फ्रांस से पांच विदेशी मेहमान झारखंड टूर (भ्रमण) में आए। उनका नाम था - जेराल्ड, दोमनिक, लासि्तन, आणि, जोजेत। वे, गो ट्रैवल द्वारा भारत के राज्यों में आए हेतु आए थे। इनका टूर (भ्रमण) आदिवासी गांव क्षेत्र को देखना और जानना था। इन विदेशी मेहमानों को भारतीय भाषा नहीं आती, ना अंग्रेजी, ना हिंदी।
उन्हें थोड़ी बहुत अंग्रेजी आती होगी, पर हम उनसे सुन नहीं पाये। उनके साथ दिल्ली से एक गाइड के रूप में आए सानू गिरी, जो इन्हें फ्रेंच एवं हिंदी भाषा से संवाद करके पूरे भारत घूमाए। परन्तु गाइड को भी झारखंड में इन्हें आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी भाषाओं के प्रति जानकारी नहीं है, इसलिए अजय केरकेटा और टीम धूमकुड़िया रांची के माध्यम से मुझे (शिव शंकर उरांव) कुँड़ुख़ भाषा में संवाद के लिए प्रतिनिधि चुना गया और उरांव, मुंडा, असुर, बिरजिया, टाना भगत(पंथ) इत्यादि की जानकारी और गांव का भ्रमण करने के लिए गाइड स्वरूप जिम्मेवारी मिली। गांव भ्रमण के दौरान रास्ते में उरांव समुदाय की कुँड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोंग सिकि के बारे में जानकारी दी गई और डॉ.नारायण उरांव (सैंदा) द्वारा रचित लिपि की प्राथमिक पुस्तक कइलगा भेंट की गई। यह टूर (भ्रमण) 29 अक्टूबर 2025 से 3 नवंबर 2025 तक था।
टीम धुमकुड़िया के रूट प्लान के अनुसार दिनांक 29 अक्टूबर 2025 दिन बुधवार को टीम धुमकुड़िया के द्वारा आदिवासी गमछा देकर मेहमानों का स्वागत किया गया और गुमला से 8 किलोमीटर दूर गाढ़सारू गांव ले जाया गया। यहां के उरांव समुदाय(कुड़ुख़र) - उरांव परंपरा के अनुसार कांसा लोटा में पानी और थाली लाकर पैर धोकर, अखड़ा ले गए। अखड़ा में पूरे ग्रामीण के बीच उनका परिचय करवाया गया। उसके बाद सारु पहाड़ का भ्रमण करके फग्गु खंडना,सेम्बाली मन्न ,सोनो गिद्धी, लिटीवीर,घुंनी पच्चो, स्थान और कहानी को कुड़ुख़ से हिंदी और हिंदी से फ्रेंच भाषा में मेहमानों को समझाया गया। उसके बाद मेहमानों को कंदा, हड़िया, लेमनग्रास-गुड़ का चाय, चावल लड्डू, गोड़ा भात, टुंपा कोयनार साग का सब्जी, बेगम साग का चटनी इत्यादि सखुआ दोना-पत्तल में परोसा गया और पूरे ग्रामीणों के द्वारा उन्हें अखड़ा से पूरे गांव घूमाकर और नाच गान के साथ उन्हें विदा किया गया। उसके बाद पंखराज बाबा कार्तिक उरांव जयंती सह जतरा कार्तिक बाबा के पैतृक गांव करौंदा लिटा टोली, गुमला, झारखंड में मेहमानों ने बाबा कार्तिक उरांव के घर देखें। वे उनका समाधि स्थल देखे और यात्रा में घूम-घूम कर नाच भी की और लोगों का फोटो भी खींचे। फिर मेहमानों का मंच में स्वागत किया गया। उसके बाद 6:00 बजे शाम को सभी मेहमान होटल पहुंच गए।
दूसरे दिन, दिनांक 30 अक्टूबर 2025 दिन बृहस्पतिवार को उरांव समुदाय के द्वारा सृष्टि स्थल कहे जाने वाले सिरसी ता नाले डुमरी, चैनपुर, गुमला का दर्शन किए और वहां की सृष्टि कथा कहानी के बारे में जानकारी लिये। वापसी में दो गांव का भ्रमण करते हुए चैनपुर बाजार घूमे। गुमला स्थित कात सारु गांव में मेहमानों का स्वागत करके गांव वालों द्वारा कांसा लोटा में पानी अम्बा डहुरा से परिछते हुए अख़ड़ा से पहान के घर ले गए। पैर धोने के बाद सभी को हाथ जोड़ कर जोहार, जय धरमे करते हुए, मड़ुवा रोटी, गुड़ चाय, उड़िद चखना, हड़िया, कुर्थी दाल-भात, फुटकल सांग का चटनी, चेंज भाजी साग खाने में परोसा गया। उसके बाद पनारी गांव में मांदर वाद यंत्र (उरांव नृत्य गीत का प्रमुख वाद्य यंत्र मान्दर) को कैसे बनाया जाता है उसकी जानकारी दी गई और वे सभी देखे भी।
फिर 31 अक्टूबर 2025 दिन शुक्रवार को गुमला से नेतरहाट, के रास्ते में बिशुनपुर के विकास भारती संस्था द्वारा जोरदार तरके से मेहमानों का स्वागत छोटे बच्चों द्वारा मांदर गीत से मनमोहक नृत्य से किया गया, जो विदेशी मेहमानों का दिल जीत लिया। वहां पर आदिवासी महापुरुषों जैसे जतरा टाना भगत, सिद्धु-कान्हु , वीर बुधु भगत, सिनगी दइई, कैली दइई, बिरसा मुंडा इत्यादि महापुरुषों पर माल्यार्पण कर के मेहमानों ने अवलोकन किया। उसके बाद आम का अचार, ॅुटल अचार, संधना अचार इत्यादि कैसे बनता है, जामुन सिरका कैसे बनता है, मधुपालान इत्यादि को नजदीक से देखे।
टाना भगत पंथ :- बिशुनपुर में बाबा कार्तिक उरांव चौक में जनार्दन टाना भगत की अगवाई में सैकड़ो टाना भक्तों द्वारा मेहमानों का स्वागत किया गया। इस संदर्भ में कहा जाता है - राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को जतरा टाना भक्तों की प्रेरणा से अहिंसा को आजादी का सशक्त रास्ता चुनने में मदद मिला। जतरा टाना भगत विद्या मंदिर, जतरा टाना भगत के पैतृक गांव चिंगरी नया टोली और हेसराग गांव घूम कर जानकारी ली। जतरा टाना भगत ने हेसराग गांव में ही विद्या शक्ति मंत्र प्राप्त हुआ था। उसके बाद बनारी बाजार घूमते हुए मेहमानों ने गुलइर-गुड़था,झाड़ू, खजूर पटिया, लाल पाईर साड़ी इत्यादि खरीदे। बाजार में कुँड़ुख़ भाखा,सादरी नागपुरी से हिंदी में बात करके मेहमानों को फ्रेंच भाषा में अनुवाद करके बतलाया गया।
बिरजिया:- दिनांक 1 नवंबर 2025 दिन शनिवार को बिरजिया जनजाति गांव में भ्रमण कराया गया। बिरजिया झारखंड में आदिम जनजाति है। नेतरहाट के पहाड़ी में बिरजिया टोला गांव का जायजा लिया गया जिसमें बृजिया जनजाति अपने जीवन के लिए थोड़े बहुत खेती नाशपाती का और मजदूरी करते हैं।
असुर:- यह जनजाति झारखंड में आदिम जनजाति हैं। उनका प्राचीन पेशा लोहा गलना था। जोभी पाठ, डूमरपाठ, सुखवा पानी, काठपानी इत्यादि गांव का दौरा किया। जिसमें सुषमा असुर दीदी से भी मुलाकात हुई।
दिनांक 2 नवंबर 2025 दिन रविवार को नेतरहाट से बेतला पलामू महुआ टांड़ से आगे एक उराँव गांव में खेत में काम करते हुए और गोंयसाली से गोबर फेंकते हुए देखा। एक बुजुर्ग बाबा भार ढोए हुए, उरांव समुदाय में कैसे घर को लोगों मिट्टी से लिपते हैं, कलाकृति किए हुए को निहारते रहे विदेशी मेहमान। गाड़ी गांव पलामू मे चेरो और खरवार जनजाति गांव में आंगन में लकड़ी से दीवार लगाए हुए घिरे हुए और उसके ऊपर सब्जी लगे हुए। सभी परिवार के आंगन में सीम, गोगंरा का सब्जी लगा हुआ। एक बुजुर्ग मां से मुलाकात हुआ जो अपने गाल, हाथ पैर में गोदना (टैटू) कराये हुए चिडि़यां का चित्र। यह एक प्रकार का आदिवासी समुदाय का श्रृंगार भी होता है। ततपश्चात् बेतला पार्क का सफारी से भ्रमण, पलामू किला का अवलोकन भी किया गया।
फिर दिनांक 03 नवंबर 2025 दिन सोमवार को पलामू से रांची, NH 75 चान्हो सोंस बाजार में हड़िया बनाने का रानू दवाई , देहाती मुर्गा-मुर्गी और महिलाओं द्वारा बाजार में सब्जी बेचना इत्यादि फ्रांस के मेहमानों ने पूरे बाजार में तीन घंटा घूमा। बाजार में सारे दुकानदार और बाजार करने आए लोगों ने मुख्य आकर्षण के रूप में मेहमानों को निहारत रहे। कितने बाजार की दुकानदार और बाजार करने वाले लोगों ने हाय हेलो जोहार कहा। मेहमानों ने सबका हाथ जोड़कर अभिवादन करते रहे। बहुत सारे स्कूली बच्चों ने फोटो खींचने के लिए सामने आए और साथ में फोटो भी खिंचवाया। फ्रांसीसी मेहमानों ने बेहिचक सभी का फोटो खींच भी रहे थे और खिंचवा भी रहे थे।
अंत में मेहमानों को बिरसा मुंडा एयरपोर्ट से विदा कर दिया गया और वे असम के लिए चले गए। वहां के आदिवासी क्षेत्र की भ्रमण करने के लिए निकले । बिदा होते समय एक विदेशी मेहमान ने मुझे मुस्कुराते हुए मेरे हाथ में धीरे से 20 यूरो पकड़ा दिया । मुझे लगा यह कोई कागज का टुकड़ा है। पर जब मैं उसे ध्यान से देखा तो उसमें 20 यूरो लिखा हुआ था, जो फ्रांस का रुपया है। मैंने गूगल में तुरंत सर्च किया 20 यूरो बराबर भारत में 2047.26 रूपया होता है। टीम धूमकुड़िया को बहुत-बहुत धन्यवाद, जो मुझे विदेशी मेहमानों का गाइड बनने का मौका दिया । मैंने कुँड़ुख़ एवं नागपुरी भाषा को हिंदी में अनुवाद किया और दिल्ली से आए श्री सानू गिरी द्वारा हिन्दी से फ्रेंच में अनुवाद किया गया।
रिपोर्टर -
शिव शंकर उरांव
शोधार्थी - कुँड़ुख़ विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची,
कोऑर्डिनेटर - टीम धूमकुड़िया
प्रवक्ता -RACS