यह मार्मिक आलेख एक प्रशिक्षु का है जिन्होंने पिछले दिनों जमशेदुपर में आयोजित तोलोंग सिकि प्रशिक्षण शिविर में अपनी मंडली के साथ हिस्सा लेकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। जरूर पढि़ये और अपनी प्रतिक्रिया दीजिये..
मोबाईल तथा इंटरनेट के माध्यम से ज्ञात हुआ कि उरांव जाति की भाषा कुंड़ुख़ की लिपि तोलोंग सिकि के नाम से विकसित हो चुकी है और टाटा स्टील फाउण्डेशन तथा अदद्यदी कुंड़ुख़ चाला धुमकुडि़या पड़हा अखड़ा, रांची द्वारा संयुक्त रूप से कुंड़ुख़ भाषा तोलोंग सिकि पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला दिनांक 11 जुलाई 2023 से 15 जुलाई 2023 तक आयोजित किया जा रहा है। जानकारी मिलने पर संपर्क किये जाने के बाद अद़दी अखड़ा के सदस्यों के साथ संपर्क किया गया। उसके बाद दिनांक 11 जुलाई 2023 से 15 जुलाई 2023 तक होने वाले कार्यशाला में शामिल होने की सहमति बनी। उसके बाद हमलोग 11 तारीख को ही रोहतास गढ़ से टाटानगर के लिए 4 महिला और दो पुरुष तोलोंग सिकी प्रशिक्षण लेने के लिए पुरूषोत्तम रेल गाड़ी से लेकर रवाना हुए तथा रात 8.00 बजे द्राईबल कल्चर सेन्टर, जमशेदपुर पहूंचे। उसके बाद आज 15 तारीख को हम लोग वापस हो रहे हैं।
ट्रेनिंग के दौरान बिहार झारखंड समेत बंगाल के बहन-भाई और अभिभावक के साथ-साथ रहने का अवसर प्राप्त हुआ और तोलोंग सिकी के अविष्कारक डॉ नारायण उरांव सर से मिलने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। 04 दिन ट्रेनिंग के दौरान अपने लोगों के बीच में रहकर बहुत कुछ सीखने को मिला और अपने लोगों के बीच में उठना -बैठना , खाना-पीना नाचना -गाना, बहुत ही अच्छा लगा। ऐसा माहौल एक अजीब तरीके का साथ छोड़ गया। जो अपने लोगों के साथ इतना दिन का मिलना जुलना बहुत कुछ सीखा..गया। जिसे बहुत जल्दी में भूलाया जाना मुश्किल लगता है लेकिन क्या बताया जाए वक्त की मजबूरी ने किसी को छोड़ा नहीं। टाटानगर से लौटने के दौरान रांची के हमारे एक अभिभावक सम्मानित भाई श्री फूलदेव भगत जी (जो डिबीडीह,रांची में चौकनी रेस्टूरेंट के संचालक हैं) के द्वारा भी काफी मान सम्मान मिला जो काबिले तारीफ रहा।
अपने उरांव समाज में जन्मे और आधुनिक भारत में अविष्कृत भाषा तोलोंग सिकी के जनक डॉ नारायण उरांव के द्वारा दी गई जिम्मेवारी को हम लोग रोहतासगढ़ में ईमानदारी से अपने लोगों के यहां तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे और खासकर छोटे बच्चे को तोलोंग सिकी सीखाने का प्रयास रहेगा क्योंकि हमारे छोटे बच्चे ही कल के भविष्य हैं । कई वर्षों के कठिन मेहनत और तपस्या के बाद हम लोगों को एक लिपि प्राप्त हुआ और वह है तोलोंग सिकि और इसके लिए हम समस्त भारत के उरांव आदिवासी लोगों को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने को लेकर आवाज को बुलंद करना होगा तब जाकर हम लोगों की भाषा और लिपि अस्तित्व में आ पायेगी।
वर्तमान में झारखंड और बंगाल में ही इसको मान्यता प्राप्त हुआ है अगर हम भारत के समस्त उरांव जाति के लोग इस पर चर्चा करके कोई रास्ता निकालने का प्रयास करेंगे तो अवश्य निकलेगा। हम लोग जानते हैं जब-जब दुनिया का आदिवासी बोला है तब- तब व्यवस्था का सिंहासन डोला है। हम लोगो को किसी के द्वारा सदियो से थोपी गई रोमन और देवनागरी लिपि को ढो रहे हैं, यह सरासर हमारे साथ अन्याय हुआ ,जबकि हमारी लिपि तोलोंग सिकी तैयार हो चुकी है। बस अब प्रयास की आवश्यकता है। हम सबको क्योंकि यह विचारणीय सवाल है और इसका समाधान भी हमारे ही समाज के लोगो को निकालना पड़ेगा । और इस समस्या का समाधान हम लोगों को संवैधानिक तरीके से निकालना होगा।
यह मेरा व्यक्तिगत राय एवं सुझाव है बाकी आप सब के ऊपर यह निर्भर करता है की इस सोच को आप अपने ऊपर कितना अमल में ला पाते हैं।
पुनः फिर से आप सबको जय धर्मे।
जय जोहार ?
आलेख: मनोज उरांव (रोहतास गढ़,बिहार )।