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कुंड़ुख़ भाषा की तोलोंग सिकि के संस्थापक डॉ. नारायण उरांव को विभागीय एवं सामाजिक सम्मान

भारत सरकार के Linguistic Survey of India  (लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया) विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार कुंड़ुख़ एक उतरी द्रविड़ भाषा समूह की भाषा है। इस भाषा को बोलने वाले उरांव आदिवासी एवं अन्य समूह के लोग अपने देश भारत में लगभग 50 लाख हैं। पिछले दो दशक पूर्व तक इस भाषा की कोई भी मान्यता प्राप्त लिपि नहीं थी। पर झारखण्ड अलग प्रांत आन्दोनल के साथ यहां के लोगों ने भाषायी पहचान का आन्दोलन भी छेड़ रखा था और वर्ष 2016 में झारखण्ड सरकार में कुंड़ुख़ भाषा की लिपि‚ तोलोंग सिकि के माध्यम से मैट्रिक में कुंड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा इस लिपि से लिखने की अनुमति मिली है। इस भाषायी पहचान को मूर्त रूप

झारखण्ड सरकार ने कहा – तोलोंग सिकि कुंड़ुख़ भाषा की लिपि

ज्ञात हो कि तोलोङ सिकि अथवा तोलोंग लिपि को कुँड़ुख (उराँव) समाज ने कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में स्वीकार किया है। इस लिपि को झारखण्ड सरकार, कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग के पत्रांक 129 दिनांक 18.09.2003 के द्वारा कुँड़ुख (उराँव) भाषा की लिपि के रूप में उद्धृत किया है। इस सरकारी विभागीय पत्र के माध्यम से कहा गया है कि झारखण्ड राज्य के अंतर्गत संथाली, मुंडारी, हो, उरांव/कुंड़ुख़ भाषा एक महत्वपूर्ण स्थान है। संथाली भाषा की लिपि ‘ओल सिकि’, मुण्डारी भाषा की लिपि ‘देवनागरी’, हो भाषा की लिपि ‘वराङक्षिति’ तथा उरांव/कुंड़ुख़ भाषा की लिपि ‘तोलोंग सिकि’ है। झारखण्ड सहित अन्य कई राज्यों में इ

तोलोंग सिकि का कम्प्यूटर फॉन्‍ट 2002 में लोकार्पित

ज्ञातब्य हो कि तोलोंग सिकि लिपि के विकास में झारखण्ड अलग प्रांत आन्दोलन एवं आंदोलनकारियों की महती भूमिका रही है। ऐसे में 15 नवम्बर 2000 को झारखण्ड राज्य के गठन बाद सामाजिक चिंतकों के बीच आदिवासी भाषाओं के लिए नई लिपि का कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर विकसित करने की ओर ध्यान गया। इस क्रम में कई लोग कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर विकसित कराये जाने की रूपरेखा तैयार करने में जुटे। उनमें से एक फा. प्रताप टोप्पो हैं‚ जो वर्ष 2000 में सत्यभारती‚ रांची के निदेशक पद पर कार्यरत थे।

(ऊपर के फोटो में बाएं से: फा. प्रताप टोप्पो, डॉ नारायण उरांव व श्री किसलय)

कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास का आरंभिक इतिहास

कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि के विकास का आरंभ वर्ष 1989 में हुआ। यह संदर्भ दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल‚ लहेरियासराय (बिहार) में एमबीबीएस कर रहे एक उराँव आदिवासी युवक श्री नारायण उराँव के जीवन संर्घष की कथा से जुड़ा हुआ है। वे वर्तमान में झारखण्ड चिकित्सा सेवा में चिकित्सा पदाधिकारी हैं। वे अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए अपनी शिक्षा संघर्ष की कथा का बयान करते हैं कि किस प्रकार वे एमबीबीएस की पढ़ाई के साथ–साथ साहित्य सृजन का कार्य करने लगे।

‘तोलोंग सिकि वर्णमाला’ का संशोधित स्वरूप जून 1997 को

‘ग्राफिक्स ऑफ तोलोंग सिकि’ नामक पुस्तिका के लोकार्पण के अवसर पर दिनांक 05 मई 1997 को राँची विश्वविद्यालय, राँची के पूर्व कुलपति तथा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभगाध्यिक्ष भाषाविद डॉ.

जनजातीय भाषा विभागाध्यक्ष डॉ० मुण्डा द्वारा तोलोंग सिकि की पहली पुस्तक का लोकार्पण

दिनांक 13 अप्रैल 1994 को राँची कालेज‚ राँची के सभागार में सरना नवयुवक संघ‚ राँची के सौजन्य से आयोजित‚ सरहुल पूर्व संध्या के अवसर पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग‚ रांची विश्वविद्यालय‚ रांची के विभागाध्यक्ष सह भाषाविद डॉ० रामदयाल मुण्डा द्वारा तोलोंग सिकि (लिपि) की पहली पुस्तक ‘‘कुड़ुख़ तोलोंग सिकि अरा बक्क गढ़न’’ को लोकार्पित किया गया। ‘‘कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि अरा बक्क गढ़न’’ नामक यह पुस्तक तोलोंग सिकि की पहली पुस्तक है‚ जो आधुनिक प्रिटिंग प्रेस‚ उषा इन्डस्ट्रीज‚ भागलपुर (बिहार) में छपकर समाज के सामने पहूँची। 

कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि का दुमका (संताल परगना) का प्रसिद्ध हिजला मेला में प्रदर्शनी

ज्ञातव्य है कि ब्रिटिश भारत में सन् 1885 में संताल परगना, जिला घोषित हुआ‚ जिसका मुख्यालय दुमका बना। कहा जाता है इसी संताल परगना जिला में पदस्थासपित एक अंगरेज आफिसर द्वारा दुमका में वर्ष के अंत में धान कटनी के बाद एक मेला का आयोजन कराया जाता था। जो देश की आजादी के बाद एक राजकीय मेला के रूप में प्रशासन द्वारा कराया जाता रहा, जिसका नाम हिजला मेला है। इसी कड़ी में वर्ष 1994 में सरकारी हिजला मेला 18 से 25 फरवरी को आयोजित हुआ था। इस मेला में ततकालीन दुमका सी. ओ.

सर्वप्रथम 07 अक्टूबर 1993 को हिन्दी दैनिक ‘आज’ में तोलोङ सिकि के संबंध में विस्तृत लेख छपा

ज्ञातब्य है कि झारखण्ड अलग प्रांत आन्दोलन के छात्र नेताओं एवं बुदि्धजीवियों की राय थी कि आदिवासी भाषाओं की पहचान के लिए एक नई लिपि का विकास हो, पर यह कैसे हो या कौन करे, इस विषय पर सभी मौन रहे। इसी बीच पेशे से चिकित्सीक डॉ० नारायण उराँव द्वारा इस दिशा में कार्य किया जाने लगा। जिसे आन्दोंलनकारी छात्र नेताओं का प्रोत्सादहन मिला। 

कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि को पहली बार आदिवासी समाज के सामने 24 सितम्बर 1993 को रखा गया

ज्ञातब्य है कि कुँड़ुख़ भाषा, झारखण्ड में द्वितीय राजभाषा एवं प० बंगाल में Official language के रूप में मान्यता प्राप्त है। झारखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2011 में कई भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का मान्यता दिया गया, जिनमें से कुँड़ुख़ भाषा भी एक है। इसी तरह 2018 में प० बंगाल में कई भाषाओं को Official language का मान्यता दिया गया, जिनमें कुँड़ुख़ भी शामिल है। साथ ही इन दोनों राज्यों में कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि के माध्यम से सरकारी स्तर पर पुस्तक प्रकाशन किय