तोलोंग सिकि कुड़ुख आदिवासी भाषा की लिपि की विकास यात्रा ने एक नयी पीढ़ी तक का सफर तय कर लिया है । 28 वर्षों यह सफर एक कठिन यात्रा की तरह पूरी हुई है। आज भी यह सफर अपनी मंजिल पूरी नहीं कर पाया है परंतु तोलोंग सिकि को आधुनिक भाषा लिपि के रूप में सामाजिक मान्यता मिल चुकी है। यह हमारे सफलता की महत्वपूर्ण सीढ़ी है।
मुझे अपने आजसू (ऑल झारखंड स्टुडेंटस युनियन) छात्र आंदोलन के वे दिन याद हैं जब हम अपने दोस्तों और आंदोलनकारी साथियों से मिलकर आदिवासी संस्कृति और पहचान के सवाल पर लंबी चर्चा किया करते थे। इन्हीं चर्चाओं से निकली थी वर्श 87-88 में कुड़ुख भाशा के विकास के लिये अपनी लिपि विकसित करने की बात। डा0 नारायण उरॉंव हमारे आंदोलन के सहयोगी थे। उन्होंने इस विचार को अपने जेहन में डाला और वहीं से तोलोंग सिकि के अविश्कार की कहानी शुरू हुर्इ। 1989 में उन्होंने कुडु़ख लिपि के विकास के लिये दृाोध का कार्य दृाुरू किया। लिपि का अविश्कार एक आसान कार्य नहीं था। डा0 नारायण उरॉंव ने बड़े ही धैर्य के साथ इस लिपि विकास के कार्य को आगे बढ़ाया है। मैं एक लंबे समय तक उनकी कोशिश को करीब से देखता रहा हुँ। यद्यपि मेरी रूचि और ज्ञान इस कठिन कार्य के प्रति काफी कम थी फिर भी डा0 नारायण समय-समय पर लिपि के विकास में आने वाली कठिनार्इयों एवं उनके विभिन्न पहलुओं पर अवय चर्चा करते रहे हैं। लिपि के विकास में मेरी भूमिका नहीं है परंतु मैने एक आंदोलनकारी मित्र के रूप में लिपि के विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में उसके प्रचार-प्रसार में थोड़ा समय दिया है। मुझे डा0 नारायण उरॉंव ने अपने दृाोध के 10 वर्शों के बाद 1999 में अपनी विकसित हो रही लिपि को जन मानस तक पहुँचाने और तोलोंग सिकि के विकास के लिये समाज के प्रबुद्ध वर्गों से महत्वपूर्ण सूझाव प्राप्त करने के लिये एक पुस्तिका प्रकािात करने की जिम्मेवारी सौंपी। मैंने अपनी संस्था Tradition Revival and People’s Awakening Advancement के माध्यम से अगस्त 1999 में ”ग्राफिक्स ऑफ तोलोंग सिकि“ का प्रकाान किया यह पुस्तिका डा0 नारायण उरॉंव ने ही तैयार की थी ,जिसके द्वारा तोलोंग सिकि के प्रारंभिक दौर में विकसित किये गये लिपि की अवधारणा उसके ध्वनि संकेतों तथा लिपि में प्रयोग किये गये आदिवासी समाज के कर्इ प्रतीक चिन्हों के बारे में चर्चा की गयी। यह एक महत्वपूर्ण कदम था और मुझे याद है इस पुस्तिका के प्रकाान के बाद एक सामाजिक चेतना का विकास हुआ जो लिपि के विकास यात्रा को आगे बढ़ाने में काफी उत्साहवर्द्धक साबित हुआ।
इसी प्रकार कर्इ प्रकार की दृांकाओं, परिवर्तनों और कठिन परिस्थितियों से गुजरता हुआ लिपि विकास का यह सफर आज अपने मंजिल पहुँचने के करीब है। मैं अपने अन्य सामाजिक कार्यों में व्यस्तता के कारण इस पूरी यात्रा में डा0 नारायण उरॉंव को सक्रीय रूप से सहयोग नहीं कर पाया लेकिन आज भी मैं उनके इस कार्य के प्रति आस्था और विवास व्यक्त करते हुये तोलोंग सिकि लिपि के विकास के लिये हमेाा उनके साथ हुँ। मैं पूरे दिल से डा0 नारायण उरॉंव के द्वारा किये जा रहे कठिन प्रयासों की सराहना करता हुँ। मैं संपूर्ण कुड़ुख समुदाय से यह निवेदन करना चाहता हुँ कि अपनी भाशायिक अस्मिता और सामाजिक पहचान की रक्षा के लिये सभी पूरी तत्परता के साथ आगे आयें। भाशायिक विकास एवं सामाजिक पहचान की रक्षा के लिये तोलोंग सिकि लिपि का विकास इस नये युग में पूरे समाज विोश कर नयी पीढ़ी के लिये एक बड़ी खोज है। मैं डा0 नारायण उरॉंव सैंदा को अपनी दृाुभकामनायें देता हूॅु और र्इवर से प्रार्थना करता हुँ कि उन्हें अपने इस कार्य के लिये पूरी मानसिक ताकत प्रदान करे ताकि हम अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें।
- श्री प्रभाकर तिर्की
(लेखक : झारखंड आंदोलन का साथी एवं तोलोंग सिकि लिपि विकास का एक सहयोगी, 18 अगस्त 2018.)