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देश को मिला पहला महिला आदिवासी राष्‍ट्रपति / द्रौपदी की जीत पर..

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज कर भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के तौर पर अपना नाम दर्ज करवा लिया है। मुर्मू की जीत पर देश के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में उत्‍साह और आशाओं की लहर व्‍याप गई है। मुर्मू की जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें बधाई देने के लिए उनके घर पहुंचे, वहीं उनके साथ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी नए राष्ट्रपति को बधाई देने पहुंचे।

इस बार राष्ट्रपति चुनाव में 98.91% वोटिंग हुई थी। चुनाव आयोग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 12 राज्यों में 100 फीसद मतदान हुआ। जिसमें छत्तीसगढ़, केरल, कर्नाटक, एमपी, मणिपुर, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, तमिलनाडु और पुडुचेरी शामिल हैं।

द्रौपदी मुर्मू देश की 15 वीं राष्ट्रपति बन गई हैं। वे इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने वाली देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के प्रत्याशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को तीसरे राउंड की गिनती में ही पीछे छोड़ दिया। तीसरे राउंड में मुर्मू को 5 लाख 77 हजार 777 वोट मिले, जबकि जीत के लिए सिर्फ 5 लाख 43 हजार 261 वोट की जरूरत थी। 

मुर्मू के गांव में जीत का जश्न : 
द्रौपदी मुर्मू की जीत के बाद ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित उनके पैतृक गांव बैदापोसी के अलावा उपरबेड़ा और पहाड़पुर में भी जश्न मनाया गया। लोग ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाकर मुर्मू की जीत की खुशियां मना रहे हैं। ओडिशा के रायरंगपुर कस्बे में भी उनके चाहने वाले लड्‌डू बांटकर खुशियां मना रहे हैं।

पार्षद से महामहिम तक का सफर : 
बता दें कि द्रौपदी मुर्मू ने 25 साल पहले पार्षद बनने से लेकर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का सफर तय किया है। द्रौपदी मुर्मू सबसे पहले 1997 में ओडिशा के रायरंगपुर नगर पंचायत से पार्षद का चुनाव जीती थीं। इसके तीन साल बाद 2000 में वो रायरंगपुर से पहली बार विधायक बनीं। बाद में उन्हें 2002 से 2004 के बीच भाजपा-बीजेडी सरकार में मंत्री बनने का मौका मिला। 18 मई 2015 को द्रौपदी मुर्मू झारखंड की 9वीं राज्यपाल बनीं। वो अपने राजनीतिक जीवन में कई प्रमुख पदों पर रह चुकी हैं। 

मुर्मू के पास 2 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी : 
2014 के हलफनामे के मुताबिक, द्रौपदी मुर्मू के पास 2 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति है। इसके अलावा उनके पास कुल 14 लाख रुपए की देनदारी भी है। वहीं, यूपीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे यशवंत सिन्हा द्वारा 2009 के लोकसभा चुनाव में दाखिल किए गए हलफनामे के मुताबिक, उनके पास 3 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति है। हालांकि सिन्हा के पास किसी भी तरह की देनदारी नहीं हैं।

जब दु:खों के पहाड़ पर फतह पाया द्रौपदी ने.. 

बता दें कि वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है। 25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू नए राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगी। मुर्मू ने अपने जीवन में संघर्ष करने के साथ ही बहुत दुख झेले हैं। अपने 3 जवान बच्चों और पति को खोने के बाद भी द्रौपदी टूटी नहीं और पूरी हिम्मत के साथ जिंदगी में आगे बढ़ती गईं। 

3 बच्चों और पति को खोया, फिर भी नहीं टूटीं : 
द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में 20 जून, 1958 को हुआ था। वो आदिवासी संथाल परिवार से आती हैं। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था। द्रौपदी मुर्मू की शादी 1980 में श्याम चरण मुर्मू से हुई। उनके 4 बच्चे (दो बेटे और दो बेटी) हुए, जिनमें से अब सिर्फ एक बेटी ही बची है। मुर्मू के पति के अलावा दो बेटे और एक बेटी अब इस दुनिया में नहीं हैं।

एक के बाद एक आते रहे दुख लेकिन..
शादी के बाद 1981 में द्रौपदी मुर्मू पहली बार मां बनीं और उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। हालांकि, 3 साल की उम्र में ही 1984 में उसकी मौत हो गई। इसके बाद 25 अक्टूबर, 2010 में उनके बड़े बेटे लक्ष्मण की मौत हो गई, वो 25 साल के थे। अपने जवान बेटे की मौत से द्रौपदी पूरी तरह टूट गई थीं। हालांकि, इससे उबरने के लिए वो रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी आश्रम जाने लगीं। इससे उन्हें इस सदमे से उबरने में थोड़ी मदद मिली।

सदमे से उबरने के लिए मुर्मू ने अपनाया ये रास्ता : 
द्रौपदी मुर्मू जब अपने बेटे की मौत के सदमे से उबर रही थीं, तभी 2 जनवरी, 2013 में उनके छोटे बेटे शिपुन की 28 साल की उम्र में मौत हो गई। छोटे बेटे की अचानक मौत से द्रौपदी को गहरा सदमा लगा। हालांकि, धीरे-धीरे मेडिटेशन के जरिए उन्होंने इस सदमे से बाहर निकलने की कोशिश की लेकिलन डेढ़ साल बाद ही 1 अक्टूबर, 2014 को उनके पति श्याम चरण मुर्मू चल बसे। इसके बाद तो द्रौपदी का आश्रम जाना पूरी तरह बंद हो गया। 

अपने छूट गए तो दूसरों को बनाया अपना : 
रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी संस्थान की सुप्रिया के मुताबिक, 2014 तक वो सेंटर आती रहीं। लेकिन बाद में उन्होंने आना कम कर दिया। हालांकि, इसके बाद भी उनका ध्यान करने का रूटीन नहीं टूटा। वो बेहद मिलनसार हैं। भले ही उनके अपने छूट गए लेकिन उन्होंने जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए दूसरों को अपना बना लिया।

सुबह साढ़े 3 बजे उठकर करती हैं ध्यान-योग : 
द्रौपदी मुर्मू के गांव पहाड़पुर के रहने वाले लोगों का कहना है कि वो पिछले कई सालों से हर दिन सुबह साढ़े 3 बजे जाग जाती हैं। भले ही वो अपने काम में कितनी भी व्यस्त रहें, लेकिन सुबह-सुबह ध्यान और योग करना नहीं भूलतीं। 

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