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कुंड़ुखटाइम्स डॉट कॉम तथा कुँड़ुख पाठ्य पुस्तकों का लोकार्पण

डॉ रामदयाल मुण्डा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, झारखंड़ सरकार एवं कुंड़ुख भाषा, संस्कृति, परंपरा, लिपि के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए समर्पित संस्था अद्दी कुंड़ुख चाःला धुमकुड़िया, पड़हा अखड़ा (अद्दी अखड़ा) रांची के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020 को डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सत्यनारायण मुण्डा के मुख्य आतिथ्य में संस्थान के सभागार में एक लोकार्पण कार्यक्रम संपन्‍न हुआ। कुंड़ुख भाषा के लिए तोलोंग लिपि के आविष्कारक डॉ नारायण उराँव सैन्दा ने लिपि के विकास से जुड़ी विकास यात्रा की संक्षिप्त जानकारी दी और बताया कि तोलोंग सिकी के विकास में डॉ रामदयाल मुण्डा एवं डॉ फ्रांसिस एक्का जैसे विद्वानों के अलावा कई भारतीय भाषाविदों का मार्गदर्शन के साथ कई झारखंड आंदोलनकारियों की भी सहायता मिली थी। 

लोकार्पण कार्यक्रम में झारखंड के स्कूलो में पहली से पाँचवी क्लास तक पढ़ाई जानेवाली कुंड़ुख किताबों का लोकार्पण कुलपति डॉ सत्यनाराण मुण्डा के कर कमलों द्वारा किया गया। उन्होंने अपने उद्गार व्यक्त करते कहा कि- ‘कुंड़ुख व अन्य आदिवासी भाषाओं के विकास के से हमें उन समाजों की कई अच्छी जीवन-पद्धितियाँ, लोकाचार, औषधीय ज्ञान आदि की दुर्लभ जानकारियाँ प्राप्त हो सकतीं हैं जो आज के संकटशील विश्व समुदाय के लिए उपयोगी हो सकती हैं। इस संबंध में अधिक शोध व कार्य को अधिक प्रोत्साहन देने पर भी उन्होंने बल दिया।

कुंड़ुखटाइम्स डॉट कॉम को पत्रकार किसलय ने विकसित  किया है। उन्होंने इसके बारे जानकारी देते बताया कि इस वेबसाईट पर कुंड़ुख भाषा से संबंधित लेख, विवरण आदि न केवल हिन्दी या अंग्रेजी में उपलब्ध होंगे बल्कि कुंड़ुख भाषा में तोलोंगि‍सिकी एवं देवनागरी लिपि में भी उपलब्ध होंगे। इसके अलावा संबंधित जानकारियों के चित्र व वीडियो भी संलग्न होंगे। कोई भी कुंड़ुख भाषा संबंधी विवरण, लेख आदि कुड़ुख टाइम्स कॉम को भेजी जा सकती है।

भूतपूर्व मंत्री देव कुमार धान ने कुंड़ुख समाज के जुझारू संघर्ष की याद दिलाते कोल विद्रोह के सेनानी बुधु भगत के बारे शोध अनुसंधान कराने व इसके प्रकाशन का आग्रह किया। 

डॉ रामदयाल मुण्डा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक रणेन्द्र कुमार द्वारा क़ुँड़ुखटाइम्स डॉट कॉम का लोकार्पण किया गया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि -  कुंड़ख , द्रविड़ भाषा परिवार की भाषा है अतः उसे दक्षिण भारतीय द्रविड़ भाषाओ की संगम जैसी समृद्ध साहित्य परंपरा  से कुंड़ुख भाषा को प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। उन्होंने बीर बुधु भगत की चर्चा करते बताया कि विश्व इतिहास में एक ही परिवार द्वारा सौ से अधिक लोगों की शहादत का इतिहास में दर्ज न होना बेहद दुखद है। इसके लिए संस्थान द्वारा शोध कार्य कराया जा रहा है साथ ही भाषा, कला, संस्कृति के संरक्षण संबंधी विविध कार्य व गतिविधि, कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित किए जाते रहे है। उन्होंने विद्वानों, लेखकों, छात्रों से वेब का अधिक से अधिक उपयोग करने का आग्रह किया।

इस अवसर पर डॉ नारायण भगत, जीता उराँव, फादर अगुस्टीन केरकेट्टा, महादेव टोप्पो ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस आयोजन में डॉ मीना टोप्पो, समाजसेवी लवहरमन उराँव, फिल्मकार बीजू टोप्पो, संस्कृतिकर्मी सरन उरांव तथा शोध छात्र एवं कई कुंड़ुख भाषा प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ शांति खलखो ने तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के उप निदेशक चिंटू दोराईबुरू ने किया।

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