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कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास का आरंभिक इतिहास

कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास का आरंभ वर्ष 1989 में हुआ। यह संदर्भ दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल‚ लहेरियासराय (बिहार) में एमबीबीएस कर रहे एक उराँव आदिवासी युवक श्री नारायण उराँव के जीवन संर्घष की कथा से जुड़ा हुआ है। वे वर्तमान में झारखण्ड चिकित्सा सेवा में चिकित्सा पदाधिकारी हैं। वे अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए अपनी शिक्षा संघर्ष की कथा का बयान करते हैं कि किस प्रकार वे एमबीबीएस की पढ़ाई के साथ–साथ साहित्य सृजन का कार्य करने लगे।

‘तोलोंग सिकि वर्णमाला’ का संशोधित स्वरूप जून 1997 को

‘ग्राफिक्स ऑफ तोलोंग सिकि’ नामक पुस्तिका के लोकार्पण के अवसर पर दिनांक 05 मई 1997 को राँची विश्वविद्यालय, राँची के पूर्व कुलपति तथा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभगाध्यिक्ष भाषाविद डॉ.

जनजातीय भाषा विभागाध्यक्ष डॉ० मुण्डा द्वारा तोलोंग सिकि की पहली पुस्तक का लोकार्पण

दिनांक 13 अप्रैल 1994 को राँची कालेज‚ राँची के सभागार में सरना नवयुवक संघ‚ राँची के सौजन्य से आयोजित‚ सरहुल पूर्व संध्या के अवसर पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग‚ रांची विश्वविद्यालय‚ रांची के विभागाध्यक्ष सह भाषाविद डॉ० रामदयाल मुण्डा द्वारा तोलोंग सिकि (लिपि) की पहली पुस्तक ‘‘कुड़ुख़ तोलोंग सिकि अरा बक्क गढ़न’’ को लोकार्पित किया गया। ‘‘कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि अरा बक्क गढ़न’’ नामक यह पुस्तक तोलोंग सिकि की पहली पुस्तक है‚ जो आधुनिक प्रिटिंग प्रेस‚ उषा इन्डस्ट्रीज‚ भागलपुर (बिहार) में छपकर समाज के सामने पहूँची। 

कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि का दुमका (संताल परगना) का प्रसिद्ध हिजला मेला में प्रदर्शनी

ज्ञातव्य है कि ब्रिटिश भारत में सन् 1885 में संताल परगना, जिला घोषित हुआ‚ जिसका मुख्यालय दुमका बना। कहा जाता है इसी संताल परगना जिला में पदस्थासपित एक अंगरेज आफिसर द्वारा दुमका में वर्ष के अंत में धान कटनी के बाद एक मेला का आयोजन कराया जाता था। जो देश की आजादी के बाद एक राजकीय मेला के रूप में प्रशासन द्वारा कराया जाता रहा, जिसका नाम हिजला मेला है। इसी कड़ी में वर्ष 1994 में सरकारी हिजला मेला 18 से 25 फरवरी को आयोजित हुआ था। इस मेला में ततकालीन दुमका सी. ओ.

सर्वप्रथम 07 अक्टूबर 1993 को हिन्दी दैनिक ‘आज’ में तोलोङ सिकि के संबंध में विस्तृत लेख छपा

ज्ञातब्य है कि झारखण्ड अलग प्रांत आन्दोलन के छात्र नेताओं एवं बुदि्धजीवियों की राय थी कि आदिवासी भाषाओं की पहचान के लिए एक नई लिपि का विकास हो, पर यह कैसे हो या कौन करे, इस विषय पर सभी मौन रहे। इसी बीच पेशे से चिकित्सीक डॉ० नारायण उराँव द्वारा इस दिशा में कार्य किया जाने लगा। जिसे आन्दोंलनकारी छात्र नेताओं का प्रोत्सादहन मिला। 

कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि को पहली बार आदिवासी समाज के सामने 24 सितम्बर 1993 को रखा गया

ज्ञातब्य है कि कुँड़ुख़ भाषा, झारखण्ड में द्वितीय राजभाषा एवं प० बंगाल में Official language के रूप में मान्यता प्राप्त है। झारखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2011 में कई भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का मान्यता दिया गया, जिनमें से कुँड़ुख़ भाषा भी एक है। इसी तरह 2018 में प० बंगाल में कई भाषाओं को Official language का मान्यता दिया गया, जिनमें कुँड़ुख़ भी शामिल है। साथ ही इन दोनों राज्यों में कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि के माध्यम से सरकारी स्तर पर पुस्तक प्रकाशन किय

राजी पड़हा‚ भारत और कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि (लिपि)

वर्ष - 1997 में 3‚ 4 एवं 5 जनवरी को राजी पड़हा देवान श्री भिखराम भगत के नेतृत्व में राजी पड़हा‚ भारत का वार्षिक सम्मेलन‚ ब्रहमनडि‍हा‚ लोहरदगा (बिहार/झारखण्ड) में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में उपस्थित पड़हा प्रतिनिधि एवं जनसभा द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया‚ परन्तु माननीय श्री भिखराम भगत द्वारा श्री इन्द्रनाथ भगत (माननीय सांसद‚ लोहरदगा) के साथ विमर्श के पश्चात् कहा गया कि - इस नई लिपि के साथ इसका व्याकरण भी जरूरी है। अतएव व्याकरण के लिए भाषाविदों तथा शिक्षाविदों के साथ मिलकर लिपि एवं व्याकरण पर चर्चा कर‚ पड़हा के सामने लायें। इसके बाद ही इसका सामाजिक

कुँड़ुख़ भाषा की लिपि‚ तोलोंग सिकि है – बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान

ज्ञात हो कि बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ मोरहाबादी‚ राँची के सभागार में “कुँडख़ भाषा-साहित्य-लिपि : दशा और दिशा” विषयक कार्यशाला दिनांक 19 सितम्बर 1998‚ दिन शनिवार को सम्पन्न हुआ। यह कार्यशाला‚ जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ राँची तथा बिहार शि‍क्षा परियोजना‚ रातू‚ रांची के संयुक्त तत्वधान में बुलाया गया था। इस कार्यशाला में जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ राँची के निदेशक डॉ॰ प्रकाश चन्द्र उराँव‚ बिहार शि‍क्षा परियोजना‚ रातू‚ राँची के निदेशक श्री विनोद किसपोट्टा (आई.ए.एस.)‚ आयकर अधिकारी श्री प्रभात खलखो‚ ए. जी.

डॉ मुण्डा एवं डॉ इन्दु धान की उपस्थिति में तोलोङ सिकि (लिपि) का लोकार्पण   

डॉ॰ रामदयाल मुण्डा‚ पूर्व कुलपति‚ राँची विष्वविद्यालय‚ राँची एवं डॉ॰ (श्रीमती) इन्दु धान‚ पूर्व कुलपति‚ मगध विश्व्विद्यालय् बोधगया एवं सिद्हु-कान्हु मुरमु विश्वमविद्यालय‚ दुमका द्वारा संयुक्त रूप से एक संवादाता सम्मेलन में दिनांक 15 मई 1999 को तोलोंग सिकि (लिपि) को जनमानस के व्यवहार के लिए लोकार्पित किया गया। यह संवादाता सम्मेलन - तोलोंग सिकि प्रचारिणी सभा‚ रांची‚ सिरासिता प्रकाशन‚ रांची एवं ट्राईबल रिसर्च एनालिसिस कम्युनिकेशन एण्ड एजूकेशन नामक संस्था की ओर से झारखण्ड क्षेत्र की भाषाओं के विकास के लिए विकसित तोलोंग सिकि नामक लिपि को जनमानस के व्यवहार के लिए लोकार्पित करने हेतु आयोजित किया ग