Kurukh literary society of India ( कुँड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी ऑफ़ इंडिया ) नई दिल्ली द्वारा आयोजित 18 वां राष्ट्रीय कुँड़ुख़ सम्मेलन 2025 सम्पन्न हुआ। यह राष्ट्रीय अधिवेशन 24 अक्टूबर से 26 अक्टूबर 2025 तक स्थान - झारसुगुड़ा उड़ीसा मे आयोजित किया गया था ।इस आयोजन में कुड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी आफ इंडिया के सभी चैप्टर ( राज्य) उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, महाराष्ट्र, चेन्नई, दिल्ली, नेपाल इत्यादि से कुड़ुख़ साहित्यकार, लेखक, बुद्धिजीवी, कुड़ख़ भाषा के लेक्चर, प्रोफेसर, शिक्षक, शिक्षिकाएं, शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं शामिल हुए।
कुड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी आफ इंडिया, नई दिल्ली द्वारा विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में डॉ नारायण उरांव "सैदा" एवं फा. अगस्तीन केरकेट्टा को आमंत्रित किया गया था। वे दोनों दिनांक 25.1.2025 पहूंचे, जिन्हें मंच पर आमंत्रित कर बच्चों द्वारा स्वागत गीत गाकर स्वागत किया गया साथ ही साथ आदिवासी गमछा और स्मृति चिन्ह दे कर सम्मानित किया गया। डॉ नारायण उरांव ने अपने वक्तव्य में कुड़ुख़ भाषा की लिपि विकास पर बात रखें। उन्होंने कहा कि - वर्तमान में तोलोंग सिकि (लिपि) यूनिकोड ब्लॉक में शामिल कर लिया गया है। यह कुँड़ुख़ भाषा भाषीयों के लिए खुशी की बात है। यूनिकोड से संबंधित जानकारी हेतु गूगल में सर्च किया जा सकता है।
The Unicode Standard, Version 17.0
Direction:-Left-to-right
Languages:- kurukh
{ ISO 15924 tols(299) tolong siki }
Unicode alias :- tolong siki
Unicode range:- U+11DB0-U+11DEF
आशा है, बहुत जल्द गूगल पर भी यह आ जाएगा। डॉ नारायण उरांव द्वारा यह भी बताया गया कि सामाजिक स्तर पर एक तमिल ग्रंथ का कुड़ुख़ में अनुवाद हो रहा है तथा तोलोग सिकी (लिपि) में लिप्यंतरण भी किया जा रहा है। झारखंड सरकार द्वारा वर्ष 2003 में तोलोंग सिकि को कुड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में मान्यता प्रदान किया गया है। वर्तमान में इससे मैट्रिक इंटर में इस लिपि से भी बच्चे एग्जाम लिख रहे हैं। झारखंड में देवनागरी लिपि एवं तोलोंग सिकि (लिपि) के माध्यम से कुड़ुख़ भाषा मैट्रिक, इंटर युजी, पीजी की पढ़ाई हो रही है। डॉ नारायण उरांव द्वारा यह भी बताया गया कि टाटा स्टील फाउंडेशन के सहयोग से पश्चिम बंगाल बिहार और झारखंड में लगभग 90 कुड़ुख़ भाषा सेन्टर चलाये जा रहे हैं, जहां तोलोंग सिकि लिपि से कुँड़ुख़ भाषा मे पढ़ाई लिखाई हो रही है। सम्मेलन में उपस्थित सभी विद्वत जन तोलोंग सिकि लिपि को सहजता से स्वीकार किये । गिनती वर्णमाला चार्ट, स्कूली स्तर में समझने के लिए बनाई गई है।
रांची विश्वविद्यालय रांची के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के कुछ छात्रों के प्रश्न पर आठवीं अनुसूची मे कुँड़ुख़ भाषा बिना लिपि का भी शामिल हो सकता है या नहीं। इस प्रश्न डॉ नारायण उराँव ने जवाब देते हुए कहा कि - 8वीं अनुसूची में शामिल होने के लिए साहित्य रचना देखा जाता है। और साहित्य रचना के लिए किसी न किसी लिपि को तो अपनाना होगा। इसके लिए संबंधित राज्य सरकार द्वारा अधिकारिक घोषणा पत्र की आवश्यकता होती है। अगर आदिवासी पहचान को बचाना है तो आदिवासी भाषा संस्कृति समाज आधारित लिपि की आवश्यकता होगी उधार की लिपि से आदिवासी पहचान को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। कुछ छात्रों ने जवाब दिया कि हमें देवनागरी लिपि में पढ़ना है। डॉ नारायण उरांव ने प्रश्न का उत्तर दिया आपकी भाषा आदिवासी ट्राइबल भाषा है और आप देवनागरी में लिखिएगे तो देवनागरी आर्य भाषा परिवार की लिपि है और आर्य भाषा परिवार वेद के आधार पर बनी है । तो क्या उरांव भाषा की संस्कृति परंपरा वैदिक भाषा संस्कृति की ओर ले जाएगा। बाकी आप छात्रों की मर्जी आप जिस भाषा लिपि में लिखना चाहें। परन्तु , समाज भी देखना चाहेगा कि वर्तमान युवा पीढ़ी के बच्चे, समाज को किस ओर ले जाना चाहते हैं और उसका आधार क्या है ?
रिपोर्टिंग :- शिव शंकर उरांव
शोधार्थी :- कुँड़ुख़ विभाग रांची यूनिवर्सिटी रांची
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