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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 व मातृभाषा कुँड़ुख़तोलोंग सिकि एवं धुमकुड़िया पर कार्यशाला सम्पन्न

दिनांक 12 मार्च से 14 मार्च 2020 तक ऐतिहासिक पड़हा जतरा खुटा शक्तिस्थल, मुड़मा, राँची में अवस्थित सांस्कृतिक भवन में तीन दिवसीय कार्यशाला मातृभाषा शिक्षा सह कुँड़ुख़ भाषा तोलोंग सिकि तथा धुमकुड़िया विषय पर सम्पन्न हुआ। इस कार्यशाला में झारखण्ड, प. बंगाल, ओडिसा, छतीसगढ़ तथा पड़ोसी देश नेपाल से कुँड़ुख़ भाषा प्रेमी उपस्थित थे। यह कार्यशाला टाटा स्टील फाउण्डेशन, जमशेदपुर के तकनीकी सहयोग तथा अद्दी कुँड़ुख़ चाःला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा (अद्दी अखड़ा), राँची एवं राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, भारत, मुड़मा, भारत के संयुक्त संयोजन में सम्पन्न हुआ। दिनांक 13.03.2022 को दिन के 11.30 बजे, कार्यशाला का उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग के प्रधान सचिव श्रीमती वंदना दादेल उपस्थित हुईं। उद्घाटन समारोह सत्र की अध्यक्षता, विनोवा भावे विश्‍वविद्यालय, हजारीबाग के पूर्व कुलपति एवं बिजनेस मैनेजमेंट विभाग, बी.आई.टी. मेसरा, राँची के प्रोफेसर डॉ. रविन्द्र नाथ भगत द्वारा सम्पन्न हुआ। उद्घाटन समारोह सत्र में सम्मानित अतिथि के रूप में टाटा स्टील फाउण्डेशन के एजुकेटिव अधिकारी श्री शिवशंकर कांडेयोंग, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के अध्यक्ष (प्रभारी) श्री विद्यासार केरकेट्टा, अद्दी कुँड़ुख़ चाला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा (अद्दी अखड़ा), राँची के अध्यक्ष श्री जिता उराँव एवं ग्राम मुड़मा (माण्डर थाना, राँची) के पहान श्री सिबु उराँव उपस्थित थे। प्रथम दिवस दिनांक 12.03.2022 को रात्रि 8.00 बजे तक दूर दराज से आकर प्रतिभागियों द्वारा निबंधन कराया गया तथा एक दूसरे से परिचय करते हुए अगले दिन की तैयारी के लिए रात्रि भोजन के पश्‍चात विश्राम किया।

कार्यशाला के पूर्व सुबह 07.30 बजे मुड़मा जतरा शक्तिस्थल खुटा के पास सामूहिक प्रार्थना से दिन का शुभारंभ हुआ। तत्पश्चात दिनांक को 13 मार्च को 09.30 बजे श्री महादेव टोप्पो (साहित्यकार) द्वारा - ‘‘एःकना दिम तोःकना, कत्था दिम डण्डी अरा धुमकुड़िया’’ विषय पर ज्ञानवर्द्धक व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। उसके बाद डॉ. अभय सागर मिंज, सहायक प्रध्यापक, मानवशास्त्र विभाग, डी.एस.एस.एम.विश्‍वविद्यालय, राँची द्वारा -‘‘विलुप्त होती भाषाएँ और उसको बचाने के उपाय’’ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। ततपश्चात् 11.30 बजे से कार्यशाला का उद्घाटन सत्र आरंभ हुआ। अतिथियों का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता डॉ० आर०एन० भगत के द्वारा हुआ। आयोजन समिति के अध्यक्ष श्री विद्यासागर केरकेट्टा जी द्वारा समाज की बातों को क्रमवार रखा गया। अध्यक्ष द्वारा भी समूह की बातों को संजोकर प्रस्तुत किया गया। इस सत्र में डॉ. नासायण उराँव ने पावर पॉयन्ट के जरिये कुँड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि की विकास यात्रा पर प्रस्तुतिकरण दिया तथा डॉ. बन्दे खल्खो ने राट्रीय शिक्षा नीति 2020 तथा मातृभाषा विषय पर तथ्यात्मक विचार प्रस्तुत किया। दोपहर का भोजन के बाद श्री लवहरमन उराँव ने जनगणना विषय की महत्ता पर व्याख्यान दिया तथा डॉ. नारायण उराँव द्वारा ‘‘तोलोंग सिकि लिपि एवं घ्वनि विज्ञान’’ विषय पर विस्तार पूर्वक व्याख्यान दिया गया।

दूसरे दिन 14 मार्च को डॉ० नारायण उराँव द्वारा कुँड़ुख़ भाषा विज्ञान तथा तोलोंग सिकि (लिपि) विषय पर विस्तृत जाकारी दी गई तथा डॉ० बैजन्ती उराँव द्वारा आदिवासी खान-पान एवं पोषक तत्व विषय पर शोध निबंध प्रस्तुत किया गया। अंत में श्री सरन उराँव द्वारा 12 महीना 13 रागवाली कहावत को संपुष्ट करते हुए अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
कार्यशाला का समापन सत्र दिनांक 14 मार्च को 05.00 बजे संध्या डॉ. करमा उराँव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। उन्होंने समापन सत्र में कहा - एक विकसित एवं पूर्ण भाषा के लिए उस भाषा की अपनी लिपि का होना आवश्यक है। इस अवसर पर लोहरदगा के झारखण्ड आंदोलनकारी सेनानी श्री विनोद कुमार भगत ने कहा कि - झारखण्ड अलग प्रांत आंदोलन में भाषा एवं संस्कृति की रक्षा तथा विकास भी एक विशेष मुद्दा था, परन्तु झारखण्ड बनने के बाद यह मुद्दा राज्य की शिक्षा नीति से जुड़ नहीं पाया। उन्‍होंने कहा - यदि संस्कृति बचानी है तो भाषा को बचाना पड़ेगा और भाषा को बचाना है तो इसे स्कूली शिक्षा में जोड़ना ही पड़ेगा तथा इसे रोजगार उन्मुख भी बनाना होगा, तभी भाषा और संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्द्धन होगा अन्यथा वर्तमान भूमण्डलीकरण के दौर में बड़े समूह की भाषाएँ, छोटे समूह की भाषाओं को निगलती रही हैं। समापन सत्र के बाद अखड़ा कार्यक्रम हुआ और दूसरे दिन 15 मार्च को लोग अपने घरों को चले गये।

संकलन – 
डॉ. नारायण उरांव
सैन्‍दा, सिसई, गुमला।

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