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राउरकेला  में प्रथम धुमकुड़िया का दो दिवसीय सफल आयोजन, डॉ नारायण उरांव "सैंदा" ने युवाओं को प्रेरित किया

नेड्डा -29/06/2024 से 30/06/2024 को दो दिवसीय करियर काउंसलिंग कार्यक्रम के आयोजक:- सरना प्रार्थना सभा, उड़ीसा द्वारा सरना चौक निकट धुमकुड़िया भवन, उदितनगर, राउरकेला में  आयोजन हुआ। कुंडुख समाज कैसे बचेगी?  इसी सवाल का जवाब में- विलुप्त होती अपनी मातृभाषा कुंडुख़, पड़हा, धुमकुड़िया, अखड़ा, सारना (अध्यात्म स्त्रोत- सरना प्रार्थना सभा) सरना धरम, ने-ग चार,  कुंडुख़ संस्कृति आदि का संरक्षण ,संवर्धन एवं विकास के लिए उरांव कुँडुख़ समुदाय क्या कर रही है? इसे जानने समझने की आवश्यकता है। डॉ नारायण उराँव, तोलोंग सिकि आविष्कारक एवं अरविंद उराँव, संस्थापक- कुँडुख़ स्कूल, मंगलो के बीच उड़ीसा राज्य के कुँडुख़/उराँव समुदाय की अपनी भाषा लिपि  पर उनकी स्थिति के  बारे  में चर्चा किया करते थे। डॉ उराँव हमेशा कहते थे कि झारखंड से बेहतर पड़हा व्यवस्था का संचालन उड़ीसा के कुंडुख़र कर रहे हैं। लेकिन अपनी भाषा लिपि, एवं धुमकुड़िया पर स्पष्ट निर्णय का पता नही चलता है देखना होगा। उड़ीसा वाले आगे क्या निर्णय लेते हैं। इससे आगे बात नही बढ़ पाती थी। धुमकुड़िया 2024 राउरकेला, उड़ीसा में शामिल होने के बाद एक नया उम्मीद,  तोलोंग खोड़हा, झारखंड में जाग उठी है। अब उड़ीसा के कुँडुख़/ उराँव समुदाय सही निर्णय लेते हुए अपनी विलुप्त होती कुंडुख भाषा को बचाने एवं कुंडुख भाषा की अपनी लिपि तोलोंग सिकि को उड़ीसा सरकार से मान्यता लेने हेतु आवेदन करने की उम्मीद है। झारखंड से मैं अरविन्द उरांव, नीतु साक्षी टोप्पो, श्री भुवनेश्वर उरांव तीनों धुमकुड़िया 2024, राउरकेला उड़ीसा में शामिल होकर अपने समुदाय को बचा पाने का अनुभव महसूस कर रहे हैं। धूमकुड़िया में इतने पेल्लर-जोख़र का शामिल होना एक अच्छा संकेत है। इससे पहले झारखंड के सिसई,  टुकू सैंदा नामक स्थान पर धुमकुड़िया शिक्षण शुरु  करने के लिए लगभग 250, इंटर, बी. ए., एम.ए. के कुंडुख़ पेल्लर-जोख़र प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु 2020 में शामिल हुए थे। परिणामस्वरूप खास कर झारखंड के गुमला, लोहरदगा, रांची जिला में धुमकुड़िया  शिक्षण कार्य प्रारंभ की जा रही है।  
डाॅ नारायण उराँव ने  कुंडुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि पर 30 वर्षो  का कार्य उपलब्धि को साझा किया एवं धुमकुड़िया 2024, उड़ीसा राउरकेला में शामिल पेल्लर-जोख़र को अनेक समाजिक गुर सिखाये।  सरना प्रर्थना सभा झारखंड प्रदेश के अध्यक्ष रवि तिग्गा जी  ने धुमकुड़िया 2024 राउरकेला  शामिल पेल्लर-जोख़र को अपनी सरना धरम, संस्कृति के बारे में विस्तार से बताये। आयोजन कर्ता मणीलाल केरकेट्टा, राउरकेला, उड़ीसा के विचारधारा पर कुंडुख़ समाज को चलने की आवश्यकता है। श्री मणिलाल केरकेट्टा जी के धरम पत्नी ने डॉ नारायण उराँव के बातों को ध्यान पूर्वक सुनने के बाद बताई कि शुरू में खटपट सा लगा लेकिन बाद में बहुत ही अच्छी-अच्छी बातों को बता रहे थे जो सुनने योग्य था और उनकी बातों को अमल करने की जरूरत है। और उनके बताये मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में उपस्थित युवा उत्साहित होकर वक्ताओं को सुन रहे थे। तोलोंग सिकि वर्णमाला को लेकर उन्होंने डॉ नारायण उरांव "सैंदा" से कई सवाल भी पूछे जैसे अंग्रेजी में पांच स्वरों से अलग तोलोंग सिकि लिपि में छह स्वर क्यों है? भाषा लिपि समझने के लिए उन्हें रोचक संतोषजनक जवाब मिला।
झारखंड सरकार में तोलोंग सिकि का मान्यता
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कुंडुख़ भाषा को बचाने का संकल्प हम सभी कुँड़ख़र को लेना ही होगा। अन्यथा पूर्वजों और आने वाली पीढ़ी माफ नहीं करेगी। डा नारायण उराँव तोलोंग सिकि जन्मदाता, पेशे से डॉक्टर होते हुए  अपनी  मातृभाषा कुंडुख़ एवं कुंडुख़ समाज को बचाने के लिए दिन-रात कार्य कर रहे हैं। उनके 30 वर्षों का तोलोंग कार्य को फलते-फुलते देख सकते हैं। 5 पड़हा, 7 पड़हा, 9 पड़हा (3 संगी पड़हा, 21 पद्दा ) सिसई भरनो के द्वारा आयोजित शिवनाथ-चटकपुर बगीचा में पहला बिसु सेंदरा 2011 में डाॅ उराँव के द्वारा सेंदरा सभा को संबोधित करते हुए कुँडुख़ प्रवेशिका पुस्तक "कइलगा"  को कुंडुख़ समाज सिसई, भरनो के बीच पहली बार प्रस्तुत किये थे। उसी सेंदरा सभा में मैं अरविंद उराँव, कार्तिक उराँव आदिवासी कुँडुख़ स्कूल मंगलो, सिसई, गुमला (झारखंड) के माध्यम से विलुप्त होती अपनी मातृभाषा कुंडुख़ एवं संस्कृति को बचाने का छोटी सी प्रयास को साझा, डॉ उराँव की उपस्थित में किया था।  उसने मुझसे एक ही सवाल किये थे। "नीन नन्नर घी गोहलन एँवदां उल्ला उयोय?" मेरे पास  इस सवाल का जवाब नहीं था" लेकिन उसने बिसु सेंदरा में उपस्थित कुँडुख़र के बीच इस सवाल का जवाब चाहते थे। इसलिए कहा बुझुरकय? हमने कहा हाँ, यदि उसी समय डा उराँव के द्वारा दूसरा सवाल एंदरा बुझुरकय? करते तो, पता नहीं मेरा स्थिति क्या होता?  सेंदा से वापसी के दौरान उत्तर ढूंढ लिया।  घर पहुंच कर तीन घंटे में तोलोंग सिकि से लिखना-पढ़ना-सीखा और  ठीक उसके अगले दिन से ही विद्यालय में कुँडुख़ भाषा विषय को उनकी लिपि तोलोंग सिकि से पढ़ाना-लिखाना शुरु की गई। 2012 से लगातार कुँडुख़ स्कूल मंगलो के छात्र, छात्राओं के द्वारा मैट्रिक की परीक्षा एक भाषा  विषय कुँडुख़ को उनकी लिपि तोलोंग सिकि से लिखने के लिए अनुमति झारखंड सरकार से वर्ष 2016 तक की गई। अंतत: 12 फरवरी 2016 को तोलोंग सिकि से मैट्रिक की परीक्षा एक भाषा विषय कुँडुख़ को लिखने की अनुमति झारखंड सरकार के द्वारा दी गई । यह मांग हेतु अनेक कुँडुख़ लूरगर, बुद्धिजीवी लोग आगे आए इसका परिणाम है। कुँडुख़ समाज का यह पहला उपलब्ध था इस तिथि को अस्थाई बृहत कुँडुख़ तोलोंग जतरा का आयोजन झारखंड में की जाती रही है। 

बंगाल सरकार ने वर्ष 2018 में तोलोंग सिकि को मान्यता दी है।
आप सभी जानते हैं कि किसी भी भाषा का संरक्षण एवं संवर्धन करने के लिए लिपि की आवश्यकता होती है। तभी उन भाषा का पूर्ण विकास किया जा सकता है।
कुंडुख़ उराँव समुदाय (उड़ीसा), जल्द तोलोंग सिकि को उड़ीसा सरकार से मान्यता हेतु आवेदन करेगी। बुदु केरकेट्टा, कोषाध्यक्ष, सरना प्रार्थना सभा स्टेट कमिटी, उड़ीसा ने बताया कि कुंडुख़ भाषा की अपनी लिपि तोलोंग सिकि को उड़ीसा सरकार से मान्यता हेतु तैयारी की जा रही है। 
धुमकुड़िया 2024 राउरकेला मे 220 पेल्लर-जोख़र  शामिल हुए यदि कुंडुख समाज का विकास के लिए युवक-युवतियों को धुमकुड़िया के माध्यम से प्रशिक्षण देना अतिआवश्यक है। वहां मौजूद सरना स्थल 7 एकड़ पर फैला हुआ है यह भारत का सबसे बड़ा सरना स्थल का रिकॉर्ड होगा जो एक शहर के बीच में है।  उड़ीसा कुंडुख समुदाय (सरना प्रार्थना सभा) का  इस अहम योगदान याद रखने योग्य है। धुमकुड़िया 2024 राउरकेला का सफल आयोजन में निम्न सरना प्रार्थना सभा के पदधारियों का मुख्य योगदान रहा।
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सरना प्रार्थना सभा स्टेट कमिटी के अध्यक्ष:- मणीलाल केरकेट्टा 
उपाध्यक्ष:-गजेन्द्र गिद्ध;
सचिव:-सुशील कुमार लकड़ा ;
संयुक्त सचिव:-धनेशवर तिर्की ;
कोषाध्यक्ष:-बुदु केरकेट्टा;
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सरना प्रार्थना सभा जिला कमिटी के अध्यक्ष:-बिल्लु तिर्की ;
उपाध्यक्ष  :सुशील खलखो (फाइनेंशियल मैनेजमेंट);
सचिव:-अननता उराँव ;
कोषाध्यक्ष:- गोपाल तिर्की; 
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सरना प्रार्थना सभा राउरकेला के अध्यक्ष:- झरियो केरकेट्टा;
सचिव:- हेमन्ती लकड़ा ;
कोषाध्यक्ष:-मनी तिर्की ;
फाइनेंशियल मैनेजमेंट:- फगुवा  कुजूर। 
साथ में कुंडुख़ भाषा ,संस्कृति प्रेमी सरोज मिंज, सुशांत उराँव कुंडुख शिक्षक का भी सराहनीय योगदान रहा है | 
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रिपोर्टर-
अरविंद उराँव

कार्तिक उराँव आदिवासी कुंडुख़ स्कूल  मंगलो सिसई, गुमला (झारखंड) के प्रिन्सिपल
 

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