‘‘सरना समाज और उसका अस्तित्व’’ नामक इस छोटी पुस्तिका में आदिवासी उराँव समाज की जीवन यात्रा का वृतांत है, जो भारत देश की आजादी के दो दशक बाद, उराँव लोग विषम परिस्थिति में अपने पुर्वजों की धरोहरों को सहेजते हुए देश की मुख्यधारा के साथ चलने का प्रयास कर रहे थे। देश की आजादी के बाद भी आदिवासी उराँव समाज का धार्मिक विश्वास एवं सामाजिक जागृति तथा आधुनिक शिक्षा जैसे विषयों पर निचले पायदान से उठने की कोशिश करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इस छोटी सी पुस्तिका में 1965 से 1989 के बीच के सामाजिक परिस्थिति पर आधारित तथ्य-लेख का चित्रण है। संभव है, कई पाठक इसमें उद्धृत तर्कों से सहमत न हों, पर इसे विगत समय की सामाजिक विवरणी की तरह ही देखने की कृपा करें।"
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