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झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की लिपि 'तोलोङ सिकि' पर भाषाविद डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से विमर्श

झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की नई लिपि तोलोङ सिकि, विषय पर भाषाविद डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से विमर्श : झारखण्ड आंदोलनकारियों की मांग पर आदिवासी भाषा की नई लिपि तोलोङ सिकि, विषय पर विचार–विमर्श करने के लिए केन्द्रीसय भारतीय भाषा संस्थासन‚ मैसूर  (भारत सरकार) के भाषाविद‚ प्रोफेसर सह निदेशक डॉ॰ फ्रांसिस एक्का से मैं (डॉ॰ नारायण उराँव) बिहार की राजधानी पटना के होटल सम्राट  में 27 एवं 28 जुलाई 1996 ई0 को मुलाकात किया। उस समय डॉ॰ एक्का‚  ACTION AID  नामक संस्था के सेमिनार में मुख्यर अतिथि के रूप में पटना आये हुए थे। उनके साथ मैंने कई प्रश्नों  पर विस्तृत चर्चा किया। परिचर्चा के प्रथम दिन 27 जुलाई 1996 को डॉ॰ एक्का के विज्ञान, तकनीकी तथा कम्प्यूटर की बातों में मैं उलझ गया। इसी तरह गाँव-समाज की बातों में डॉ॰ एक्का भी उलझ गये। मैंने कहा - आदिवासी समाज अपने सभी नेगचार-अनुष्ठान, संस्कार-संस्कृति आदि घड़ी की विपरीत दिषा में सम्पन्न करते हैं। आधुनिक मशीन द्वारा इन बातों को नजर अंदाज किया जाता है। इसलिए नई लिपि संस्कृति आधारित हो। दूसरे दिन, 28 जुलाई को इन बातों पर फिर नये सिरे से चर्चा हुई और प्रकृति विज्ञान आधारित रहस्यों, सामाजिक सह सांस्कृतिक अवदानों एवं भाषा वैज्ञानिक सिद्धातों के आधार पर झारखण्ड आन्दोलन को देखते हुए डॉ॰ एक्का ने सुझाव दिया - दुनियाँ में कोई भी लिपि 100 प्रतिशत सही नहीं है तथा दुनियाँ की सभी लिपियाँ, समाज एवं संस्कृति पर आधारित हैं। मानव, सर्वप्रथम बोलना सीखा, उसके बाद लिखना एवं पढ़ना। वर्तमान परिवेश में आदिवासी समाज को भी अपनी भाषा-संस्कृति को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने हेतु सामाजिक सह सांस्कृतिक आधार वाली लिपि तैयार करनी होगी। नई लिपि में निम्न प्रकार के गुण होने चाहिए – 
(क) नई लिपि, आदिवासी समाज और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला हो।
(ख) नई लिपि, एक ध्वनि, एक संकेत के अन्तर्राष्ट्रीय ध्वनि विज्ञान के सिद्धांत के अनुरूप हो।
(ग) आदिवासी भाषा की सभी मूल ध्वनि का लिपि चिन्ह  हो‚ संयुक्ताआक्षर का अलग चिन्ह  न हो।    
(घ) नई लिपि के अक्षर का नाम और ध्वनिमान एक समान हो।
(ङ) International Phonetic Alphabet (IPA)  के सिद्धांत के अनुरूप 6 मूल स्वर पर आधारित हो। 
(च) नई लिपि में, लिखने और पढ़ने में समानता हो।
(छ) नई लिपि, लिखने और समझने में आसान तथा सरल हो।             
(ज) अक्षर सिखलाने का तरीका आसान से कठिन की ओर होना चाहिए। 
(झ) नई लिपि में phoneme के लिए ध्वनि चिन्ह होने चाहिए, Allophones के नहीं।
(ञ) नई लिपि, अपने भाषा परिवार के अनुरूप Sitting Script  समूह के होने चाहिए।
(ट) नई लिपि, वर्णात्मक लिपि हो तथा अधिक से अधिक लिपि चिन्ह का घुमाव
दायें से बायें होते हुए दायें की दिशा में बढ़ने वाला हो क्योंकि अधिकतर लोग दायें
हाथ से लिखने वाले होते हैं। 
पटना में, वर्ष 1996 में डॉ॰ एक्का से मुलाकात से पहले मैं कई बार पत्र लिखा तथा व्यक्तिगत रूप से भेंट कर बातचीत करने की इच्छा प्रकट की। इसी क्रम में मैं सितम्बर 1994 में एक पत्र लिखा जो उन्हें 30॰09॰1994 को मिला। इस पत्र के उत्तर में उन्होंने सुझाव दिया कि मैं पटना या राँची आने पर खबर कर दूँगा। 13 जनवरी 1995 को लिखा गया उनका पहला पत्र प्राप्त हुआ। इसी तरह जानकारी मिली कि वे पटना आ रहे हैं। तब मैं पटना जाकर मिला और लिपि विकास में उठ रही समस्याओं के समाधान हेतु मार्गदर्श्‍न प्राप्त किया। डॉ॰ एक्का ने सुझाव दिया कि - मैं International Phonetic Alphabet (IPA)  के सिद्धांत पर कार्य करूँ। 
    

Narayan Oraon       
- डॉ॰ नारायण उराँव  ‘सैन्दा’
दिनांक : 28.07.1996
 

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