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आदिवासी समाज में सच और झूठ के बीच ईर्ष्या द्वेष की दीवार

ईर्ष्या द्वेष और मैजिकल माइंडसेट आदिवासी समाज और खासकर संताल समाज में इतना ज्यादा है कि भले सच्चाई दब जाए ? समाज मिट जाए ? मगर हम किसी को उसकी मेहनत, मेरिट और सफलता का श्रेय नहीं देंगे ? क्यों देंगे ? क्योंकि श्रेय देने से उसका नाम होगा, समाज को एक नेतृत्व मिल सकता है। अतः भाड़ में जाए नेतृत्व और समाज। अंततः तथाकथित आदिवासी बुद्धिजीवी और ईर्ष्या द्वेष से ग्रसित कुछ आदिवासी अगुआ उसका टांग खींचने में लग जाते हैं। बदनाम करने की नीयत से उसके खिलाफ झूठे प्रचार और तर्कहीन, निराधार, बेबुनियाद आरोप फैला कर जनता को बड़े दायरे में भ्रमित कर आदिवासी समाज का भट्टा बैठा देते हैं। बहुत दुख और दर्द के साथ मैं कहना चाहती हूं कि पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ईर्ष्या द्वेष से ग्रसित इन कोरोना वायरसों के शिकार होते रहे हैं। और मेरी नजर में ये कोरोना वायरस आदिवासी समाज को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहे हैं। नीचे कुछ तथ्यों और घटनाओं के साथ मैं अपनी वक्तव्य को पुष्ट करने की कोशिश करूंगी।

इसके उल्टा ईर्ष्या द्वेष से ग्रसित ये कोरोना वायरस राजनीतिक- सामाजिक नेतृत्व के नाम पर एक खास परिवार को अंधभक्ति की पराकाष्ठा के साथ सहयोग कर आदिवासी समाज के साथ भयंकर भीतरीघात कर रहे हैं। जिस परिवार ने झारखंड को तो बेचा ही, संताली भाषा,  सरना धर्म के लिए कभी कुछ नहीं किया। सीएनटी एसपीटी कानून को खुद तोड़ा, PESA कानून, पांचवी अनुसूची आदि के लिए कभी नहीं सोचा। डोमिसाइल और आरक्षण को खुद बकवास और बेकार बोलकर पहले आग में पानी डाला । अब 1932 लागू करने का झूठा प्रपंच चला रहे हैं। क्या कांग्रेस और राजद के नेता बिहारी- बाहरी के खिलाफ कोई 1932 का कानून बनने देंगे ? नहीं । अतः 1932 एक झूठा सपना है। बृहद झारखंड क्षेत्र के आदिवासियों को घृणा की दृष्टि से देखते है । यह परिवार हडीया दारु चखना, रुपया पैसा आदि बांटकर तथा ईसाई और मुसलमानों का साथ लेकर गद्दी में काबिज तो हो जाता है। मगर आदिवासी समाज को हाड़ीया दारु चखना, फुटबॉल जर्सी आदि छोड़कर अब तक क्या दिया है ? यह अलग बात है  BJP - RSS के डर से ईसाई और मुसलमान उक्त परिवार का साथ देने को मजबूर हैं। यह खास परिवार सत्ता के लिए राजनीति करता है, समाज के लिए नहीं। अन्यथा आदिवासी समाज में व्याप्त नशापन, अंधविश्वास, गरीबी, बेरोजगारी, विस्थापन-पलायन, धर्मांतरण, प्राचीन आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में सुधार, गलत परंपराओं में सुधार आदि समस्याओं पर कोई कार्ययोजना के तहत आदिवासी समाज में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक जागरूकता का काम कर सकता था। आदिवासी समाज और खासकर संथाल समाज में यह परिवार लगभग चार दशकों से अंधों में काना राजा की तरह काबिज़ है। और इन कोरोना वायरसों के सहारे मैजिकल दुनिया में जीने वालों के नासमझी का लाभ उठाकर अपना उल्लू सीधा करता रहा है। आदिवासी समाज के हित में यह कहां तक जायज है ?

अतः सच और झूठ के बीच झूलते आदिवासी जनमानस को तथ्यों और तर्कों के साथ  ईर्ष्या द्वेष छोड़कर पुनर्विचार करने की प्रार्थना  करते हैं। पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के कुछ ठोस उपलब्धियों को प्रस्तुत करते हैं :-

1. संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराना और झारखंड की राजभाषा बनाने की मांग करना --

(i) संताली भाषा भारत की ऑस्ट्रिक भाषा समूह की पहली और सबसे बड़ी आदिवासी भाषा है। जिसे राष्ट्रीय मान्यता अर्थात आठवीं अनुसूची में 22 दिसंबर 2003 को स्थान प्राप्त हुआ है। मगर इसके पीछे चरणबद्ध आंदोलन हुए हैं। पहला चरण 30 जून 1980 को अखिल भारतीय झारखंड पार्टी के विशाल आदिवासी दिल्ली रैली से प्रारंभ होता है। जब भारत के राष्ट्रपति को सालखन मुर्मू के नेतृत्व में संताली, मुंडा, हो, कुड़ुक आदिवासी भाषाओं और ओल चिकी लिपि की मान्यता का मांग पत्र सौंपा गया। दूसरा चरण 16 अगस्त 1992 को झाड़ग्राम, पश्चिम बंगाल में संताली भाषा मोर्चा (SBM)  के गठन से शुरू होता है। भारत सरकार ने 1992 में नेपाली, कोंकणी और मणिपुरी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का घोषणा कर दिया था। अतः सालखन मुर्मू के नेतृत्व में SBM ने बिहार बंगाल उड़ीसा और असम राज्यपालों को धरना प्रदर्शन के साथ संताली भाषा को भी शामिल करने हेतु क्रमशः 2-3.11.1992, 10.11.92, 16-17.11.92, 12.12.92  को ज्ञापन पत्र प्रदान किया। मगर संताली भाषा की उपेक्षा की गई। तीसरा निर्णायक चरण 1998 में प्रारंभ हुआ जब 1998 में सालखन मुर्मू 12वीं लोकसभा के सांसद बने। सालखन मुर्मू के नेतृत्व में SBM ने राष्ट्रीय स्तर पर 12.4.1998 को गोलमुरी, जमशेदपुर में संताली भाषा प्रेमियों की एक विशेष बैठक का आयोजन किया।  केंद्रीय मंत्री कवीन्द्र पुरकायस्थ की उपस्थिति में 5.7.1998 को प्रथम संताली भाषा महारैली जमशेदपुर में आयोजित हुआ। 16.6.98 से 5.7.98 तक संताली भाषा रथ विभिन्न प्रदेशों में चला कर जनता को आंदोलन के साथ जोड़ा गया। 16.6.1998 को पारसी सागड़ अर्थात भाषा रथ को भारत सरकार के मंत्री ओमाग अपांग ने गुरु गोमके रघुनाथ मुर्मू के मूर्ति स्थल, रायरंगपुर, ओडीशा से झंडा दिखाकर रवाना किया। SBM ने द्वितीय संताली भाषा महारैली का आयोजन 4.2.99 को कोलकाता के रानी रश्मोनी रोड में आयोजित किया था। 17.12.1999 को संताली भाषा मोर्चा (SBM) ने जंतर मंतर, नई दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को ज्ञापन पत्र प्रदान किया।

(ii) SBM द्वारा तृतीय भाषा महारैली का आयोजन रीगल मैदान, जमशेदपुर में 8.4.2000 को आयोजित हुआ। जिसमें सालखन मुर्मू को पारसी हुलगारिया (भाषा आंदोलनकारी) का उपाधि प्रदान किया गया और एक सौ अन्य सहयोगी संगठनों और व्यक्तियों को संताली भाषा आंदोलन में उनके योगदान के लिए मान मोहोर (मेडल) और सर्टिफिकेट प्रदान किया गया । झारखंडd प्रदेश गठन के एक सप्ताह पूर्व 8.11.2000 को संताली राजभाषा महारैली का आयोजन मोराबादी मैदान रांची में किया गया। जिसमें सभी प्रदेशों से लगभग एक लाख संताल शामिल हुए। जिस महारैली को कुछ ईर्ष्यालु संताल बुद्धिजीवी, राजनीतिक स्टंट बताकर, इसको विफल करने के लिए समाचार तक छपवाये थे।

संताली भाषा की मान्यता आंदोलन को निर्णायक बनाने हेतु SBM ने तीन बार 25.9.2000, 8.12.2000 और 8.5.2001 को रेल रोको का आंदोलन भी किया। गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा, राजघाट दिल्ली और मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान में प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी भाषा सम्मेलन राजघाट नई दिल्ली में 23-24.3.2002 और द्वितीय सम्मेलन 5-7.9.2003 को आयोजित हुआ। जिसमें SBM के प्रतिनिधि और बोडो भाषा आंदोलनकारी शामिल हुए। SBM को 2002 में और सालखन मुर्मू को 2003 में संताली भाषा आंदोलन में नेतृत्व और योगदान देने के लिए "राष्ट्रीय लोक भाषा सम्मान" प्रदान किया गया। तीसरे चरण में संताली भाषा आंदोलन को तीव्रता और मंजिल तक ले जाने के लिए अनेक रैली मीटिंग जुलूस सेमिनार आदि का दौर चलता रहा।

(iii) संताली भाषा आंदोलन का अंतिम चरण या पटाक्षेप 2003 के मानसून सत्र में होता है। जब भारत सरकार ने 18 अगस्त 2003 को केवल बोडो भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का बिल प्रस्तुत कर दिया। तब 21 अगस्त 2003 को लोकसभा में सालखन मुर्मू ने संताली और हो, मुंडा, कुड़ुक की मांग भी रख दिया। उसके बाद SBM ने 8.11.2003 को भारत के संताल बहुल जिलों और 18.11.2003 को राज्यपालों के मार्फत राष्ट्रपति को संताली भाषा मान्यता के लिए ज्ञापन पत्र भेजा।  8 दिसंबर 2003 को जंतर मंतर नई दिल्ली से भव्य प्रदर्शन जुलूस करते हुए SBM और जेडीपी के नेता, कार्यकर्ता गाजा-बाजा, नगाड़ों के साथ सालखन मुर्मू के नेतृत्व में पार्लियामेंट की तरफ आगे बढ़े। मगर उनको संसद के आगे रोका गया। उल्लेखनीय है कि तीनों युवक जो संताली भाषा की मान्यता के लिए आत्मदाह की घोषणा कर चुके थे - कान्हू राम टुडू ,सुबोध मार्डी, सुनील हेंब्रोम को गिरफ्तार कर लिया गया। 8.12.2003 को पार्लियामेंट स्ट्रीट में धरना प्रदर्शन के बाद शाम 3:30 बजे कांग्रेस के सभापति सोनिया गांधी के साथ उनके निवास स्थल दस जनपथ दिल्ली में SBMऔर JDP के करीब 2000 प्रतिनिधि सालखन मुर्मू के नेतृत्व में उनसे मिले। जिसमें असम के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। 9.12.2003 को एसबीएम का प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम से भी मुलाकात किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ से सांसद प्रियरंजन दास मुंशी ने 15 दिसंबर 2003 को पत्र लिखकर सालखन मुर्मू को अवगत किया कि कांग्रेस पार्टी संताली भाषा को बोडो के साथ शामिल कराने के लिए बिल में संशोधन प्रस्ताव लाएंगे। अंततः 22 दिसंबर 2003 को कठिन सफर मंजिल तक पहुंच ही गया। 8 दिसंबर 2003 के दिल्ली कार्यक्रम को सफलीभूत करने के लिए टाटा से दिल्ली जाने के लिए विशेष रेल की व्यवस्था की गई थी।

(iv) अतएव  सालखन मुर्मू यदि संसद के भीतर और बाहर पूरी निष्ठा और दृढ़ता के साथ नेतृत्व नहीं देते, अपनी राजनीतिक -कूटनीतिक ज्ञान से बीजेपी और कांग्रेस को नहीं पटाते, अपना बहुमूल्य समय नहीं देते, (जो अधिकांश MP पेट्रोल पंप लगाने, प्रॉपर्टी खरीदने, पैसा कमाने आदि में लगाते हैं), उल्टा अपना लाखों रुपया खर्च नहीं करते, सैकड़ों संताली संगठनों को नहीं जोड़ते, लगभग 11 बार संसद में वक्तव्य नहीं रखते, पूरे देश का दौरा नहीं करते, नॉन पॉलिटिकल मानसिकता वाले संताली भाषा प्रेमियों को नहीं जोड़ते, विरोधियों के विरोध को कमजोर नहीं करते, कांग्रेस नेता सांसद प्रियरंजन दास मुंशी का सहयोग नहीं लेते तो शायद संताली भाषा मान्यता का सपना एक सपना ही रह जाता । आखिर सालखन मुर्मू को पारसी जितकरिया (भाषा विजेता) का उपाधि दिया गया और गुरु गोमके रघुनाथ मुर्मू ने जो सपना 1925 में ऑल चिकि का आविष्कार कर देखा था, उसको सालखन मुर्मू ने 75 वर्षों बाद वर्ष 2003 में पूरा किया। क्या इस ऐतिहासिक महान उपलब्धि के लिए सालखन मुर्मू के नेतृत्व को श्रेय देना गलत होगा ?

2. CNT / SPT की रक्षा करना –

(i) हासा और भाषा किसी भी आदिवासी जनजीवन का लाइफ लाइन है। सीएनटी एसपीटी कानून अंग्रेजो के खिलाफ महान शहीदों के संघर्ष और बलिदान का प्रतिफल है। जिसकी रक्षार्थ सालखन मुर्मू ने बीजेपी+जेएमएम सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और 25 जनवरी 2012 को जीत दर्ज किया। मुकदमा संख्या W-PIL-758/2001, तिथि 4 फरवरी 2011 (सालखन मुर्मू बनाम झारखंड सरकार) था। तब अर्जुन मुंडा सीएम और हेमंत सोरेन डिप्टी सीएम थे और स्टीयरिंग कमिटी के चेयरमैन शिबू सोरेन थे। 

दूसरी बार बीजेपी सरकार (रघुवर दास) ने 3.11.16 को टीएसी और 23.11.2016 को झारखंड विधानसभा में सीएनटी एसपीटी कानून का संशोधन कर पूरी तरह सीएनटी एसपीटी कानून को पंगु बना कर आदिवासी मूलवासियों से उसके जमीन को पूर्णता लूट लेने का षड्यंत्र सफल कर लिया था।  केवल झारखंड राज्यपाल के हस्ताक्षर की देरी थी। उस भयानक परिस्थिति में झारखंड के सभी प्रमुख नेता और पार्टियां अगली चुनाव की तैयारी में चुपचाप थे। केवल आदिवासी जन संगठन विरोध और आंदोलन कर रहे थे। कुछ ईसाई बुद्धिजीवी चर्च को सीएनटी एसपीटी बचाओ आंदोलन से दूर रहने की सलाह दे रहे थे। मगर सिमडेगा के बिशप विंसेंट बरवा और उनके साथी,सहयोगी सीएनटी एसपीटी बचाओ आंदोलन में सहयोग किए। जब सर्वत्र अंधेरा लगने लगा तब आदिवासी सेंगेल अभियान (ASA) ने सालखन मुर्मू के नेतृत्व में अलख जगाने का काम किया । सालखन जी की तबीयत ठीक नहीं थी।  मगर उन्होंने कड़ाके की ठंड में पूरे झारखंड  प्रदेश में मोटरसाइकिल जन जागरण रैली करने का फैसला लिया। जो बिरसा मुंडा के गांव उलीहातू से 12 दिसंबर 2016 को प्रारंभ होकर सिदो मुर्मू
 के गांव भोगनाडी में 22 दिसंबर 2016 को समाप्त हुआ। उसके बाद पहली बड़ी जनसभा सीएनटी एसपीटी कानून के रक्षार्थ दुमका कॉलेज मैदान में 28 जनवरी 2017 को हुआ। इस बीच अनेक छोटी बड़ी सभाओं का आयोजन किया गया।

(ii)मगर सिमडेगा अल्बर्ट एक्का स्टेडियम में आयोजित 9 मार्च 2017 की ASA महारैली ने झारखंड प्रदेश में एक नया जोश भर दिया। तत्पश्चात 7 अप्रैल 17 को एचईसी रांची में विशाल रैली हुआ । फिर ASA द्वारा 17 मई 2017 को मोराबादी मैदान,रांची में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन के साथ सरकार गिराओ झारखंड बचाओ रैली ने झारखंड सरकार के खिलाफ बड़ा दबाव बना दिया। आदिवासी विधायकों विमला प्रधान - 9 जून 2017 और एनोस एक्का का 17 जून 2017 को घेराव भी किया गया। झारखंड के सभी 28 आदिवासी विधायकों पर समाधान या इस्तीफा का नारा दिया गया। चिलचिलाती धूप में पदयात्रा किया गया। जन जागरण के लिए लोटा-माटी कार्यक्रम भी चलाया गया। फिर 23 अक्टूबर 2017 को ASA द्वारा मोराबादी मैदान रांची में विशाल जनसभा आयोजित कर झारखंडी जनता को एक जन विकल्प प्रदान करने का संकल्प दिया गया। ASA द्वारा चौतरफा आंदोलन से रघुवर दास बीजेपी सरकार चिंता ग्रस्त हो चली थी।  ऊपर से सालखन मुर्मू द्वारा झारखंड हाई कोर्ट में दायर रिट याचिका संख्या नंबर 6595/2016DV, दिनांक 17 नवंबर 2016 ने पासा पलट दिया। रिट याचिका द्वारा जहां TAC गठन को गलत और सीएनटी एसपीटी संशोधन को गैरकानूनी बताया गया वहीं इस रिट याचिका के आधार पर झारखंड राज्यपाल को विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने के लिए दबाव बनाया गया। जिसे झारखंड राज्यपाल ने सालखन मुर्मू के पत्र दिनांक 6 मार्च 2017 के जवाब में अपने पत्रोत्तर संख्या 26/2016, तिथि 15 मार्च 2017 द्वारा स्वीकार करने का संकेत दिया। अंततः रघुवर दास सरकार को सीएनटी एसपीटी में हुए गलत संशोधन को वापस लेना पड़ा। अंधेरे में उजाले की तरह साहस और ज्ञान का परिचय देकर सीएनटी एसपीटी कानून को बचाने वाले सालखन मुर्मू के नेतृत्व को श्रेय देना चाहिए कि नहीं ?

3. सिदो मुर्मू का डाक टिकट 6.4. 2002 को दिल्ली में जारी कराना –

सालखन मुर्मू के नेतृत्व में सीदो मुर्मू फाउंडेशन (SMF) ने केंद्रीय मंत्री तपन सिकदर, सांसद कड़िया मुंडा, डॉ डी मार्डी और अन्य साथियों के सहयोग से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई द्वारा इसका विमोचन कराया। SMF के चेयरमैन सालखन मुर्मू को इसका श्रेय देना चाहिए या नहीं ?

4. JAAC (झारखंड एरिया ऑटोनॉमस काउंसिल) को पावर और पैसा दिलाना –

1995 को जैक का गठन हुआ। गुरुजी शिबू सोरेन अध्यक्ष बने। JAAC प्रावधान के तहत JAAC को बिहार सरकार के वार्षिक बजट का कम से कम 25% रुपया और छोटानागपुर संथाल परगना क्षेत्र के समग्र विकास के लिए अनेक अधिकार दिए गए थे। मगर CM लालू यादव  ने तब TA/DA के रूप में गुरुजी शिबू सोरेन को सालाना केवल 1 करोड़ रुपए देकर खुश रखा था। तब जनहित में सालखन मुर्मू ने पटना हाई कोर्ट के रांची बेंच में रिट याचिका दायर किया। जिसका संख्या है CWJC1871/1996(R) । सालखन मुर्मू ने केस जीता और JAAC को पैसा और पावर दिलाया। कहाँ 1 करोड़ और कहाँ 500 करोड़। तब सालखन मुर्मू को इसका श्रेय देना चाहिए या शिबू सोरेन को ?

5. भारत के लोकसभा में 21.8.2003 को ऐतिहासिक भाषण प्रदान करना –

पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने भारत के संसद में 21.8. 2003 को ऐतिहासिक भाषण दिया। जिसमें झारखंड और भारत के आदिवासियों की मूल समस्याओं को पदस्थापित किया है। यह वीडियो सोशल मीडिया में देखा जा सकता है। उस लंबे भाषण में उन्होंने आरक्षण के मामले को रखा और नवगठित झारखंड राज्य में हो रहे कमजोरीयों को दर्शाया। सीएनटी एसपीटी कानून की अहमियत को बताया। जंगलों से आदिवासियों को भगाने के दर्द को उजागर किया। विस्थापन पलायन की समस्याओं पर चर्चा किया। घटती आदिवासी आबादी पर रोशनी डाला। और 2002 साल में झारखंड हाई कोर्ट द्वारा लगभग 5000 क्लर्क चपरासियों की नियुक्ति जो बिना किसी आरक्षण नीति के की गई थी। उसके खिलाफ उन्होंने आमरण अनशन किए जाने पर भी प्रकाश डाला। संथाली मुंडा हो कुरुख आदि आदिवासी भाषाओं की मान्यता पर प्रकाश डाला। सरना धर्म को मान्यता दी जाए इसकी मांग रखा और असम के झारखंडी आदिवासी जो लगभग डेढ़ सौ साल पहले वहां अंग्रेजों द्वारा ले जाए गए थे उनको  अविलंब शेड्यूल ट्राइब के दर्जा देने की मांग भी रखा। तो क्या इसके लिए उनको नेतृत्व का श्रेय देना चाहिए या नहीं ?

6. आदिवासी महिला विरोधी मानसिकता के खिलाफ खड़ा होना –

आदिवासी महिला नागी मार्डी को मुखाग्नि देने के कारण दंडित होने से बचाने का साहसिक काम किया गया। परंपरा के नाम पर अगस्त 2010 को नागी मार्डी, ग्राम कुल्हुडीह, गम्हरिया प्रखंड, सरायकेला जिला, झारखंड ने मजबूरी में और ग्राम प्रधान अर्थात माझी बाबा की सहमति से अपनी मृत मां को मुखाग्नि दिया। परन्तु तथाकथित समाज के रक्षकों ने उसे इतना मानसिक प्रताड़ना दिया, डराया-धमकाया कि वह आत्महत्या करने जैसी अवस्था तक पहुंच चुकी थी।उस परिस्थिति में नागी मार्डी को न्याय और सुरक्षा की व्यवस्था सालखन मुर्मू के नेतृत्व में ASA और JDP के नेताओं ने संभव बनाया। लेकिन ठीक इसके उल्टा बोकारो में डॉ अनिता मुरमू आदिवासी महिला ने भी 20 सितंबर 2017 को अपने मृत पिता को मुखाग्नि दिया। मगर चुकी वह उसी खास परिवार से संबंधित होने से तथाकथित संताल समाज के रक्षकों ने मामले पर चुप्पी साध लिया था। बल्कि मुखाग्नि कार्यक्रम में शामिल भी हुए। संताल समाज का दुर्भाग्य है कि नागी मार्डी के खिलाफ परंपरा का दुहाई देकर नागी को सताने वाले ही संताल समाज के सामाजिक राजनीतिक मामलों पर अबतक हावी हैं। सभी उस खास परिवार के शागिर्द हैं। अतः एक खास परिवार और उनके समर्थक जहां आदिवासी महिला विरोधी तो हैं ही,ईर्ष्या द्वेष से ग्रसित होकर पक्षपात पूर्ण रवैया के साथ काम करते हैं। तब नागी मार्डी को बचाने का श्रेय सालखन मुर्मू के नेतृत्व को देना चाहिए या नहीं ?

7. असम में बसे झारखंडी आदिवासियों को ST का दर्जा, हिंसा-हत्या और लक्ष्मी उरांव को नंगा करने के मामलों में सार्थक पहल करना –
 
सालखन मुर्मू ने असम में लगभग 150 सालों से बसे झारखंडी आदिवासियों के मामले पर संसद में कई बार मामला उठाया। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, असम के राज्यपालों को कई बार ज्ञापन दिया। असम का बारंबार दौरा किया।  जनसभाओं, आंदोलनों में साथ दिया। उनके ऊपर हुए अन्य अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद किया। अभी लोकडौन के पूर्व 19-22 फरवरी, 2020 को असम का दौरा किया।

24 नवंबर 2007 को लक्ष्मी उरांव को आसाम की राजधानी में नंगा कर घुमाये जाने का जोरदार विरोध किया। जांच और सजा की मांग की। लक्ष्मी उरांव को मार्च-अप्रैल 2008 में झारखंड लाया। ताकि झारखंड में भी आदिवासी संवेदनशील होकर सावधान और एकजुट हो सकें। लक्ष्मी उरांव को सम्मानित करने के लिए झारखंड एक्सप्रेस (बिशप बरवा, डॉ केरुबिम तिर्की) के सहयोग से एक पुस्तक "जागो आदिवासी जागो" उनके नाम एक समारोह में, अप्रैल 2008 में, समर्पित किया । तब क्या दुखद आसाम झारखंडी आदिवासी मामलों को संसद के भीतर बाहर उठाने,  लगातार सहयोग के लिए सालखन मुर्मू को नेतृत्व का श्रेय देना चाहिए कि नहीं ?

8. PESA पंचायत कानून 1996 को बचाना और 32 वर्षों के बाद चुनाव कराना –

2 सितंबर 2005 को सभी पार्टियों के कुर्मी महतो नेताओं ने पेसा कानून को झारखंड हाईकोर्ट में गैर संवैधानिक सिद्ध करने में सफलता हासिल किया।  तब 5 सितंबर 2005 को संत जोसेप क्लब होल, पुरुलिया रोड, रांची में लगभग 500 आदिवासी बुद्धिजीवी और एक्टिविस्ट आदि की बैठक कर पेसा कानून को बचाने का फैसला लिया गया। आदिवासी अधिकार मोर्चा का गठन किया गया। सालखन मुर्मू को मुख्य संयोजक चुना गया। बंधु तिर्की, चमरा लिंडा, करमा उरांव, डॉ निर्मल मिंज  सहयोगी संजोजक बने। जमीन पर आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया गया। 7.5.2005 को पेसा के लिये झारखंड बंद हुआ। दुर्भाग्य दो आदिवासी मारे गए। अंततः 11.1.2010 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पेसा के तहत चुनाव कराने और अधिकार देने के पक्ष में हुआ और 2010 के नवंबर में चुनाव हुए। इस कठिन काम को सफल बनाने में डॉक्टर बी डी शर्मा, डॉ राजीव धवन और पूर्व सांसद स्वर्गीय प्रवीण राष्ट्रपाल का भारी सहयोग प्राप्त हुआ था। क्या इस के लिए सालखन मुर्मू के नेतृत्व को श्रेय देना चाहिए या नहीं?

9.   सरना धर्म (आदिवासी धर्म) की रक्षा करना –
आदिवासियों के प्रकृति- पूजा धर्म की रक्षार्थ सालखन मुर्मू के नेतृत्व में ASA, JDP, सरना धर्म मंडवा आदि ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री गृहमंत्री आदि को अनेक पत्र लिखे। धरना, प्रदर्शन, रैली, जुलूस,आंदोलन, बंदी किये। कटक हाई कोर्ट में दो मुकदमे किये। सरना धर्म मान्यता के मामले पर कोर्ट ने असहमति जाहिर किया। मगर दूसरे मामले पर सकारात्मक फैसला आया। 2015 में ओडिशा के विद्यार्थियों को ऑनलाइन स्कॉलरशिप फॉर्म भरने का निर्देश हुआ। जिसमें धर्म का भी कॉलम था। जिसमे केवल हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई का कॉलम था। तब सरना या अन्य कॉलम नही होने से धर्म संकट की स्थिति थी। सालखन मुर्मु के प्रयास से कोर्ट ने अब अन्य/ सरना के प्रावधान के लिए सरकार को निर्देश दिया।  अब यह लागू है। आर्थिक लाभ के लिये आदिवासी बिद्यार्थी हिन्दू या ईसाई कॉलम पर क्लिक कर रहे थे।
सालखन मुर्मू ने 1980 दिल्ली रैली राष्ट्रपति के ज्ञापन में, भारत के संसद में इस सवाल को उठाया है। अभी भी इसके लिये कृतसंकल्पित हैं। वे आदिवासियों के हिदू मुसलमान ईसाई आदि धर्मांतरण के खिलाफ हैं। 2021 की जनगणना में सरना धर्म कोड के पक्षधर हैं। अतएव इसके लिये सालखन मुर्मू को साथ देना ठीक है या नही ?

10. डोमिसाइल और आरक्षण आंदोलन की शुरुआत करना –

झारखंड निर्माण के तुरंत बाद 13 जनवरी 2001 को आदिवासी झारखंड जनाधिकार मंच (ए जे जे एम ) का गठन रांची में किया गया। उस दिन सभा की अध्यक्षता डॉ निर्मल मिंज ने किया था। सालखन मुर्मू को AJJM का मुख्य संयोजक बनाया गया। ajjm का उद्देश्य था झारखंडी स्थानीयता और आरक्षण का निर्धारण कर आदिवासी मूलवासियों के सपनों को सच बनाना। 21 फरवरी 2001 को ajjm ने झारखंड विधानसभा का जोरदार आक्रमक घेराव कर स्पीकर को ज्ञापन सौंपा था। उसके बाद अनेक सभा जुलूस मीटिंग आंदोलनों, झारखंड बंद आदि का कार्यक्रम लिया गया। सेंदरा सागड भी चलाया गया। दुख की बात है डोमिसाइल आंदोलन में तीन शाहिद हुए, अनेकोँ मुकदमे हुए। तबभी ajjm सफलता की दिशा में अग्रसर था। मगर खेद है कतिपय आंतरिक कमजोरियों से यह मंजिल तक नहीं पहुंच सका। मगर डोमिसाइल और आरक्षण बकवास और बेकार है बोलने वाले बड़े नेता ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस आंदोलन को जहां कमजोर कर दिया। वहीं दूसरे सत्ताधारी बड़े नेता इसको मंजिल तक ले जाने में कमजोर साबित हुए। जिन्होंने बाद में कहा कि डोमिसाइल आंदोलन हमारे जीवन की बड़ी भूल थी।  झारखंडी डोमिसाइल का व्यावहारिक प्रारूप अभी तक शायद किसी के पास तैयार नहीं है, केवल 1932 का नारा है। जबकि सलखन मुर्मू ने झारखंडी डोमिसाइल का जन  प्रारुप बनाकर 23.8. 2013 को झारखंड सरकार को सौंप दिया है।अतः सालखन मुर्मू को झारखंडी डोमिसाइल और आरक्षण आंदोलन के सच्चे हिमायती होने का श्रेय मिलना चाहिए या नहीं?

11. झारखंड अलग प्रांत के लिए प्रथम ऐतिहासिक दिल्ली रैली 30 जून 1980 का नेतृत्व करना –

  स्वर्गीय बागुन सुमरूई के 1977 में जनता दल में शामिल हो जाने के बाद सालखन मुर्मू को अखिल भारतीय झारखंड पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। तब सालखन मुर्मू ने 30 जून संताल हूल के ऐतिहासिक दिन को 1980 में एक अभूतपूर्व आदिवासी रैली का आयोजन वोट क्लब दिल्ली में किया था। जो भारी पुलिस मिलिट्री की घेराबंदी के बीच बोट क्लब से लाल किला और वापस बोट क्लब में
 जनसभा में परिणत हुआ। फिर राष्ट्रपति भवन में अपना ज्ञापन पत्र सुपुर्द किया। उस दिन दिल्ली में भारी बारिश हो रही थी। ज्ञापन पत्र में वृहद झारखंड अलग प्रांत, संताली हो मुंडा कुरुख भाषाओं की मान्यता, आदिवासी धर्म की मान्यता और संथाली भाषा की लिपि - ओल चिकि की मान्यता आदि की मांग शामिल था। उस अद्भुत रैली की सफलता से ईर्ष्या द्वेष में ग्रसित तथाकथित कुछ संताल अगुआ कई वर्षों तक सालखन मुर्मू के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहे कि सालखन मुर्मू ने हजारों लोगों को मरवा दिया, जेल भेज दिया आदि आदि। जबकि ऐसी कोई बात नहीं हुई थी। मगर चुकि रैली के दिन संसद में सांसद स्वर्गीय एके राय ने जब मामला उठा दिया कि लाखों लोग झारखंड मांगने हेतु दिल्ली आ चुके हैं तब भारत सरकार का क्या रवैया है। तब इंदिरा गांधी की सरकार ने चुकि बिना भाड़ा दिए रेल से भर भर कर लाखों लोग दिल्ली आने से उन पर बदले की भावना के साथ दूसरे दिन कार्रवाई की गई। रैली में शामिल कार्यकर्ताओं के रेल से लौटने के दौरान रेलवे स्टेशनों पर रेल पुलिस ने लाठी चलाया। लोगों को गिरफ्तार किया गया। एक प्रकार से भगदड़ मच गई, अफरा तफरी में दिल्ली से लौटने वाले आंदोलनकारियों को जरूर अनेक तकलीफों का सामना करना पड़ा था।  मगर इस ऐतिहासिक प्रथम अद्भुत दिल्ली रैली के नेतृत्व के लिए सालखन मुर्मू को श्रेय देना चाहिए कि नहीं ?

सालखन मुर्मू ने हमेशा आदिवासी मामलों पर ईमानदार कोशिश की है। तब भी जाने-अनजाने उनसे गलतियां हो सकती हैं। उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। परंतु उन पर 3 आरोप लगते रहे हैं- 

1. पार्टी बदलते रहते हैं।
 2. बीजेपी के एजेंट हैं ।
 3. चुनाव क्यों नहीं जीत पाते हैं ? 
सालखन मुर्मू के अनुसार पार्टी सीढ़ी है, मंजिल नहीं। मंजिल तो हासा -भाषा, रोजगार आदि के मुद्दे हैं। अतः कोई नेता पार्टी बदले या नहीं बदले उसकी पहचान आदिवासी मुद्दों के साथ होनी चाहिए। सालखन मुर्मू ने पार्टी जरूर बदले हैं,मगर मुद्दे नहीं । सालखन मुर्मू ने बीजेपी का साथ दिया है तो बीजेपी का विरोध भी किया है। यहां भी उनका लक्ष्य  पार्टी नहीं, मंजिल रहा है। मगर एक पार्टी विशेष के समर्थक और अधिकांश ईसाई आदिवासी उन पर बीजेपी के एजेंट होने का निराधार आरोप लगाते रहते हैं। शायद उनकी मंजिल अपनी पार्टी हितों की रक्षा करना है और बीजेपी के डर से ईसाईयत की रक्षा करना है, ना कि आदिवासियों की रक्षा करना है। किसी को चुनाव जिताना या हराना जनता के हाथ में होता है। सालखन मुर्मू एक अदना अगुआ हैं मगर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे महान हस्ती भी कभी चुनाव जीत नहीं सके थे। वैसे चुनाव जीतने या हारने से सच्चे और अच्छे नेता की पहचान नकाफी है। देश की आजादी के बाद हजारों एसटी/एससी एमएलए एमपी चुनाव जीत गए हैं मगर एसटी/एससी जन समुदाय की हालत आज भी कैसी है ? हम सब जानते हैं। 
आशा है हम सब सच को सच और झूठ को झूठ बोलकर समाज के साथ न्याय करेंगे और आदिवासी समाज के अस्तित्व ,पहचान, हिस्सेदारी को समृद्ध करेंगे। झारखंड और वृहद झारखंड की रक्षा करेंगे।

 सेंगेल जोहार।

लेखिका: सुमित्रा मुर्मू

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