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आदिवासी परंपरा में मौसम पूर्वानुमान

विगत 7 वर्षों से ग्रामीण लोकज्ञान के अनुसार मौसम पूर्वानुमान कर रहे थाना - सिसई, जिला - गुमला (झारखण्ड ) के सैन्दा् एवं सियांग गाँव के निवासी गजेन्द्रा उराँव (65 वर्ष, फोटो में बायें) तथा श्री बुधराम उराँव (70 वर्ष, फोटो में दायें) द्वारा घर में रखा हुआ पिछले वर्ष का धान (बीज वाला धान) को देखकर मौसम पूर्वानुमान किया गया। मौसम पूर्वानुमान-कर्ता-द्वय ने कहा कि – इस वर्ष 2021 में अपने क्षेत्र में मझील बरखा है। बाद में नेग बरखा है। ग्रामीण लोकज्ञान मौसम पूर्वानुमान के अनुसार हरियनी पूजा से करम पूजा के बीच का समय को मझील बरखा का समय माना गया है तथा करम पूजा से सोहराई पूजा तक के समय को पछील बरखा का समय कहा जाता है। इसी तरह सरहूल पूजा से हरियनी पूजा (रथ यात्रा के दूसरा दिन यानि आषाढ़ शुक्लस तृतीया) तक का समय काल को ग्रामीण मौसम पूर्वानुमान के दृष्टि से पहिल बरखा का समय माना गया है।
    मौसम पूर्वानुमान के संबंध में उराँव समाज में एक मौसमी गीत इस प्रकार है – 
-    आसारी जोत बरआ लगी भईया रे,
   गोला अड्डो एलेचा लगी, रे ।।2।।
-    अम्बगय एलचय गोला अड्डो,
   पछली बरेखा रअ़ई, रे। ।।2।।

एक वीडियो रिपोर्टर : जुगेश्वरर उरांव

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