भारतीय संसद द्वारा पारित पेसा कानून 1996 (PESA 1996) की धारा 4(d) के तहत, दिनांक 18 से 20 अगस्त 2023 तक, 36 गांव की परम्परागत ग्राम सभा (पद्दा सबहा) के प्रतिनिधि सदस्यों की ‘‘पद्दा पड़हा-पचोरा पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था न्याय पंच कार्यशाला’’ ट्राईबल कल्चर सेन्टर, सोनारी, जमशेदपुर में सम्पन्न हुई। इस ग्रामसभा पड़हा-पचोरा सामाजिक न्याय पंच कार्यशाला में उराँव समाज की रूढ़ीगत सामाजिक व्यवस्था को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने हेतु 12 पड़हा, पहाड़ कंडिरिया, बेड़ो, राँची के पड़हा बेल श्री बिमल उराँव, 32 पड़हा-पचोरा लोहरदगा के बेल (राजा): श्री विजय उराँव एवं 03 पड़हा-पचोरा सिसई-भरनो, गुमला के कुहाबेल : श्री जुब्बी उराँव के संयुक्त संयोजन में 04 जिला (रांची, गुमला, लोहरदगा तथा पूर्वी सिंहभूम) के ग्रामसभा पड़हा-पचोरा के सदस्य शामिल हुए।
इस कार्यशाला में मुख्य रूप से भारतीय संसद द्वारा पारित पेसा कानून 1996,(PESA 1996) की धारा 4(d) तथा झारखण्ड ग्रामसभा नियमावली 2003 के तहत निर्णय लिया गया कि अनुसूचित क्षेत्र में निवास करने वाले उराँव आदिवासी समुदाय के किसी गांव में यदि कोई मामला या समस्या उभरता है तो सबसे पहले ग्राम सभा अध्यक्ष के सामने मामला आएगा। ग्रामसभा का अध्यक्ष परम्परागत रूप से गांव के पहान या पहान की अनुपस्थिति में परम्परागत महतो द्वारा ग्राम सभा का अध्यक्षता किया जाएगा। यदि ग्राम सभा द्वारा किये गये फैसले पर किसी की असहमति हो तो वह मामला परम्परागत पड़हा (कई गांव समूह का बैठक) के पड़हा बेल (पड़हा राजा)के समक्ष जाएगा। फिर यदि, पड़हा द्वारा दिये गये फैसले पर भी यदि कोई असहमत हो तो वह मामला पड़हा-पचोरा (कई पड़हा का पचा बैठक या कई पड़हा समूह का बैठक) के समक्ष जाएगा। उसके बाद भी यदि कोई व्यक्ति को उपरोक्त तीन बैठक में किये गये फैसले से असहमति हों तो वे न्यायालय में अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र होंगे। यदि समाज के लोग बिसुसेन्दरा में मामले को ले जाना चाहें तो बिसुसेन्दरा के बाद अन्यत्र कहीं चुनौती दिये जाने की अनुमति परम्परागत उराँव समाज नहीं देता है। जैसा कि पारिवारिक न्यायालय का हिस्सा Mediation commitee अथवा Mediation commitee court के फैसले को किसी न्यायालय में चुनौति देने का प्रावधान नहीं है। परम्परागत उरांव समाज अपने सामाजिक व्यवस्था में श्रद्धा रखते हुए बिसुसेन्दरा के निर्णय को स्वीकार करता है। । इसलिए तीन बैठक के बाद यदि किसी की असहमति होने पर वे न्यायालय व्यवस्था की ओर अग्रसर करें।
परम्परागत उराँव समाज में क्षेत्रीय स्तर पर 03 वर्ष में पहटा बिसुसेन्दरा का बैठक हुआ करता था तथा 12 वर्ष में राःजी बिसुसेन्दरा का बैठक होता था। परन्तु समाज में उपरोक्त्त तीन स्तरीय बैठक करके किसी मामले का निपटारा करने में कम से कम 06 महीने से 01 वर्ष के अन्दर हो जाएगा। परम्परागत उराँव समाज का स्पष्ट मन्तब्य है कि - वर्तमान समय में तीन स्तरीय यानि पद्दा सबहा (गांव की सभा), पड़हा सबहा (कई गावों की सभा) तथा पड़हा पचोरा सबहा (कई पड़हा की सभा) से गुजरने पर एक कमजोर से कमजोर व्यक्ति को भी समाज के पंचों द्वारा दिया हुआ लिखित दस्तावेज मिलेगा, जिससे सामाजिक न्याय मिलने का उम्मीद जागेगी। माननीय उच्च न्यायालयए झारखण्ड, रांची द्वारा First Appeal No 124 of 2018 श्री बग्गा तिर्की बनाम श्रीमती पिंकी लिण्डा के मामले में वर्ष 2021 में अपने आदेश में कहा गया है कि आदिवासी मामले में उनके परम्परागत सामाजिक तरीके के फैसले के आधार पर न्याय किया जाय। और समाज अपने रूढ़ी परम्परा के आधार पर किये गये तरीके को साबित करे। इस निर्देश के नजरिये से यह त्रिस्तरीय परम्परागत सामाजिक न्याय प्रणाली, सरल एवं त्वरित न्याय प्रणाली सिद्ध होगा।
उराँव समाज की रूढ़ीगत व्यवस्था के अन्तर्गत परम्परागत ग्रामसभा पड़हा-पचोरा कार्यशाला में पारित नियमावली को विधि के जानकारों से विमर्श कर, सर्वसहमति से निर्णय लिया गया कि परम्परागत उराँव (कुँड़ुख़) समाज में यह नियमावली जनसूचना एवं अनुपालन हेतु जारी किया जाए,जिसे पी.डी.एफ.में देखा एवं पढ़ा जा सकता है । देखें पी.डी.एफ. ---