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उरांव समाज प्रतिनिधि मंडल ने तोलोंग सिकि लिपि को विवि में लागू कराने हेतु राज्‍यपाल के समक्ष रखी मांग

दिनांक 26.06.2024 दिन बुधवार को 03.00 बजे अपराहन 05  उरांव आदिवासी,अपनी मातुभाषा कुंड़ुख एवं कुंड़ुख़ की लिपि तोलोंग सिकि के संरक्षण तथा संवर्द्धन के लिए महामहीम राज्‍यपाल,झारखण्‍ड से मिले ।  प्रतिनिधि मण्‍डल का नेतृत्‍व सुश्री नीतू साक्षी टोप्‍पो , पेल्‍लो कोटवार, अद़दी अखड़ा, रांची द्वारा किया गया। इस प्रतिनिधि मण्‍डल में साहित्‍यकार सह साहित्‍य अकादमी, नई दिल्‍ली के सदस्‍य श्री महादेव टोप्‍पो , तोलोंग सिकि लिपि के संस्‍थापक डा0 नारायण उरांव, पड़हा देवान लोहरदगा श्री संजीव भगत, कुंड़ुख स्‍कूल मंगलो के प्राधानाचार्य श्री अरविन्‍द उरांव एवं सुश्री नीतू साक्षी टोप्‍पो  द्वारा प्रतिनिधित्‍व किया गया। 
प्रतिनि‍धि मण्‍डल ने महामहीम से कहा कि - वे सभी उरांव आदिवासी समूह से हैं।  उनकी अर्थात उरांव समूह की एक विशिष्‍ट भाषा है जिसका नाम कुंड़ुख़ है तथा इस भाषा की अपनी लिपि है जिसका नाम तोलोंग सिकि है।  आदिवासी उरांव समाज अपन मातृभाषा एवं लिपि में पढ़ाई लिखाई करना चाहता है। पर सरकार की ओर से इस संबंध में पूरी मदद नहीं मिलती है। ज्ञात हो कि रांची विश्‍वविद्यालय में  42 वर्ष से  हिन्‍दी-संस्‍कृत भाषा की लिपि देवनागरी के माध्‍यम से चल  रहा है और  अबतक कुंड़ुख़ भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि में पढ़ाई लिखाई आरंभ नहीं हुआ है।  इस संदर्भ में समाज द्वारा कई अलग-अलग विभाग में मांग  किया जाता रहा है पर विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर यह सामरिक  मांग अबतक अधूरी है। वैसे माध्‍यमिक स्‍तार पर कुंड़ख़  कि कुंड़ुख् भाषा की पढ़ाई तोलोंग  सिकि लिपि में भी हो। यह मांग माननीय कुलपति रांची विश्‍वविद्यालय रांची से प्रतिनिधि मण्‍डल मिला किन्‍तु कुलपति महोदय ने कहा कि - लिपि की मान्‍यता के संबंध में  राजकीय गजट लायें, तभी इसे स्‍वीकार करेंगे।  
ज्ञात हो कि झारखण्‍ड सरकार कार्मिक, प्राशासनिक सुधार एवं राजभाषा  विभाग ने वर्ष 2003 में  कुंड़ुख़ भाषा की लि‍पि, तोलोंग सिकि को स्‍वीकृति प्रदान किया गया है। सरकार के इस निर्णय के बाद जैक द्वारा कुंड़ुख़ भाषा विषय की मैटि्रक  परीक्षा तोलोंग सिकि में लिखने की अनुमति दी गई है, जिसके तहत वर्ष 2009 से एक स्‍कूल के छात्र तथा वर्ष 2016 से इच्‍छुक सभी छात्रों के तोलोंग सिकि लिपि में परीक्षा लिखने की अनुमति प्रदान की गई है। परन्‍तु विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर अबतक इसकी पढ़ाई- लिखाई नहीं कराया जा रहा है। प्रतिनिधि मण्‍डल द्वारा इन मुदृदों पर चर्चा पर चर्चा की गई, जिसपर महामहीम राज्‍यपाल द्वारा 
सकारात्‍मक आश्‍वासन दिया गया। 
महामहीम के साथ परिचर्चा का दूसरा विषय था राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ आदिवासी सामाज के बीच धुमकुडिया  को आंगनवाड़ी या शिक्षा वाटिका के स्‍थान पर जोड़ा जाना चाहिए। ऐसा होने पर आदिवासी समाज के बच्‍चे अपनी संस्‍कृति को बचपन से ही समझेंगे और उसे अमल करेंगे। इसे आदिवासी क्षेत्रो के बच्‍चो में  Drug addiction से मुक्ति का रास्‍ता बनेगा। इस विषय पर भी महामहीम राज्‍यपाल द्वारा सकारात्‍मक आश्‍वासन दिया गया।
चर्चा का तीसरा विषय परम्‍परागत ग्रामसभा के माध्‍यम से सामाजिक न्‍याय व्‍यवस्‍था को लागू करना था। इस विषय पर चर्चा हुई कि अब माननीय हाईकोर्ट ने कहा है कि आदिवासी मामले को उसके कस्‍टमरी कानून के जरीये निस्‍पादन किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में परम्‍परागत ग्रामसभा-पड़हा को कानून मान्‍यता मिले । इस तरह का कार्य कोलहान क्षेत्र में न्‍याय पंच कानूनी व्‍यवस्‍था झाखण्‍ड द्वारा लागू कराया जा चुका है। इस विषय पर माननीय प्रधान सचिव द्वारा कहा गया कि 
झारखण्‍ड में पेसा कानून लागू नहीं है, जिसके चलते अनुसूचित क्षेत्र में इस विषय पर निर्णय नहीं लिया जा सका है। यह फैसला करना सरकार की जिम्‍मेदारी है। 
अंत में प्रतिनिधि मण्‍डल द्वारा इस विषय पर  महामहीम राज्‍यपाल के साथ दोबाराआकर मिलने की तैयारी के साथ वहां से वापस आये।  

रिपोर्टर -
नीतू साक्षी टोप्‍पो
पेल्‍लो कोटवार, अद्दी अखडा, रांची। 

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