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कुँडुख़ (उराँव) भाषा शिक्षक पद सृजन-सर्वे में भारी गड़बड़ी, सुधार नहीं हुआ तो कुँडुख़ समाज आंदोलन करने के लिए हो जाएगा बाध्य

आदिवासियों की विलुप्त होती कुँडुख़, मुण्डा, हो, खड़िया आदि भाषा को बचाने के लिए सरकार ने प्राथमिक/ मध्य विद्यालय स्तर पर भाषा शिक्षक बहाली कराने का निर्णय लिया है। यह निर्णय सराहनीय है। लेकिन वहीं पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के गुमला जिला के भरनो प्रखंड को छोड़कर, गुमला जिला के शेष सभी प्रखंडो में कुँडुख़ ( उराँव ) भाषा-पद सृजन में भारी गड़बड़ी किया गया है जिसने कुँडुख़ समाज की नींद उड़ा दी है। झारखंड सरकार की उचित नीति न होने के कारण प्राथमिक/ मध्य विद्यालय के  प्रधानाचार्य के द्वारा कुँडुख़/उराँव बच्चों का नामांकित संख्या विद्यालय में अधिक होने के बावजूद कुँडुख़ के स्थान पर नागपुरी का पद सृजित कर दिया गया है।
उराँव आदिवासी समुदाय ने गड़बडी का कारण पता करने के लिए राजकीयकृत मध्य विद्यालय, विश्रामपुर पहुंच कर शिक्षको से पूछताछ की।   पता चला कि विद्यालय में लगभग 90% कुँडुख़/ उराँव बच्चों का नामांकन के बावजूद, बच्चों के द्वारा बोली जानी वाले सादरी भाषा (बोली) को आधार बना कर कुँडुख़/ उराँव शिक्षक पद सृजन के स्थान पर नागपुरी का पद सृजन किया गया है। इधर आज कुँडुख़ भाषा संरक्षण समन्वय समिति झारखंड प्रदेश ने कार्तिक उराँव आदिवासी कुंडुख विद्यालय, छारदा में  बैठक कर इस गंभीर विषय को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने का निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री से मिलने के बाद भी यदि समस्या का समाधान नहीं हुआ तो कुँडुख़/ उराँव समाज आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा| इसकी तैयारी की जा रही है। कुँडुख़ समाज को ऐसा लग रहा था कि सरकार ने प्राथमिक/ मध्य विद्यालय स्तर पर आदिवासी भाषा शिक्षक बहाल करने से अब हमारा कुँडुख़ भाषा  को बिलुप्त होने से बचाया जा सकता है। लेकिन परिस्थिति इसके विपरित दिखाई पड़ रही है। अब तक कुँडुख़ के स्थान पर संस्कृत भाषा को अधिक थोपा गया है। अब ऊपर से नागपुरी को प्राथमिक विद्यालयों में घुसाया जा रहा है। ऐसे में क्षेत्र बहुल आदिवासी भाषा कुँडुख़ का विकास कैसे होगा ?
         आदिवासी भाषा शिक्षक पद सृजन हेतु फिलहाल सरकार की ओर से सर्वे कराया गया है।  उचित नीति न होने के कारण प्राथमिक विद्यालयों के प्राचार्यों ने बच्चों की बोली सादरी को आधार बनाकर नागपुरी का पद सृजन किया गया है। गुमला जिला के भरनो प्रखंड को छोड़कर सभी प्रखंडों में  सर्वे गलत तरीका से किया गया है। सादरी बोली का प्रभाव ने कुँडुख़/ उराँव भाषा को विलुप्त करने  की स्थिति तक पहुँचा दिया है। सरकार का उचित नीति न होने के कारण प्राथमिक/ मध्य विद्यालय के प्रधानाचार्य ने कुँडुख़/ उराँव बच्चो के द्वारा सादरी बोली बोले जाने के कारण कुंडुख/ उराँव बच्चो का नामांकन विद्यालय में सबसे ज्यादा होने के बावजूद भी नागपुरी शिक्षक का पद सृजन किया गया। जबकी पांचवी अनुसूची क्षेत्र के सभी कोटी के विद्यालय में  कुँडुख़/ उराँव बच्चों के नामांकन के आधार पर पद सृजित करना था। तथा जिस कुँडुख़/ उराँव गाँव में पुरी तरह से कुंडुख भाषा विलुप्त हो गई है वहां के सरकारी विद्यालय में कुँडुख़ शिक्षक का बहाली करना सरकार का प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए। इस बैठक में कमिटी के अध्यक्ष, अरविंद उराँव- भरनो, व सदस्य रतिया उराँव- भण्डरा संजय उराँव- लोहरदगा, सुगन्ती उराँव- किस्को, बुधेश्वर उराँव- सिसई, पंकज उराँव- बेड़ो, रंथु उराँव- किस्को, धुमा उराँव- सिसई, गजेन्द्र उरांव, एतो उराँव, बुधराम उराँव ,बीरेन्द्र उराँव, भुनेश्वर उराँव- घाघरा गंगा भगत, खुदी बड़ाईक और प्रभात उराँव इसमें  उपस्थित  हुए।

रिपोर्टर 
अरविंद उराँव
कार्तिक उराँव आदिवासी कुंडुख़ स्कूल  मंगलो सिसई, गुमला (झारखंड) के प्रिन्सिपल

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