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‘उरांव लोक साहित्य’ और ‘पुरखर गही खीरी’ पुस्‍तकों का विमोचन संपन्‍न

दिनांक 7 नवंबर 2021 को कुरुख (उरांव) साहित्य अकादमी‚ रांची के तत्वाधान में आदिवासी कॉलेज छात्रावास करम टोली‚ रांची के पुस्तकालय भवन में डॉ. तेतरू उरांव द्वारा लिखित ‘उरांव लोक साहित्य’ तथा डॉ. मासातो कोबायशी (टोक्यो युनिवर्सिटी, जापान) एवं डॉ. तेतरू उरांव के द्वारा संपादित ‘पुरखर गही खीरी’ किताब का लोकार्पण हुआ। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीमती गीताश्री उरांव पूर्व शिक्षा मंत्री झारखंड सरकार थीं। उन्हों ने अपने वक्तोव्य( में कहा कि यह पुस्तक हमारे लिए प्रेरणा स्रोत होगा, हमारी मातृभाषा  के द्वारा परंपरा लोक कथा लोकगीत का संग्रहण निश्चित रूप से डॉक्टर तेतरू उरांव और और डॉक्टर मासातो कोबायशी के मेहनत को दर्शा रहा है। यह किताब कुरुख समाज के लिए मील का पत्थर साबित होगा जिस तरह से हमारी भाषा का संरक्षण होनी चाहिए थी वह अभी तक नहीं हो पाई है झारखंड अलग राज्य तो बना लेकिन यहां के लोगों के मौलिक अधिकार मिल नहीं पाई है सरकार के द्वारा यहां की जनजाति भाषाओं पर जो कार्य होना चाहिए था नहीं हो सका है वर्तमान सरकार यहां की जनजातीय भाषाओं पर काफी कार्यरत है। कुड़ुख़ भाषा साहित्य में बहुत से कार्य हो रहें है लोग कार्यरत भी हैं परंतु अभी तक संपूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाया है कुड़ुख़ भाषा की पढ़ाई प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक होने की आवश्यकता है। हमारी कुड़ुख़ मातृभाषा की एक अलग अकादमी की आवश्यकता है ताकि कुड़ुख़ भाषा की संपूर्ण विकास हो सके। हमें प्रखर रूप से इस बात को सरकार तक ले जाने की जरूरत है । हमें संगठित रूप से कुड़ुख़ भाषा एवं साहित्य के विकास में कार्य करने की जरूरत है । 

लोकार्पणलोकार्पण

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एवं पुरखर गही खीरी के संपादक डॉक्टर मसातो कोबायसी ने गूगलमीट के माध्यखमसे कहा कि प्रथम बार 2003 में झारखंड आए और कुड़ुख़ भाषा पर स्वर्गीय बबलू तिर्की के साथ मिलकर कार्य किए। वे दोनों गांव गांव जाकर कुड़ुख़ लोककथा को रिकॉर्डिंग करने लगे।  उनके स्वर्गवास होने के बाद डॉ. तेतरू उरांव के साथ मिलकर कार्य करने लगे। उनके द्वारा ही संकलित उरांव लोक कथा का पुस्तक के रूप में लाने का प्रयास हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अपनी भाषा को बचाने के लिए आपस में अपनी भाषा से बात करें और साहित्य की रचना करें। ताकि कुड़ुख़ भाषा को एक समृद्ध अंतरराष्ट्रीय भाषा बनाया जा सके। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डोरंडा महाविद्यालय रांची के कुड़ुख़ भाषा के विभागाध्यक्ष डॉ॰ नारायण भगत ने कहां कि डॉ. तेतरू उरांव द्वारा संग्रह किए गए पुस्तक के रूप समाज के बीच में आना इसके परिश्रम का फल है । डॉ’ मसातो कोबायसी एक जापानी नागरिक होते हुए भी झारखंड की भाषा संस्कृति लोक कथा कहानियां रीति-रिवाजों को गांव-गांव घूमकर संग्रह किए तथा किताब का रूप दिए यह कार्य हमारे लिए प्रेरणादायक है। इसके अतिरिक्त डॉ. रामकिशोर भगत डॉ. तेतरू उरांव‚ डॉ. नारायण उरांव, श्री सुशील उरांव, श्रीमती अंजनी कुमारी, श्री बहुरा उरांव सुश्री सीता कुमारी उरांव श्री महेश अगस्तीन कुजूर ने भी विचार रखे। इस कार्यक्रम का संचालन श्री संतोष तिग्गा ने किया. इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से शारदा तिर्की, आरती कुमारी, सुनीता कुमारी, शिव शंकर उराव,  संगीता तिर्की,  पुष्पा कुमारी, पवन उरांव,  आदि उपस्थित थे।

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