राल के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं उनके लिए सुझाव है कि वे राल का इस्तेमाल नारियल तेल या तिल के तेल के साथ प्रयोग करें। अगर फिर भी परेशानी हो तो सखुआ पत्तो को पीस कर प्रयोग करें।
७. चिरयता (Swertia चूर्ण )
झारखंड के स्थानीय भाषा में 'चिरयता' कहा जाता है।
अंग्रेजी- Chirata;
बंगाली- एका सिठी;
गुजराती- पत्र ;
हिंदी- चिरायत ;
कन्नड़ - किरियट्ट , निलावेप्पा;
मराळी- चरयतह;
उड़िया- चिरैयत ;
संस्कृत- अमरयातिक्त , अर्धतिक्त;
तमिल- निलवेंबु;
तेलुगू- नेलवेमु;
मुख्य रासायनिक घटक: जेनथोन, लिग्नेन, एल्कालायड, फ्लेवोनॉयड्स, टरपिनिओइडस, काइरेटिन, ओफेलिक एसिड, स्टियरिक एसिड, स्वेरोसाइड, जेनशियोपिकरीन इत्यादि।
औषधीय गुण एवं उपचार:
मलेरिया, घाव -भरने , कब्ज़, कृमिहर, भुख न लगना, पाचन तंत्र में सुधार, रक्त शुद्धि, चर्म रोग, खुरदरी चमङी, फुंसी - फोड़ा, सुजन, खुजली , रक्त स्राव, लिवर टॉनिक, वजन घटना, एनीमिया, जठरांत्र के विकारों, एसिडिटी, अनपच, सिरदर्द, रक्त चाप, सुक्ष्मजीव विरोधी गुण , कैंसर विरोधी एवं हिपेटाइटीज में फायदेमंद है।
● रक्त शुद्धि के लिए दिन में एक से दो बार पिएं।
● मुहांसे दूर करने के लिए चिरायता में मधु या गुलाबजल का पेस्ट लगाएं। यह सुजन, रक्त स्राव व चर्म रोग में भी फायदेमंद है।
● चिरायता के चूर्ण में नारियल तेल मिलाकर पेस्ट बनाकर क्षति स्थान पर लगाकर ४-५ घंटों के लिए छोड़ दें। सुजन एवं घाव के उपचार हेतु अति प्रभावकारी है।
● चिरायता की पत्तियों को बारीक कर रात भर के लिए भिगो दें जिसको सुबह में एक ग्लास पानी में पेस्ट बनाकर पिएं। गेस्ट्रो संबंधित विकारों का उपचार होता है।
● चिरायता का काढा सिरदर्द, रक्त चाप एवं शुगर स्तर का प्रबंधन करता है। काढा के लिए एक चम्मच चिरायता चूर्ण को दो कप पानी में उबाले, पॉंच- दस मिनट तक सिम रखे बचे हुए अर्क को छानकर पी जाएं।
सावधानियां बरतें:
● चिरायता शरीर के ब्लड शुगर स्तर के साथ हस्तक्षेप कर सकता है इसलिए सर्जरी से पहले सेवन परहेज करें।
● गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाएं इसके सेवन से परहेज़ करें।
● अल्सर और हृदय के मरीज चिरायता के सेवन से बचें।
● चिरायता के लंबे समय से प्रयोग पर कुछ साइड इफेक्ट्स भी देखे जा सकते हैं जैसे चक्कर, हाथों का सुन्न पड़ना, कड़वे स्वाद के कारण उल्टी आना इत्यादि।
८. जामुन ( Syzygium cumini)
झारखंड में कुड़ुख - जम्बु, संताली - कूड़ और मुंडारी - कुबे कहा जाता है।
अंग्रेजी- Black plum, Indian blackberry;
असमिया - बॉर जामा , कोला जामु;
बंगाली- काला जम;
गुजराती- जामुन ;
हिंदी- जामुन;
कन्नड़ - नरल , नेरुला;
कोंकणी- जमबुल;
मलयालम- कट्टुचंपा;
मनिपुरी- जम;
मराळी- जमबूल;
मिजो- लेह्नमुइ;
नेपाली- जामुनु;
उड़िया- जमु कोलि;
संस्कृत- जंबूल;
तमिल- नवल;
तेलुगू- नेरेडु;
तिब्बत- जाम बु;
ऊर्दु- जमन ;
मुख्य रासायनिक घटक: स्टेरॉल, ट्राइटरपिन्स, कुमेरिंस, टेनिन्स, सेपोनिन, ग्लाइकोसाइड, एल्कालायड, एंथोसयानिन इत्यादि।
औषधीय गुण एवं उपचार:
● जामुन के छाल का रस महिलाओं के निरंतर गर्भपात का इलाज करता है।
● जामुन की पत्तियों का रस के सीधे सेवन विषहर औषध है जो अफ़ीम और कनखजूरे का डंक में उपयोग किया जाता है।
● जामुन के बीजों का चूर्ण चीनी के साथ लेने से पेचिश में फायदेमंद है।
● बीजों का रस छालों और अल्सर पर लगाने से लाभकारी होता है।
● जामुन के छाल का काढा दिन में तीन बार दो - तीन सप्ताह तक पीने से डायबिटीज का उपचार किया जाता है। नेपाली, भुटिया, लेप्चा सक्रियतापूर्वक प्रयोग कर रहे हैं।
● जामुन की पत्तियों का काढा (2.5 ग्राम/ लीटर) यानी रोज़ाना एक लीटर का सेवन डायबिटीज में फायदेमंद है यह दक्षिण ब्राजील में अधिकतर पाया गया है ।
● जामुन की नई पत्तियों का रस में दालचीनी या इलायची डालकर बकरी के दुध में मिलाकर छोटे बच्चों को पिलाने से डायरिया से मुक्ति मिलती है।
● फलों के रस का सिरका पीने से पेट दर्द, गैस एवं मुत्रवधक में लाभकारी है।
● बीजों के अर्क का सेवन जेनिटोयुरिनरी अल्सर , सर्दी, खांसी, बुखार, आंत, गला एवं चर्म संबंधित समस्याओं में राहत मिलती है।
● बीजों का अर्क का सेवन हिमोग्लोबिन बढ़ाता है यानी एनीमिया विरोधी हैं।
● जामुन के पत्तियों का राख से मसुढों और दांतों को रगड़ने पर मजबूती मिलती है।
९. हड़जोड़ (Cissus quandrangularis)
झारखंड के कुड़ुख - ख़ोचोलजोड़ कहा जाता है।
अंग्रेजी- Veldt grape;
असमिया - हरा घुनुक , हड़जोड़-लता;
बंगाली- हरजोङ;
गुजराती- अस्थिर्णखल , हडसंकल ;
हिंदी- अस्थिभंग , हङजोङ ;
कन्नड़ - मंगरवल्ली , संडुबल्ली , बक्कुडि ;
कोंकणी- संडुबल्ली ;
मलयालम- चंगलमपरंडा ;
मराळी- घणसवेल, घोणसकांडें ;
उड़िया- हरभंग ;
संस्कृत- अस्थिसंहार, अस्थियुज;
तमिल- अरुकणि, किरुट्टी;
तेलुगू- गुडामेतिगे, नल्लेरु;
ऊर्दु- हड़जोङ;
मुख्य रासायनिक घटक: कैल्शियम ऑक्सालेट, बीटा- केरोटीन, एसकोरबीक एसिड, फ्लेवोनॉयड्स, बीटा- सिटोस्टेरोल, कैम्पफेरॉल, सेपोनिन, इत्यादि।
औषधीय गुण एवं उपचार:
उच्च कोलेस्ट्रॉल, गठिया, ऐंठन, रीढ की हड्डी तथा पीठ दर्द की शिकायत पर लाभदायक है।
● हड़जोड़ का तना उबालकर उसमें नींबू मिलाकर कई दिनों तक सहेज सकते हैं, पेट दर्द होने पर सेवन करें।
● हड़जोड़ की पत्तियां और नई टहनी को सुखाकर चूर्ण बनाकर रखें। अनपच और आंत के संक्रमण में उपयोग शक्तिशाली उपाय माना जाता है।
● हड़जोड़ तना का पेस्ट का सेवन अस्थमा, जलने, घाव के उपचार के साथ कीड़े- मकौड़े के जहरीले डंक लगने पर उपयोग होता है।
● हड़जोड़ पौधे का राख बेकिंग पाउडर के विकल्प पर इस्तेमाल होता है।
● रस को इमली के साथ लेने से गोनोर्रह्या का इलाज है।
● मांसपेशियों के दर्द में तना का पेस्ट उस स्थान पर लगाएं।
● हड़जोड़ का रस 10 से 20ml गाय के घी या एक कप दूध में भोजन करने के बाद पिएं। इससे उपचारात्मक गुण दिखेंगे।
● हड़जोड़ चूर्ण 2.5- 6 ग्राम का सेवन दूध के साथ निगले।
● हड़जोड़ पौधे का तना (जमीन के ऊपर का भाग) में सोंठ, कालीमिर्च मिलाकर दी जाए तो यह कृमिहर व शरीर दर्द में राहत मिलती है।
सावधानियां बरतें:
● हड़जोड़ का सेवन सर्जरी के दौरान और बाद में रक्तचाप और शुगर स्तर को कम कर सकता है। इसलिए सर्जरी के दो सप्ताह पहले से इसके सेवन से परहेज़ करें ।
● गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएं सेवन से पहले डॉक्टर से परामर्श कर लें।
● हड़जोड़ के सेवन से कुछ दुष्प्रभाव भी देखें जा सकते हैं जैसे - सुखा मुंह, नींद न आना , गैस, सिरदर्द व डायरिया।
१०. ब्रह्मी (Bacopa monnieri)
झारखंड के स्थानीय भाषा में 'ब्रह्मी' को 'गोलगोला साग' कहा जाता है। कुड़ुख - गोलगोला अड़ख़ा ।
अंग्रेजी - Brahmi , Bacopa, Thyme leaved gratiola;
असमिया - ब्रह्मी हक;
बंगाली- ब्रह्मी शाक ;
गुजराती- बाम;
हिंदी- नीरब्रह्मी , जलबुटी;
कन्नड़ - जल ब्रह्मी;
कोंकणी- ब्रह्मी;
मलयालम- नीरब्रह्मी, भ्रम्मी;
मनिपुरी- ब्रह्मी सक;
मराळी- जल ब्रह्मी;
उड़िया- प्रुसनी पर्णी;
संस्कृत- तिक्तलोनिका;
तमिल- निरप्पीरम्मी;
तेलुगू- समब्रनई अकु;
मुख्य रासायनिक घटक: कार्बोहाइड्रेट, सैपोनिन्स, बेकोसाइड ए एवं बी, बेटुलिक एसिड इत्यादि।
औषधीय गुण एवं उपचार:
एंटीऑक्सीडेंट, रक्त शुद्धि, रक्त धारा में वसा के ऑक्सीकरण को कम करता है (ह्दयवाहिका बीमारियों के जोखिम कारक हैं) ; मिर्गी ; ल्युकोडर्मा, साइफिलीस , अनपच, सुजन , एनीमिया, पित्त, अल्जाइमर रोग, पार्किंसन रोग , डाइरिया और बुखार ,विस्मृति , दीर्घकालिक मेमोरी नुकसान, उम्र बढ़ने, न्युरो अपक्षयी रोग अथवा डिमेंशिया में फायदा होता है।
● बकोपा और रोज़मेरी का अर्क एंटीऑक्सीडेंट एवं न्यूरोप्रोटेक्टिव प्रभाव देते हैं।
● ब्रह्मी सीरप - मानसिक थकान, चिंता स्तर, तनाव विकारों से संबंधित समस्याओं में कमी लाता है।
● बकोपा का एल्कोहोलिक अर्क अगर तीन सप्ताह तक लिया जाए तो यह न्यूरोप्रोटेक्टिव प्रभाव दर्शाता है।
● बौद्धिक क्षमता बढाने एवं तनाव कम करने में लाभकारी है।
● बच्चों में संज्ञानात्मक क्षमता को बढ़ाता है।
उल्लेख -
● स्त्रोत: फ्लावर्स ऑफ इंडिया; बायोडायवर्सिटी इंडिया।
● ब्रह्मी: Traditional magazine for aging related disorders: Implications for drug discovery.बैनर्जी अंतरा et al 2021
● सिंदवार: "Therapeutic uses of Vitex negundo " वर्ल्ड जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च, अजहर जबिन एट अल, जनवरी 2015
● बकस: ओवरव्यू ऑफ फाइटोकेमेस्ट्री एंड फार्माकोलॉजी ऑफ Adhatoda vasica , शर्मा अजय et al ,मार्च 2018, वॉल्युम 8 इशु iii पेज 1286 ।
● साइट: टाटा 1mg ; साइंस डायरेक्ट डॉट कॉम ।
● शोध पेपर: Syzygium cumini (L.) skeels - द ब्लैक गोल्ड ऑफ दिल्ली, मीणा सिंह देवेंद्र et al , मार्च 2020, द बॉटेनिका 691-4, 2019-20
● हड़जोड़: Cissus quandrangularis in the treatment of Osteoporosis, बेबी जॉसेफ et al 2013, वर्ल्ड जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च, वॉल्युम 2 इशु 3, 596-605
● ब्रह्मी: किताब - Naturally occurring chemicals against Alzheimer's disease (pp 243-256) DOI: 10.1016/B978-0-12-819212-2.00020-7
आलेख -
सुश्री नीतू साक्षी टोप्पो
एम.एससी (बायोटेक्नोलॉजी)
डिबडीह, रॉंची।