यह आलेख पद्मश्री डॉ रामदयाल मुण्डा एवं साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख़ भाषा) से सम्मानित डॉ निर्मल मिंज का कुँड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास में उनके योगदान एवं उनके विचार को केंद्रित करके लिखा गया है। डॉ मुण्डा ने कहा था- 'हमारे देश के आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं के लिए एक सामान्य लिपि विकसित करने के डॉ. नारायण उरांव के प्रयासों से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। तोलोंग नाम उनमें से अधिकांश को स्वीकार्य होगा और इसे लिखने की शैली उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं के अनुरूप है।...' उधर डॉ मिंज का कथन था- 'डॉ. नारायण उरांव ‘सैन्दा।’ द्वारा आविष्कार की गई 'तोलोंग लिपि' एक बहुत ही सामयिक उद्देश्य की पूर्ति करती है। तोलोंग एक पारंपरिक आदिवासी परिधान है जिसमें शरीर के चारों ओर डिजाइन और लपेटने की कला है। सौभाग्य से एक ही शब्द 'तोलोंग' झारखंड की सभी आदिवासी भाषाओं में उस परिधान के प्रतीक के लिए प्रयोग किया जाता है। यह आदिवासी सामाजिक-सांस्कृतिक वस्तुओं का अभिन्न अंग है।' इन दोनों स्वर्गीय आदिवासी बुद्धिजीवियों की बातें पढ़ने के लिए नीचे दिये पीडीएफ में पढ़ें या उस पीडीएफ फाइल को डाननलोड करके अपने कम्प्युटर या मोबाइल में पढ़ें..
Sections