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आदिवासी भाषा संस्‍कृति में योगदान के लिये हमेशा याद की जाएंगी सीता टोप्पो

85 वर्षीय आदरणीय श्रीमती सीता टोप्पो  अब इस दुनियां में नहीं रहीं। वे दिनांक 15.05.2021 को 8:30 बजे सुबह अंतिम सांस लीं। वे एक कुशल गृहणी एवं समाज सेवी थीं। उनके पति स्व 0 राजू उराँव रॉ में एरिया आफिसर थे। उनकी 5 बेटियां तथा 1 बेटा हैं। वे 15 नाती-पोती की नानी-दादी बनीं। उनका निवास करमटोली, राँची में है।

वे हमेशा ही गरीब आदिवासी लड़के-लड़कियों का प्रेरणाश्रोत रहीं। वे हमेशा ही आदिवासी भाषा संस्कृ ति के विकास में बढ़ चढ़कर हिस्सार लेती थीं। कुँड़ुख भाषा की लिपि तोलोंग सिकि के संस्थामपक डा0 नारायण उराँव ‘सैन्दार’ का कहना है कि वर्ष 1992-93 में सर्वप्रथम रांची में कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के विकास हेतु अपने आवास को पत्राचार एवं आवश्य क बैठक के लिए अनुमति दीं और यह काम आगे बढ़ता गया। वैसे रिस्ते् में श्रीमती सीता टोप्पो , डॉ0 नारायण उरांव की सास मां थीं। झारखण्डर अलग प्रांत आंदोलन के समय 1992-93 के आस-पास लिपि विकास की परिकल्पसना को अंजाम देने वालों को मदद करने वाले विरले लोगों में से श्रीमती सीता टोप्पो  भी एक थीं। कुँड़ुख भाषा की तोलोंग लिपि के विकास में श्रीमती सीता टोप्पोक के योगदान को कुँड़ुख समाज हमेशा याद करेगा। अद्दी कुँड़ुख चा:ला धुमकुड़ि‍या पड़हा अखड़ा, संस्थाे के समस्ती सदस्योंग की ओर से श्रीमती सीता टोप्पोी, को विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्व,र उनकी आत्माो को शांति प्रदान करे।

रिपोर्टर: श्री भुनेश्वसर उराँव, सहायक शिक्षक 
जतरा टाना भगत विद्यामंदिर बिशुनपुर, घाघरा, (गुमला)

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