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एंग सईहा : एक कविता कुंड़ुख में..

एंग सईहा 

अक्कु नीन गेच्छम ओक्कर ओत्ख़ीम रअ़दी,
ह'ई एन अख़एन निंग्गन,
का नीन नेख़य तीम ईदरिम मला बअ़दी।
होरमर ती नुड़दी ससईतन,
अरा सहआगे सीखरआ लगदी छछेम रअर नीन।
एन्देरगे का ईद मुक्कर गहि मेद जे तली ।
मे:द ता हुरमी गोट बदलारना हूं 
ओंटे-ओंटे नुंजनन अख़तिई।
इन्ना नीन इवंदा कोंहा परदकी 
एन्देर अख़ओय नीन  एन्दरा- एन्दरा सहचकी होतंग,
सन्नी पूंप ती अयंग छांव गूटी मनना गे।
लोमचोमोरना ती लंका ननना गही तंगआ ख़ीरी, 
उज्जना भईर ता  टूड़ा लगदी।
गेच्छा ओक्कर ओतख़ीम रअ़दी ।
अखी- पखी मानिम एरके
मुक्कर एत्थेरओर
एकदर इबड़ा सस्तीन ती
लंका ननर हेभेरका चुकुरका रअनर।
नीन कुँड़ुख मुक्का तलदी,
पोस-पलादरी निछोंद उज्जना गही कत्थसोर,
बदलारई काली निंग्गा गे। 
नीन गेच्छा उक्का एंग सईहा तलदी, 
एंग सईहा तलदी।
कवयित्री --    
नीतू साक्षी टोप्पो 
पेल्लो कोटवार,
अद्दी अखड़ा, रांची।

eX saihA qalwi
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haHi ! e:n axLen niXgan.
kA ni:n ne:KLay qim enwerLim malA baHwi,
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