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हम हिंदू नहीं, आदिवासियों ने मांगा ‘आदिवासी धर्म’ का अधिकार

हम हिंदू नहीं हैं, हम भील और गोंड भी नहीं हैं। हम आदिवासी हैं। सरकार 2021 में होने वाली जनगणना में आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड और कॉलम निर्धारित करे। यह मांग 25 फरवरी 2019 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकजुट हुए आदिवासियों ने की। इस मौके पर बामसेफ के खिलाफ भी आवाज उठी

बीते 25 फरवरी 2019 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश भर के आदिवासी समाज के लोग जुटे थे। वे नारा लगा रहे थे। वे मांग कर रहे थे कि “हम हिंदू नहीं, 2021 में होने वाले जनगणना में हमारे आदिवासी धर्म का अलग कोड और कॉलम हो।”

यह प्रदर्शन राष्ट्रीय आदिवासी इंडीजीनियश धर्म समन्वय समिति के तत्वावधान में आयोजित किया गया। इस जुटान में अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद रांची (झारखंड), विश्व आदिधर्म परिषद (भारत) राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति (दिल्ली) आदि संगठनों ने भाग लिया। इस मौके पर भारत सरकार को 2021 की जनगणना में पृथक धर्म कोड या कालम जोड़े जाने के संबंध में ज्ञापन सौंपा गया।

नो कोड – नो वाेट
धरना को संबोधित करते हुए समिति के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद उरांव ने कहा कि “हमारी मांग है कि वर्ष 2021 के जनगणना प्रपत्र में हम आदिवासियों के लिए अलग कोड व कॉलम हो। नहीं तो 2019 के चुनाव में हमारा नारा होगा ‘नो कोड नो वोट’। और हमारा ये आंदोलन 2019 के चुनाव में बड़ा असर डालेगा।”

वहीं गुजरात के भरुच जिले से आए दशरथ ने आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराजगी भी जताई। उन्होंने कहा कि “सरकार ही बताए कि हम आदिवासी जाएं तो कहां जाएं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार हमारे आदिवासी धर्म को मान्यता दे।”

प्रधानमंत्री ने आदिवासियों को बनाया बुड़बक
झारखंड से आए रामपाल ने कहा कि “प्रधानमंत्री ने हमें बुड़बक बनाया है। उन्हें यह नहीं समझ आता कि जब पेड़ नहीं रहेंगे तो सांस कहां से लेंगे। पानी नहीं रहेगा तो पीएंगे क्या?”


धरना को संबोधित करतीं अनीता ओरांव

अनीता ओरांव का कहना था कि “हमारे आदिवासी समाज पर आये ख़तरे के विरोध में हम यहां आये हैं। अंग्रेजों ने जनगणना में हमारे लिए जो शब्द इस्तेमाल किया था, हमें वही वापस दे दिया जाए। जबकि हमसे हमारी मूल पहचान छीनकर तमाम धर्मों के साथ जोड़ दिया गया है। हमें एक शब्द आदिवासी पर सहमत होकर कॉलम में देने की मांग करनी चाहिए। साथ ही हमें बामसेफ द्वारा 85 प्रतिशत आबादी को मूलनिवासी घोषित करने के राजनीतिक साजिश से भी सावधान रहना होगा।”

इस मौके पर काशीनाथ सागोन ने एक गीत के माध्यम से अपनी बात कही। उन्होंने गाते हुए कहा कि “न सरना, न गोंडी भइया/ न ही हम ओरांव, न भील हैं/ हम सब आदिवासी हैं/ देश बनाओ देश बनाओ / देश है हमारा/ सबसे पहले हम आदिवासी हैं।”


 उन्होंने कहा कि “1947 में 258 राजघरानों ने भी देश की आजादी के लिए लड़कर इस देश का बनाया था। पूरे देश की 65 प्रतिशत जमीन हमारी है। यह अनुच्छेद 244(1)भी कहता है। 1200 ईसा पूर्व यह देश गोंडवाना के नाम से होता था। उन्होंने हमें बांटकर फिर हमारा सबकुछ छीन लिया।”

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