अद्दी कुडुख़ चाःला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा, रांची, संस्था के वरिष्ठ सदस्य श्रद्धेय
श्री मंगरा उरांव का दिनांक 22.12.2025 को रात्रि में, निधन हो गया। वे 89 वर्ष के थे। वे
एच0ई0सी0, हटिया, रांची से कनीय अभियन्ता के पद से 1992 में वी.आर.एस. लेकर सेवा
निवृत हुए थे। उनका जन्म वर्तमान लोहरदगा जिला के सेन्हा थाना अन्तर्गत एकागुड़ी
कुम्बाटोली गांव में 15 जनवरी 1936 को हुआ था। उनकी मैट्रिक तक की शिक्षा लोहरदगा
जिले के स्कूलों में हुई। उसके बाद वे ड्राफ्टसमैंन ट्रेड से आई0टी0आई0 किये। फिर रांची
में रहकर बी.ए. (कला) की पढ़ाई पूरी की और एल.एल.बी. में दाखिला लिये। पर कालांतर
में पारिवारिक जिम्मेदारी निभाते हुए हटिया, रांची में सन् 1963 में एच0ई0सी० में अपना
सर्विस सेवा में योगदान दिये। वर्तमान में वे अपने बाल-बच्चों के साथ न्यू एरिया
मोरहाबादी, रांची में निवास कर रहे थे। वे अपनी पत्नी, एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के साथ
नाती-पोते के साथ एक हंसता-खेलता परिवार को छोड़कर अपने पूर्वजों के लोक में चले
गए।
एच0ई0सी0 में कार्य करने के आरंभिक दिनों में ही एच0ई0सी0 में डिप्यूटि चीफ
इंजिनियर डिजाईन के पद पर कार्य कर रहे बाबा कार्तिक उरांव के सामाजिक कार्यों से
वे अत्यंत प्रभावित हुए थे। बाबा कार्तिक उरांव की कार्यशैली के बारे में श्रद्धेय मंगरा जी
बतलाया करते थे कि - वे पड़हा नवजागरण के दौर में सामाजिक समर्पण की भावना से
एच0ई0सी0 की नौकरी से त्यागपत्र देकर पड़हा नवजागरण के कार्य में जुड़ने की तैयारी
कर रहे थे। परन्तु कुछ बुजुर्ग साथियों के सलाह पर वे ठिठक गये और समय का इंतजार
करने लगे। दुर्भाग्य से पड़हा नवजागरण अभियान में सक्रीय राजनैतिक का दबाव बढ़ा और
आपस में नोक-झोंक होते-होते कई लोग जीवनदानी कार्यकर्ता बनते-बनते बिछुड़ गए। ६
परे-धीरे परिवार, समाज और नौकरी के बीच सामंजस्य बनाकर चलते हुए वे "विहंगमयोग"
के साधक बने और अंत तक साधना करते रहे। इस साधना काल में उन्हें "विहंगमयोग के
प्रचारक" का भी कार्यभार दिया गया, जिसे वे बखुबी निभाए।
उनके अनेकानेक लेख एवं विचार से पता चलता है कि एच.ई.0सी. की सेवा से 1992
में वी.आर.एस. लेने के बाद कुडुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि लिपि के विकास में अग्रणी
सहयोगी बने। इसी दौरान झारखण्ड राज्य गठन के 10-12 साल बाद कुछ राज्य कर्मी
सेवा निवृत हुए और सेवा निवृति के बाद एक सामाजिक कार्य करने का माहौल बनने लगा।
इस अवसर पर पेशे से चिकित्सक डॉ0 नारायण उरांव "सैन्दा" के संयोजन में कुडुख़ भाषा
और तोलोंग सिकि लिपि का अग्रेतर विकास विषय पर चर्चा होने लगी। कुछ समय के बाद
अद्दी कुडुख़ चाला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा नामक संस्था का गठन किया गया और इस
संस्था का निबंधन 105/2013-14 कराया गया। इस संस्था में मुझे (सेवानिवृत पुलिस
उपाधीक्षक श्री जिता उराँव) संस्थापक सचिव की जिम्मेदारी दी गई तथा संस्था के
संस्थापक अध्यक्ष की जिम्मेदारी सेवानिवृत मुख्य अभियन्ता श्री अजित मनोहर खलखो को
तथा संस्थापक कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी सेवानिवृत कनीय अभियन्ता श्री मंगरा उरांव को
सौंपी गई।
इस दिशा में भी कई अच्छे कार्य भी हुए। हम सभी के संगठनात्मक कार्य एवं
सामाजिक प्रयास से कुडुख़ भाषा की तोलोंग सिकि को सामाजिक मान्यता मिलने लगी और
साथ में झारखण्ड सरकार द्वारा मैट्रिक में कुडुख़ भाषा विषय की मैट्रिक परीक्षा तोलोंग सिकि
लिपि में लिखने की अनुमति मिली और लगातार लिखी जा रही है।
सामाजिक शिक्षा एवं अध्यात्मिक ज्ञान विकास के क्षेत्र में स्व० मंगरा उरांव जी चाहते
थे कि डा० नारायण उरांव अपने सरकारी सेवा के साथ अध्यात्मिक ज्ञान विकास की दिशा
में विहंगमयोग का साधक बनकर आगे बढ़ें। इसके लिए उन्होंने कई स्थानों पर व्याख्यान
सुनने के लिए डा0 नारायण को भी साथ लेते जाते थे। वहीं पर श्रद्धेय मंगरा जी भी कुडुख़
भाषा-लिपि की बैठक में डा0 नारायण के साथ देश के कई राज्यों में साथ-साथ भ्रमण गए।
आज दिनांक 23 दिसम्बर 2025 को मैंने श्रद्धेय मंगरा उरांव जी के बारे में डा0
नारायण उरांव को लगभग 8.30 बजे सुबह जानकारी दिया कि - "श्री मंगरा उरांव जी
हमलोगों के बीच नहीं हैं।" इस दुखद समाचार पर डा0 नारायण ने कुछ देर ठिठककर कहा
कि - श्रद्धेय मंगरा उरांव जी हमेशा एक अभिभावक एवं एक सामाजिक चिंतक के रूप में
हम सबों के साथ रहे। पर आज मैं उनकी अंतिम विदाई के समय उनके सामने तो नहीं हूं,
किन्तु अब मुझे लग रहा है कि उनका संकेत था कि मैं अपने आदिवासी साहित्य शोध कार्य
के लिए एक बार समुद्र की यात्रा पर अवश्य जाउं, तभी आदिवासी साहित्य शोध का कार्य
आगे पूर्ण हो पाएगा। आज उनका अंतिम समाचार, मैं अण्डामन-निकोबार द्वीप में पहूंचकर
सुन रहा हूँ।" श्रद्धेय मंगरा जी हमेशा कुडुख़ में एक गीत गुनगुनाया करते थे -
ओर - काःला लगी, काःला लगी, रे,
जीनो इंज्जो का:ला लगी रे।।
फेर - ख़ाड़-ख़ोसरा डहरे, समुदर नू समारआ,
जीनो इंज्जो काःला लगी रे।।
अंत में अद्दी कुडुख़ चाःला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा, संस्था की ओर से
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
"पचबल पुरखर मु० सय मंगरा उराँव ददासिन तमहँय मजही, संग्गे ननदर नेकआ।"
अद्दी अखड़ा की ओर से सादर समर्पित :
श्री जिता उराँव, पूर्व अध्यक्ष, अद्दी अखड़ा।