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दस्‍तावेज / Records / Plans / Survey

झारखण्ड के गुमला शहर के नामकरण की अवधारणा

पुरखर बाःचका रअ़नर - कुद्दोय ना बेद्दोय, ओक्कोय ना ख़क्खोय अर्थात घुमोगे (ढूँढ़ोगे) तो खोजोगे (पाओगे), बैठोगे यानी संगत में बैठोगे तो ज्ञान हासिल करोगे।

तोलोंग सिकि कुंड़ुख साहित्‍यमाला (दोनों भाग)

तोलोंग सिकि कुंड़ुख़ कत्थपुन नामक यह पुस्तक वर्ष 1989 से 2022 तक का कुंड़ुख़ (उरांव) भाषा एवं तोलोंग सिकि लिपि विकास का इतिहास है। इस पुस्तक का प्रकाशन टाटा स्टील फाउंडेशन, जमशेदपुर के तकनीकी सहयोग से अद्दी कुंड़ुख़ चाला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा, रांची द्वारा किया गया है। यह मूल पुस्तक का पीडीएफ वर्ज़न है। इस पुस्तक में उद्धृत तथ्यों की जानकारी हेतु नीचे पीडीएफ देखें।

यह साहित्‍यमाला दो हिस्‍सों में है। पीडीएफ में पहला हिस्‍सा पेज 1 से 157 तक और शेष दूसरा हिस्‍सा पेज 158 से शुरू होगा। आप चाहें तो इस पीडीएफ को डाउनलोड भी कर सकते हैं। 

कुंड़ुखटाइम्‍स मैगजिन का 06 अंक प्रकाशित हुआ..

Kurukh Times बहुभाषीय पत्रिका का छठा अंक प्रकाशित हो चुका है। अपनी खास साज-सज्‍जा और समृद्ध लेखों से परिपूर्ण यह पत्रिका पठनीय है। आप इसे यहीं ऑनलाइन पढ़ सकते हैं अथवा चाहें तो, नि:शुल्‍क डाउनलोड भी कर सकते हैं। नीचे पीडीएफ वर्जन उपलब्‍ध है। पढ़ें अथवा डाउनलोड कर लें। 

धुमकुडि़या : पारम्परिक सामाजिक, व्यक्तित्व एवं कौशल विकास केन्द्र

धुमकुड़िया, उराँव आदिवासी समाज की एक पारम्परिक सामाजिक, व्यक्तित्व एवं कौशल विकास केन्द्र है। प्राचीन काल से ही यह, गाँव में एक व्यक्तित्व एवं कौशल विकास शिक्षण-शाला के रूप में हुआ करता था, जो गाँव के लोगों द्वारा ही चलाया जाता था। समय के साथ यह पारम्परिक सामाजिक, व्यक्तित्व एवं कौशल विकास केन्द्र विलुप्त होने की स्थिति में है। कुछ दशक पूर्व तक यह संस्था किसी-किसी गाँव में दिखलाई पड़ता था किन्तु वर्तमान शिक्षा पद्धति के प्रचार-प्रसार के बाद यह इतिहास के पन्ने में सिमट चुका है। कुछ लेखकों ने इसे युवागृह कहकर यौन-शोषन स्थल के रूप में पेश किया, तो कई मानवशास्त्री इसे असामयिक कहे, किन्तु अधिकतर च

'चिंचों डण्डी अरा ख़ीःरी' पुस्तक, कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा में प्रकाशित

चिंचों डण्डी अरा ख़ीःरी नामक यह पुस्तक, कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा में प्रकाशित पुस्तक है। चिंचों डण्डी अरा ख़ीःरी का शाब्दिक अर्थ बाल कविता एवं कहानी है। यह पुस्तक, कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि एवं देवनागरी लिपि में प्रस्तुत है। इस लिपि का शोध-संकलन एवं अनुसंधान, एक एम.बी.बी.एस. चिकित्‍सक डॉ. नारायण उराँव ‘सैन्दा’ द्वारा किया गया है तथा इस लिपि का कम्प्यूटर वर्जन, केलितोलोंग फोण्ट के नाम से श्री किसलय जी के द्वारा विकसित किया गया है। वर्तमान में कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा एवं तोलोंग सिकि को झारखण्ड सरकार में 2003 ई.

कुंड़ुख टाइम्‍स त्रैमासिक पत्रिका का चतुर्थ (4th)अंक प्रकाशित हुआ

कुंड़ुख टाइम्‍स त्रैमासिक पत्रिका का चतुर्थ (4th)अंक प्रकाशित हो गया है। यह अंक 'बिसुसेन्‍दरा विशेषांक' है। यह अंक Tata Steel Foundation के 'ट्राइबल कल्‍चरल सोसायटी' के सहयोग से तैयार किया गया है। इस अंक में आप पढ़ेंगे तोलोंग सिकि के आधार के बारे में। साथ ही इसके वर्णमाला के बारे में। चर्चा होगी पड़हा के परंपरागत ग्रामसभा पर भी। साथ ही कई अन्‍य विशिष्‍ट आलेख। इसे आप यहां पीडीएफ में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं। साथ ही, आप चाहें तो इस का पीडीएफ वर्जन डानलोड भी कर सकते हैं। 

श्रद्धेय डा॰ निर्मल मिंज की श्रद्धांजलि‍ स्वरूप उनकी सात कविताएं (तोलोंग सिकि एवं देवनागरी में)

श्रद्धेय डॅा॰ निर्मल मिंज की इन कविताओं में से 1ली कविता “उज्जकना पूंप लेखआ” में अपने व्य॰क्तिगत एवं पारिवारिक जीवन पर आधारित विचार है। 2री कविता “कुकई झील (फिनलैंड)” में विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्र फिनलैंड की धरती में भी कुँड़ुख़ में सोचते हुए कविता रचना किये हैं। 3री कविता में “तेताली मन्न  तेंग्गाोली” में पुराना राँची शहर का नगड़ा टोली‚ राँची का वर्णन है। 4थी कविता “दई घोख” में बड़ी

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खरसावां गोलीकांड का जनरल डायर कौन?

रांची: स्वतंत्र भारत में 1 जनवरी 1948 को खरसावां गोलीकांड की तुलना जालियांवालाबाग हत्याकांड से की जाती है। ओड़िसा मिलिट्री पुलिस की ओर से की गयी गोलीबारी में 35 आदिवासियों के मारे की पुष्टि हुई थी, लेकिन पीके देव की पुस्तक ‘मेमायर ऑफ ए बाइगोर एरा’ में दो हजार से ज्यादा आदिवासियों के मारे जाने का जिक्र है। कोलकाता से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘द स्टेट्समैन’ ने 3 जनवरी 1948 के एक अंक में छापा ‘ 35 आदिवासीज किल्ड इन खरसावां’। हालांकि अभी तक इस गोलीकांड का कोई निश्चित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। इस गोलीकांड की जांच के लिए ट्रिब्यूनल का गठन किया गया, पर आज तक उसकी रिपोर्ट कहा हैं, किसी को नहीं पता। इ

गणचिह्ववाद या टोटम प्रथा

Totem गणचिह्ववाद या टोटम प्रथा (totemism) किसी समाज के उस विश्‍वास को कहतें हैं जिसमें मनुष्‍यों का किसी जानवर, वृक्ष, पौधे या अन्य आत्मा से सम्बन्ध माना जाए। ‘टोटम’ दृाब्द ओजिब्वे (Ojibwe) नामक मूल अमरीकी आदिवासी कबीले की भाशा के ओतोतेमन (ototeman) से लिया गया है, जिसका मतलब अपना भार्इ-बहन रिश्‍तेदार है। इसका मूल शब्द ‘ओते‘ (ote) है जिसका अर्थ एक ही माँ के जन्में भार्इ-बहन हैं जिनमें खून का रिश्‍ता है और जो एक-दूसरे से विवाह नहीं कर सकते। अक्सर टोटम वाले जानवर या वृक्ष का उसे मानने वाले कबीले के साथ विोश सम्बन्ध माना जाता है और उसे मारना या हानि पहुँचाना वर्जित होता है, या फिर उसे किसी विो