धुमकुड़िया (एक मुक्त सामाजिक विद्यालय) Dhumkuriya (An Open Social School)
धुमकुड़िया: (एक पारम्परिक सामाजिक पाठशाला) :
दस्तावेज / Records / Plans / Survey
धुमकुड़िया: (एक पारम्परिक सामाजिक पाठशाला) :
श्रद्धेय डॅा॰ निर्मल मिंज की इन कविताओं में से 1ली कविता “उज्जकना पूंप लेखआ” में अपने व्य॰क्तिगत एवं पारिवारिक जीवन पर आधारित विचार है। 2री कविता “कुकई झील (फिनलैंड)” में विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्र फिनलैंड की धरती में भी कुँड़ुख़ में सोचते हुए कविता रचना किये हैं। 3री कविता में “तेताली मन्न तेंग्गाोली” में पुराना राँची शहर का नगड़ा टोली‚ राँची का वर्णन है। 4थी कविता “दई घोख” में बड़ी
vinamR sRawWAMjli svarup svaf nirmal miMj ki sAq kaviqAyeE
रांची: स्वतंत्र भारत में 1 जनवरी 1948 को खरसावां गोलीकांड की तुलना जालियांवालाबाग हत्याकांड से की जाती है। ओड़िसा मिलिट्री पुलिस की ओर से की गयी गोलीबारी में 35 आदिवासियों के मारे की पुष्टि हुई थी, लेकिन पीके देव की पुस्तक ‘मेमायर ऑफ ए बाइगोर एरा’ में दो हजार से ज्यादा आदिवासियों के मारे जाने का जिक्र है। कोलकाता से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘द स्टेट्समैन’ ने 3 जनवरी 1948 के एक अंक में छापा ‘ 35 आदिवासीज किल्ड इन खरसावां’। हालांकि अभी तक इस गोलीकांड का कोई निश्चित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। इस गोलीकांड की जांच के लिए ट्रिब्यूनल का गठन किया गया, पर आज तक उसकी रिपोर्ट कहा हैं, किसी को नहीं पता। इ
Totem गणचिह्ववाद या टोटम प्रथा (totemism) किसी समाज के उस विश्वास को कहतें हैं जिसमें मनुष्यों का किसी जानवर, वृक्ष, पौधे या अन्य आत्मा से सम्बन्ध माना जाए। ‘टोटम’ दृाब्द ओजिब्वे (Ojibwe) नामक मूल अमरीकी आदिवासी कबीले की भाशा के ओतोतेमन (ototeman) से लिया गया है, जिसका मतलब अपना भार्इ-बहन रिश्तेदार है। इसका मूल शब्द ‘ओते‘ (ote) है जिसका अर्थ एक ही माँ के जन्में भार्इ-बहन हैं जिनमें खून का रिश्ता है और जो एक-दूसरे से विवाह नहीं कर सकते। अक्सर टोटम वाले जानवर या वृक्ष का उसे मानने वाले कबीले के साथ विोश सम्बन्ध माना जाता है और उसे मारना या हानि पहुँचाना वर्जित होता है, या फिर उसे किसी विो
तोलोंग सिकि कुड़ुख आदिवासी भाषा की लिपि की विकास यात्रा ने एक नयी पीढ़ी तक का सफर तय कर लिया है । 28 वर्षों यह सफर एक कठिन यात्रा की तरह पूरी हुई है। आज भी यह सफर अपनी मंजिल पूरी नहीं कर पाया है परंतु तोलोंग सिकि को आधुनिक भाषा लिपि के रूप में सामाजिक मान्यता मिल चुकी है। यह हमारे सफलता की महत्वपूर्ण सीढ़ी है।
हमारी सामाजिक एकता टूट रही है क्योंकि - 1.आज हमारी पड़हा,धुमकड़िया,अखड़ा, चाला-टोंका, पंचा, मदाइत, कोहा-बेंज्जा,कुंडी आदि की समृद्ध परंपरा छिन्न-भिन्न हो गई है. फलतः,समाज के सभी लोगों को जोड़े ऱखने की जो एकजुट, मजबूत पुरखा परंपरा कायम थी, वह कड़ी व सामाजिक एकजुटता की लय कहीं टूट गई लगती है.ऐसी हालत में अब हम क्या कर सकते हैं? आइए मिलकर सोचें !
1 कुँड़ुख भाषा - कुँड़ुख भाषा एक उतरी द्रविड़ भाषा परिवार की भाषा है। लिंगविस्टक सर्वे ऑफ इंडिया 2011 के रिपोर्ट के अनुसार भारत देश में कुँड़ुख़ भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 19‚88‚350 है। पर कुँड़ुख भाषी उराँव लोग अपनी जनसंख्या के बारे में बतलाते हैं कि पुरे विश्व में कुँड़ुख भाषी उराँव लोग 50 लाख के लगभग हैं। झारखण्ड में इस भाषा की पढ़ाई विश्वविद्यालयों में हो रही है। भारत में उरांव लोग झारखण्ड‚ बिहार‚ छत्तीसगढ़‚ ओड़िसा‚ प0 बंगाल‚ असम‚ त्रिपुरा‚ अरूणांचल प्रदेश‚ उत्तर प्रदेश‚ मध्य प्रदेश‚ हिमाचल प्रदेश‚ महाराष्ट्र तथा विदेशों में से नेपाल‚ बंगलादेश आदि क्षेत्र में है।
झारखण्ड सरकार द्वारा 06 जून 2003 को मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (Medium of instruction of mother tongue) घोषित किया गया है तथा 18 सितम्बर 2003 को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोङ सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया। सरकार के इस निर्णय के बाद जैक द्वारा वर्ष 2009 से मैट्रिक में कुँड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा तोलोंग सिकि में लिखने की अनुमति मिलने तक में कई भाषाविदों के मार्गदर्शन मिले। उनमें से निम्नांकित भाषाविदों के मंतब्य आधार स्तंभ हैं -
झारखण्ड सरकार द्वारा 06 जून 2003 को मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (medium of instruction of mother tongue) घोषित किया गया है तथा 18 सितम्बर 2003 को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोङ सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया। सरकार के इस निर्णय के बाद जैक द्वारा वर्ष 2009 में एक विद्यालय के लिए तथा वर्ष 2016 से सभी विद्यालयों के छात्रों के लिए कुँड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा तोलोंग सिकि में लिखने की अनुमति मिली। इस सरकारी प्रावधान के बाद भाषा के अग्रेतर विकास हेतु कई भाषाविदों एवं शिक्षाविदों से मार्गदर्शन मिले। उनमें से निम्नांकित के मंतब्य साहित्य विकास में मार्गदशक है -
तोलोङ सिकि को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में मान्यता है। झारखण्ड सरकार द्वारा 06 जून 2003 को मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (medium of instruction of mother tongue) घोषित किया गया है तथा 18 सितम्बर 2003 को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोङ सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया है। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार में राजकीय गजट के माण्यम से कुँड़ुख़ भाषा को 01 जून 2018 से 8वीं राजकीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। इस तरह कुँड़ुख़ भाषा एवं तोलोङ सिकि (लिपि) को झारखण्ड सरकार तथा पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा मान्यता प्रदत है।