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साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान (कुँड़ुख़) 2016‚ सम्मान समारोह में स्‍व. डॉ निर्मल मिंज का वक्‍तब्‍य

21 फरवरी 2017 को डॉ॰ निर्मल मिंज द्वारा दिया गया वक्तव्य : परम आदरणीय डॉ॰ विश्व्नाथ प्रसाद तिवारी, अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी, डॉ॰ के॰श्रीनिवासराव, सचिव, साहित्य अकादेमी।
मेरी मातृभाषा कुँड़ुख़ की छोटी सेवा के लिए इतना बड़ा भाषा सम्मान देकर, आपने मुझे और कुँड़ुख़ (उराँव) समाज को सम्मानित किया है, इसके लिए मैं आप लोंगों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा को 8वीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त नहीं होते हुए भी, आपने इस भाषा के सेवक को सम्मान दिया है, इसके लिए कुँड़ुख़ समाज साहित्य अकादेमी के प्रति धन्यवाद अर्पित करता है।
आपको मालूम है कि कुँड़ुख़ भाषा, द्रविड़ भाषा परिवार की है, पर उत्तर भारत में इस भाषा की आबादी पायी जाती है। भारत में झारखण्ड, बिहार, असम, बंगाल, ओडि़सा, छत्तीसगढ़, अण्डामन द्वीप समूह और दिल्ली में यह समाज पाया जाता है। भारत में लगभग 40 लाख से अधिक कुँड़ुख़ समाज के लोग है और भारत से बाहर नेपाल के तराई क्षेत्र, बंगलादेश के पष्चिम दिनाजपुर जिले में कुँड़ुख़ भाषा बोली जाती है। इस भाषा का सीधा संबंध मालतो (राजमहल पहाड़ी) और किसान भाषा ओडि़सा से है। कुँड़ुख़ भाषा का संबंध बलूचिस्तान के ब्रहुई भाषा से है। कई कारणों से इस भाषा के व्यवहार और साहित्य निर्माण में कमी रही है। इससे संघर्ष करते हुए भाषा प्रेमियों ने इसे जीवित रखने और विकसित करने का प्रयास किया है। सबसे पहले विदेषी मिषनरियों ने कुँड़ुख़ भाषा को रोमन और देवनागरी लिपि में लिखित रूप दिया। इन लेखकों में मिषनरी फर्दिनेन्द हाॅन का नाम लेना उचित है। उन्होंने अंग्रेजी में ‘कुँड़ुख़ ग्रामर‘ पुस्तक लगभग सन् 1911 में प्रकाशि‍त की, जिसका अनुवाद कुँड़ुख़ में हो चुका है। इसके बाद डॉ॰ शान्ति प्रकाश बखला, डॉ॰ सी॰ एम॰ तिग्गा, श्री अहलाद तिर्की ने कुँड़ुख़ में लिखा है। वर्तमान में इस भाषा को उजागर करने के लिए डॉ॰ नारायण उराँव (मेडिकल डॉक्टर) ने तोलोंग सिकि (लिपि) का आविष्कार किया और वह व्यवहार में लाई जा रही है। परन्तु अधिक पुस्तकें देवनागरी लिपि में ही लिखी गई है। इस सेवा को आगे बढ़ाने में ‘‘कुँड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी आफ इंडिया, नई दिल्ली‘‘, ‘एःन कुँड़ख़न‘ पत्रिका के सम्पादक फादर अगापित तिर्की, पत्थलगाँव, छत्तीसगढ़ से प्रकाषित कर रहे हैं, तथा राँची विश्वत‍विद्यालय, आदिवासी और क्षेत्रीय भाषा विभाग तथा कॉजेजों में साहित्य विषय के रूप में पढ़ाई जाती है, पर वह काफी नहीं है। 
    कुँड़ुख़ भाषा के पढ़े लिखे सदस्यों की जड़ कट गई है। जिस दिन वे स्कूल गए, उसी दिन उसकी मातृभाषा की जड़ कटनी आरंभ हुई। वे हिन्दी और इंगलिश भाषा के माध्यम से पढ़ना-लिखना शुरू करके उच्च शि‍क्षा भी पा रहे है। 
    अतः मेरी प्रार्थना है कि राज्यों के कुँड़ुख़ क्षेत्रों / ग्रामीण स्कूलों में प्राईमरी स्कूल (1 से 5) की पढ़ाई कुँड़ुख़ भाषा के माध्यम से की जाए,  साथ-ही-साथ बच्चे हिन्दी और अंग्रेजी भी सीखते जाएंगे और उचित तरह से वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषा में आगे पढ़ाई करेंगे। तब कुँड़ुख़ भाषा की जड़ पक्की होगी और भविष्य में इस भाषा का साहित्य भी उभरेगा।
    मैंने कुँड़ुख़ भाषा को जिन्दा रखने का प्रयास 1943 ई॰ कक्षा 9 में रहते हुए आरंभ किया और अब भी करता जा रहा हूँ। राज्य का सहयोग, कुँड़ुख़ भाषा साहित्य के विकास के लिए आवश्‍यक है, पर इसके लिए कुँड़ुख़ समाज की ही मुख्य रूप से जवाबदेही है।
    मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में इस भाषा का विकास अधिक तेजी से होगा और इस भाषा की जड़ मजबूत होती जाएगी।  
                  निर्मल मिंज
            दिनांक: 21 फरवरी 2017

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