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कुंड़ुख़ भाषा की तोलोंग सिकि के संस्थापक डॉ. नारायण उरांव को विभागीय एवं सामाजिक सम्मान

भारत सरकार के Linguistic Survey of India  (लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया) विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार कुंड़ुख़ एक उतरी द्रविड़ भाषा समूह की भाषा है। इस भाषा को बोलने वाले उरांव आदिवासी एवं अन्य समूह के लोग अपने देश भारत में लगभग 50 लाख हैं। पिछले दो दशक पूर्व तक इस भाषा की कोई भी मान्यता प्राप्त लिपि नहीं थी। पर झारखण्ड अलग प्रांत आन्दोनल के साथ यहां के लोगों ने भाषायी पहचान का आन्दोलन भी छेड़ रखा था और वर्ष 2016 में झारखण्ड सरकार में कुंड़ुख़ भाषा की लिपि‚ तोलोंग सिकि के माध्यम से मैट्रिक में कुंड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा इस लिपि से लिखने की अनुमति मिली है। इस भाषायी पहचान को मूर्त रूप दिलाने में पेशे से चिकित्सक डॉ. नारायण उराँव एवं उनके साथियों के लगन एवं मेहनत का प्रतिफल है। वर्तमान में डॉ. नारायण उरांव‚ महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कालेज अस्पताल‚ जमशेदपुर में चिकित्सा पदाधिकारी के पदपर कार्यरत हैं।

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डॉ. नारायण द्वारा लिपि विकास का कार्य वर्ष 1989 में आरंभ किया गया‚ जब वे दरभंगा मेडिकल कॉलेज‚ लहेरियासराय (बिहार) में एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर रहे थे। कई वर्षों तक शोध एवं विचार-विमर्श के बाद पहली बार 1993 में इस लिपि का आरंभिक स्वरूप जनमानस के अवलोकनार्थ प्रदर्शित किया गया‚ जिस पर हिन्दी दैनिक ‘आज’ रांची में विस्तृत रिपोर्ट छपा। उसके बाद 1996, 1997 एवं 1998 में कई भाषाविदों‚ शिक्षाविदों एवं समाज सेवियों के साथ विमर्श कर 1999 में दो पूर्व कुलपति डॉ. रामदयाल मुण्डा एवं डॉ. (श्रीमती) इन्दु धान द्वारा संयुक्त रूप से तोलोंग सिकि को जनमानस के व्यवहार के लिए लोकार्पित किया गया। 
15 नवम्बर 2000 को झारखण्ड अलग राज्य स्थापित होने के बाद झारखण्ड सरकार कार्मिक‚ प्रशासनिक सुधार तथा राज्यभाषा विभाग के पत्रांक 129 दिनांक 18.09.2003 के माध्यम से कुंड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोंग सिकि है की घोषणा की गई है। इसके आलोक में सामाजिक मांग पर झारखण्ड अधिविद्य परिषद‚ रांची द्वारा वर्ष 2009 में एक विद्यालय के छात्रों के लिए मैट्रिक में कुंड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा इस लिपि लिखने की अनुमति मिली। उसके बाद वर्ष 2016 से इच्छुक सभी छात्रों के लिए मैट्रिक में कुंड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा तोलोंग सिकि में  लिखने की अनुमति दी गई है। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार में वर्ष 2018 में कुंड़ुख़ भाषा को राजकीय भाषा का दर्जा मिला है और इस लिपि में शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है।
इस लिपि का कम्प्यूटर वर्जन अर्थात कम्प्यूभटर फोन्ट kellytolong  के नाम से विकसित हो चुका है तथा अनेक Mobile App भी विकसित हुआ है। लिपि विकास एवं सामाजिक स्वीकृति तथा सरकारी मान्यता तक के लम्बे समय अन्तराल में कई सामाजिक संस्थाओं तथा कई सरकारी विभागों द्वारा डॉ. नारायण उरांव को उनके इस कार्य के लिए सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र दिया गया है‚ जो इस प्रकार है -
1.    युवा‚ संस्कृति एवं खेल मंत्रालय‚ झारखण्ड सरकार द्वारा दिनांक 28 अक्टूबर 2011 को डॉ0 नारायण उराँव को कुँड़ुख़ भाषा की तोलोंग सिकि (लिपि) का आविष्कार के लिए सांस्कृतिक सम्मान 2011-12 प्रदान किया गया।
2.     बी.सी.सी.एल. कोयला नगर‚ धनबाद में 30.09.2016 को एक समारोह में डॉ0 नारायण उराँव ‘सैन्दा’‚ को कुँड़ुख़ भाषा में विशेष कार्य (कुँड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोङ सिकि के विकास के लिए) किये जाने के लिए बी.सी.सी.एल. के निदेशक (कार्मिक) एवं निदेशक (वित्त) द्वारा बी.सी.सी.एल. कोयला भारती राजभाषा सम्मान 2016 प्रदान किया गया।         
3.     कुँड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा‚ दिनांक 21.10.2016 को अलिपुरद्वार जंक्सन (प0 बंगाल) में आयोजित तीन दिवसीय कुँड़ुख़ भाषा सम्मेलन में डॉ0 नारायण उराँव को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोङ सिकि विकसित किये जाने पर‚ कुँड़ुख़ भाषा के प्रोन्नति में उनके आजीवन योगदन के लिए ‘‘ऑनरेरी फेलोसिप - 2016 सम्मान’’ से सम्मानित किया गया। 

आलेख -
श्रीमती फुदो देवी
शोधार्थी 
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग‚
रांची विश्वविद्यालय‚ रांची।

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