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‘तोलोंग सिकि वर्णमाला’ का संशोधित स्वरूप जून 1997 को

‘ग्राफिक्स ऑफ तोलोंग सिकि’ नामक पुस्तिका के लोकार्पण के अवसर पर दिनांक 05 मई 1997 को राँची विश्वविद्यालय, राँची के पूर्व कुलपति तथा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभगाध्यिक्ष भाषाविद डॉ. रामदयाल मुण्डा ने कहा कि - ‘ग्राफिक्स ऑफ तोलोंग सिकि’ पुस्तिका में प्रस्तुत वर्णमाला संस्कृत-हिन्दी की तरह है। आदिवासी भाषा की लिपि के लिखने के तरीके में आदिवासी परम्परा-संस्कृति आदि की झलक होनी चाहिए। लिखने के तरीके में यह जरूरी नहीं है कि आदिवासी समाज संस्कृत-हिन्दी के लेखन तरीके के पीछे-पीछे चले। कहा जाता है, भारत देश फूलों का गुलदस्ता के समान है अथवा फूलों की बगिया के समान है और उस गुलदस्ता में कई अलग-अलग फूल होते हैं। इस तरह आदिवासी समाज भी उस फूल के बगिये के कई फूल में से कुछ विशिष्ट फूल की तरह हैं। अतएव आदिवासी भाषा की लिपि का लेखन तरीका सामाजिक धरोहर का प्रतिनिधि बनें तथा भाषा विज्ञान संगत हो। यह आदिवासी अस्मिता तथा झारखण्ड आन्दोलन के लिए दिशा निर्धारक बनें।

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लिपि के संशोधित स्वरूप विषय पर आदिवासी बुद्धिजीवियों की विचार गोष्ठी दिनांक 22 जून 1997 को खड़िया भाषाविद स्व. जूलियस बाअ़ की अध्यक्षता में सत्यभारती, राँची में सम्पन्न हुई और संशोधित स्वरूप तैयार किया गया। बैठक में डॉ. रामदयाल मुण्डा एवं डॉ. फ्रांसिस एक्का के सुझाव के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय ध्वनि विज्ञान के सिद्धांत के अनुरूप आसान से कठिन की ओर, सभी ध्वनियों का प्रतिनिधित्व एवं कम से कम संकेत चिन्हों से अधिक से अधिक ध्वनियों को लिख सकने की विधा पर ध्यान केन्द्रित करते हुए संशोधित वर्णमाला स्थापित किया गया। उपस्थित प्रतिनिधियों एवं आदिवासी बुद्धिजीवियों की विचार गोष्ठी में सर्व सहमति से इस संशोधित वर्णमाला स्वरूप को स्वीकार किया गया तथा निर्णय लिया गया कि इस संशोधित स्वरूप को केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर (भारत सरकार) के निदेशक डॉ. फ्रांसिस एक्का को आवश्यक दिशा निर्देश के लिए भेजा जाय। बैठक के अंत में शिक्षाविद डॉ. निर्मल मिंज ने इस संशोधित रूप को अंतिम स्वरूप की संज्ञा दी और आह्वान किया कि अब इस संशोधित स्वरूप से साहित्य सृजन किये जाएँ।
इस बैठक में तोलोंग सिकि के प्रस्तोता डॉ. नारायण उराँव, भाषाविद डॉ. रामदयाल मुण्डा, शिक्षाविद डॉ. निर्मल मिंज, डॉ. विश्वनाथ भगत, श्री पी.एन.एस.सुरीन, फा. प्रताप टोप्पो, श्री हिमांशू कच्छप, प्रो. मीना टोप्पो, प्रो. नारायण भगत, प्रो. रामकिशोर भगत, प्रो. राजेश कुजूर, डॉ. बुदु उराँव, श्री मंगरा उरँव, श्री विवेकानन्द भगत एवं कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। 

Jyoti Toppo
आलेख :-
डॉ. श्रीमती ज्योति टोप्पो
सहायक प्राध्यापक (संस्कृत)
गोस्सनर कॉलेज, राँची।
 

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