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आदिवासी महिलाओं का पैतृक संपत्ति पर सम्मान अधिकार पर चर्चा संपन्‍न

राम चरण बनाम सुखराम के हालिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा "आदिवासी महिला का पैतृक संपत्ति में सम्मान हिस्सेदारी" की बात की है. इस फैसले पर आदिवासी महिलाओं का विचार जानने हेतु , "टीम धुमकुड़िया"  और "अंतरराष्ट्रीय कुँड़ुख़र समाज" द्वारा संयुक्त रूप से 26.7.2025 दिन शनिवार समय शाम 7:45 से रात्रि 10:30 तक एक ऑनलाइन परिचर्चा  का विचार विमर्श आयोजन किया गया . इसमें, आदिवासी समाज से  कई  विशिष्ट महिलाओं को मुख्या वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया. इस परिचर्चा में आदिवासी समुदाय के  बुद्धिजीवी, सामाजिक  कार्यकर्ता, एक्टिविस्ट, जुड़े और महिलाओं का विचार सुना. 
सुश्री सुनीता मुंडा (रिपोर्टर लोकतंत्र 19) ,ने चर्चा का सञ्चालन किया, जहाँ मुख्या रूप से श्रीमती गीताश्री उराँव, पूर्व शिक्षा मंत्री (झारखंड )एवं आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता ), श्रीमती निर्मला प्रधान, (सामाजिक कार्यकर्ता), सुश्री जसिंता केरकेट्टा (लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता), श्रीमती कुंद्रासी मुंडा (सामाजिक कार्यकर्ता एवं सक्रिय राजनीति)। श्रीमती निरंजना  हेरेंज टोप्पो( सामाजिक कार्यकर्ता) सुश्री निशा कुमारी भगत(सामाजिक कार्यकर्ता एवं सक्रिय राजनीति)  श्रीमती बेलोसा बबीता कच्छप( सामाजिक कार्यकर्ता सक्रिय राजनीति ) पैनल चर्चा में शामिल हुवे. 
 "श्रीमती गीताश्री उराँव एवं कुंदरासी मुंडा ने कहा की  आदिवासी समुदाय में महिलाओं को सम्मान अधिकार है ऐसी व्यवस्था हमारे पुरखों ने पहले बनाई है जब तक बेटी ससुराल नहीं चली जाती तब तक सारा सम्मान अधिकार उसको मायके में मिलता है पर  विवाह उपरांत महिलाओं को  अपने पति के सम्पति में लिखित हिस्सेदारी मिलनी चाहिए . "बेलोसा बबिता कच्छप" ने फैसले से असहमति जताते हुए भील  समुदाय का उदाहरण दिया की  आदिवासी  महिलाओं को ससुराल में लिखित रूप से अधिकार प्राप्त है पति के नहीं रहने पर ससुराल के संपत्ति पर पत्नी का पूरा अधिकार लिखित तौर पर होता है .
 निर्मला प्रधान",ने कहा - महिला को "पुरखौती संपत्ति में नहीं मिलता। लेकिन पिता द्वारा अर्जित संपत्ति में बेटी को अधिकार मिलना चाहिए। साथ ही पुरुषो द्वारा जमीन  हस्तांतरण को नियंत्रित करने पर बल दिया . "निशा भगत"  ने कहा -"आदिवासी महिला को मायके  रूढ़िगत प्रथा अनुसार  अधिकार मिलना गलत है , वही अगर आदिवासी महिला , गैर आदिवासी से शादी करती है तो उसे मायके का सारा अधिकार और यहाँ तक जाती पर दावा भी छोड़ना होगा .   
वही , "जसिंता केरकेट्टा",ने कहा कि फैसले का स्वागत किया तथा कहा की  "महिलाओं को भी अधिकार मिलना चाहिए और यह जजमेंट एकल , और महिलाओं को शशक्त करेंगे. 
सभी अतिथियों द्वारा आए वक्ताओं ने भी  एक राय और एक स्वर में कहा कि - "अगर आदिवासी महिलाएं गैर आदिवासी से शादी करती हैं तो उसे सामाजिक बहिष्कार किया जाए और मायके का सारा सर्टिफिकेट रद्द किया जाए। साथ ही साथ अगर पुरुष भी गैर आदिवासी औरत से शादी करें तो उनका भी बहिष्कार  किया जाए।
देश के विभिन्न राज्यों से (झारखंड, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल,दिल्ली, तमिलनाडु, महाराष्ट्र) तथा  "चंद्रसेन गुड़िया" संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े, साहित्यकार श्री महादेव टोप्पो, डॉक्टर नारायण उरांव सैन्दा (तोलोंग सिकी जनक) , प्रोफेसर रामचंद्र उरांव, लॉ यूनिवर्सिटी कांके रांची से, ब्रजकिशोर बेदिया, श्री अजय केरकेट्टा, डॉ विनीत कुमार भगत, फुलदेव भगत, ललित भगत , विश्वनाथ तिर्की आदि  के अलावा भी कई आदिवासी समुदाय के विद्वान, विधिवेत्ता और सामाजिक कार्यकर्ता परिचर्चा में जुड़े।

प्रेषक:- 
श्री शिव शंकर उरांव 
शोधार्थी - "कुँड़ुख़" विभाग रांची विश्वविद्यालय,रांची
सह टीम धुमकुड़िया यूथ कॉर्डिनेटर
 

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