रांची: कुंड़ख भाषा एवं इसकी लिपि 'तोलोंग सिकि' को विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने को लेकर उद्वेलित कुंड़ुख भाषा-भाषी समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों रांची विश्वविद्यालय के कुलपति से भेंट की। कुलपति ने विषय को गंभीरता से लेते हुए एक मार्च 2024 का दिन तय किया और प्रतिनिधिंडल को बताया कि उस दिन कुंड़ुख समाज के लोग एवं विद्यार्थी तथा क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषा विभाग के शिक्षाविदों के बीच इस विषय पर एक बैठक होगी। तय समय पर हुई इस बैठक में कुड़ुख भाषा एवं उसकी लिपि तोलोंग सिकि को विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में शामिल करने पर कोई निर्णय नहीं हो पाया। इसमें क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषा विभाग के शिक्षाविदों की चुप्पी ने कुंड़ुंख भाषा के भविष्य पर प्रश्न लगा दिया है। इस बैठक के बाद प्रतिनिधिगण काफी नाखुश हैं।
रांची विश्वविद्यालय सभागार में संपन्न उस बैठक की अध्यक्षता ओपेन युनिवर्सिटी के कुलपति डॉ त्रिवेणी साहु ने की। बैठक में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के कुंडुंख प्राध्यापकगण, शोधार्थीगण और उरांव समाज के पड़हाबेल एवं पंच-गण उपस्थित रहे।
बैठक में प्रस्ताव रखा गया कि झारखंड सरकार द्वारा स्वीकृत कुंड़ुंख भाषा एवं लिपि तोलोंग सिकि को प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा। बीए-एमए के कुंड़ुंख भाषा पाठ्यक्रम में 'कुंडुंख तोलोग सिकि अखओत' विषय के पाठ्यक्रम का पूर्णांक 50 होगा। यह भी सुझाव आाया कि राज्य के प्रत्येक विद्यालय एवं विश्वविद्यालय में तोलोंग सिकि के जानकार शिक्षकों की बहाली सरकार द्वारा की जानी चाहिए। इसके अलावा समय समय पर तोलोंग सिकि पर प्रशिक्षण एवं कार्यशाला आदि आयोजित किया जाना चाहिए। लेकिन अध्यक्ष से लेकर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषा विभाग के शिक्षकों ने मौन धारण कर लिया। यहां तक कि उन्होंने प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षण भी नहीं किये। माना जा रहा है कि इससे कुंड़ुंख काफी निराश और उद्वेलित है।
इस बैठक में विजय उरांव, रामदास उरांव, सोमरा उरांव, गैना उरांव, रामेश्वरी कुमारी, अरविंद उरांव , सुका उरांव, विजय उरांव, जुठकी उरांव, पंकज उरांव, देवठान उरांव, दिवाकर उरांव, विनोद भगत, नीतू साक्षी टोप्पो, सुषमा मिंज, मोनिका तिर्की, लखन उरांव, आदि शामिल हुए।