भाषा और लिपि, मानव विकास के लिए अनमोल रत्न से भी ज्यादा कीमती है। लिपि, भाषा की प्राण होती है। समाज, मानव समूह का सुरक्षा कवक्ष होता है। इन तीन चीजों के बाद विकास की संभावनाओं पर तथा समाज के विकास की सफलता और विफलता पर चर्चा किया जा सकता है।
ईसा से हजारों सालों पूर्व में भी मानव सभ्यता थी और ईसा के बाद 2020 ई॰ के बीत जाने के बाद भी मानव समुदाय और आदिवासी समाज का विकास के बीच एक अत्यन्त ही गम्भीर और ज्वलंत भय सा बना हुआ है। पूरी दुनियाँ विकास की बात से जुड़ी हुई हैं। कई देश विकसित हो गए है और अनेकों देश विकास के लिए प्रयत्नशील है।
भारत एक विकासशील देश है। भारत जनसंख्या के क्षेत्र में दूसरे नम्बर पर है। विकास के क्षेत्र में 138 वीं नम्बर पर है। भारत वर्ष की जनसंख्या सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा है। भारत में अभी 29 राज्य हैं। जिसमें झारखण्ड भी एक अलग राज्य है। झारखण्ड अलग राज्य का गठन सौ सालों के आदिवासी समुदाय के आन्दोलन के बाद हो सका है। लम्बी और खतरनाक आंदोलन में, उच्च वर्ग, विकसित लोगों के द्वारा षडयंत्र के तहत आन्दोलन को बार-बार कमजोर कर दिया जाता था। उसके बावजूद अंतिम चरण में त्याग, बलिदान और व्यापक जान-माल के नुकसान के बाद झारखण्ड एक आदिवासी राज्य के तौर पर गठित हो सका है। अब झारखण्ड में विकास की बात की जा रही है। तब विकास की दिशा तय करना अन्य मुद्दा है। विकास की दिशा सही नहीं हो सकने के कारण झारखण्डी बिखर जा रहे हैं। विकास का न तो कोई आकार होता है न ही प्रकार। ऐसे में विकास को स्थान और लोगों की हालत तथा चाहत पर दिशा देने से विकास संतोषजनक और सफल होता।
यदि विकास को संतोष जनक और सफल बनाना है, तो आदिवासी समुदाय को अपनी भाषा के माध्यम से संस्कृति और संस्कारों को संजो कर, साथ लेकर चलना होगा। तब भाषा को साथ ले कर चलने के लिए इसकी लिपि को भी सादर सम्मान के साथ लिखित तथा दस्तावेजी कामकाजों में उपयोग करना होगा। किन्तु उराँव आदिवासियों में विकास की वास्तविक्ता से दो-चार तथाकथित शिक्षाविद dq¡M+qख लोग अपना ख्याल नहीं बदल पाने के कारण dq¡M+qख भाषा और लिपि के विकास पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।
1980 के दशक में मैंने झारखण्ड आदोलन को सफल बनाने का निर्णय किया था। कारण यह था कि समस्याओं का अम्बार था और इनका निराकरण करने की क्षमता आदिवासी समाज के पास नहीं था। फलतः विचार करना पड़ा कि कैसे विकास के अवसर मिलेंगे। क्या अधिकार चाहिए ? तब झारखण्ड को अलग राज्य का गठन कराना था। तभी लोगों का सर्वांगिन विकास होता। 15 नवम्बर 2000 ई॰ को जैसे ही झारखण्ड को राज्य का दर्जा मिल गया, यहाँ के लोगों को विकास करने का सुनहरा अवसर मिल गया है। किन्तु यहाँ के लोगों में विकास की सोच की कमियों ने राज्य के गठन के 18 सालों के बाद भी यहाँ के आदिवासियों को जगाने में विफल रहे। dq¡M+qख (उराँव) समाज आदिवासियों में अन्य जातियों की अपेक्षा सामाजिक विकास के प्रति जागरूकता जन्म नहीं ले पाई है। कहने का अर्थ यह है कि संथाली समाज ने संथाली भाषा के साथ लिपि, आल चिकि से जोड़ कर संविधान की आठवीं अनुसूचि में अपनी संथाली भाषा को शामिल करा दिया है। जबकि dq¡M+qख (उराँव) समाज के लोगों में अपनी मातृभाषा (उराँव) dq¡M+qख के विकास तथा अपनी भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि के विकास के प्रति खास दिलचस्पी नहीं हो रही है।
dq¡M+qख (उराँव) समाज आदिवासी समाज में विकास के प्रति लगाव का नहीं होना dq¡M+qख (उराँव) समाज के लिए बीच गंभीर समस्या (संकट) को जन्म दे रहा है। क्यों कि विकास एक शतत् प्रक्रिया है जो परम्परा, भाषा तथा लिपि के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती जाती है। dq¡M+qख (उराँव) जाति के लोग अपनी मातृभाषा को बोलने के प्रति लगाव कम कर रहे हैं तथा इसके लिपि को अपना कर इसके विस्तार करने में गम्भीरता से कार्य नहीं कर रहे हैं। dq¡M+qख भाषा-भाषी बहूल क्षेत्रों में भी dq¡M+qख जाति समाज के द्वारा भाषा को तथा अपनी लिपि, तोलोंग सिकि को अपनाने में रूची नहीं लेने से dq¡M+qख समाज को भारी क्षती हो रही है जो धीरे-धीरे और ज्यादा तेजी से बहेगी। यह विचारधारा dq¡M+qख (उराँव) समाज के सामने पहचान तथा अस्तित्व की समस्या खड़ी करने वाली है। dq¡M+qख समाज को अपनी वास्तविक हालत पर विचार करना ही होगा एवं विकास के लिए आगे बढ़ते समय अपनी मातृभाषा dq¡M+qख भाषा को पुरी तरह अपनाना होगा। प्रत्येक परिवर में माता-पिता को अपनी मातृभाषा dq¡M+qख को बोलना होगा तथा बाल बच्चों को भी मातृभाषा को सिखलाना होगा। इसके साथ सबसे महत्वपूर्ण विषय यह है कि dq¡M+qख भाषा के लिए तोलोंग सिकि लिपि को अपनाना होगा। किन्तु परन्तु अथवा या जैसे कोई भी बात dq¡M+qख समाज के लिए वाधायें ही खड़ी करेंगी।
कहते है कि दुनियाँ कब से और क्यों चल रही है यह पता करने में हम मनुष्य जितना भी कोशिश कर ले किन्तु सही-सही जानकारी तक पहुँच पाना हम मनुष्यों के बस की बात नही है ? तब जो भी अंश से हम दूनिया में आये है। किन्तु यहाँ जीवन जीने की कई अति आवश्यक चीजें हैं जिनको सभी भाषा ज्ञानी समाज के लोगों को पालन या अनुसरन करना पड़ता है। इस स्थिति में dq¡M+qख (उराँव) समाज को अपनी आंतरिक सच्ची हालत पर पुर्णतः और अनिवार्यतः समीक्षा विचार विमर्श करना आनिवार्य है। dq¡M+qख भाषा dq¡M+qख जाति समाज के सामने अपना भविष्य बनाने पर गौर करना ही होगा। आज जो लोग dq¡M+qख समाज से है और जो अपना बाल बच्चों को दुनियां में ला रहे है। उनके लिए दूनियां में जीवन जीना कठीन नही हो यह अवश्य ध्यान रखे। कहना चाहिए कि आने वाली वंशजों के हितों के प्रति गंम्भीर होना चाहिए। क्योंकि सभी माँ बाप को अपने बाल बच्चों के अच्छे भविष्य की चिन्ता करना ही होगा। अगर ऐसा नहीं करेंगे तब वे इंसानियत का अपमान करेंगे। ऐसे लोग dq¡M+qख समाज के लिए बहुत बड़ी संकट को लाने वालों में से होंगे।
सच्चाई को जानना समझना फिर उस पर कार्य करना ही मनुष्य जीवन को खुशहाल और सफल बनाती है। dq¡M+qख समाज आज पिछड़ा हुआ समाज के तौर पर चिन्हित किया गया है। आप क्या सोच सकते है कि ऐसी हालत क्यों है ? मेरा अपना अनुभव है कि इस प्रश्न पर कोई भी चिन्तन करना नहीं चाहता है। dq¡M+qख समाज में जन्म लेकर तथा अवसर का सदुपयोग न कर पाकर मर खप जाते हैं। बस यही सच्चाई है। मेरा अनुभव 40 सालों से सामाजिक कार्यो को करने के बाद बना है। देखा हुँ कि गरीबी में जन्म ले कर तरक्की करने के बाद जो कुछ मिलता है उसको लेने के बाद भी तिल-तिल भरना ही dq¡M+qख समाज की जीवन शैली बन गई है ? जैसे कोई इनको बाँध कर जीवन जीने को मजबूर कर दिया है।
मैं चाहता हुँ कि इस हालत से उबरिये। हालत बहुत खराब बना दी गई है। इसको बदलिये। मैं 40 सालों में सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक राजनीतिक और बौद्धिक जीवन स्तर को उँचा उठाने के लिए झारखण्ड को अलग राज्य बनाने के लिए अपनी पूरी क्षमता को ताकत के साथ रखा है। मरनासन आदोलन को फिर से जिन्दा किया और राज्य का अधिकार दिलाया है। अब आप सब मिलजुल कर इस राज्य की स्वायत्ता के अधिकार का लाभ लेकर अपना विकास करें। अपनी भाषा लिपि, संस्कृति, साहित्य, परंम्परा, धर्म की रीति-रिवाज, अवधारणा आदि का विकास करें। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, शिक्षा ज्ञान को बढ़ाएँ। दुनियाँ लूटने वालों से भरी पड़ी है। आप कमजोर पड़े कि नहीं और दुनिया आपका जीवन जीना दुस्वार कर देगी।
याद रखिए भाषा के बिना विकास सम्भव ही नहीं है और भाषा का विकास, लिपि के बिना सम्भव नहीं है। जब भाषा और लिपि का विकास होगा, तब समाज का विकास सम्भव होगा। समाज के विकास के बाद संस्कार, संस्कृति,, पंरम्परा, रीति-रिवाज, धर्म और आर्थिक विकास, राजनीतिक विकास और दुनियादारी का बैद्धिक विकास सम्भव हो सकता है। आप इस ओर गंम्भीर नहीं होंगे, तब झारखण्ड आंदोलनकारियों का त्याग, तपस्या, समाज सेवा सब बेकार हो जायेगा। सुनिए जीवन एक बार मिले या सौ बार उसका सदुपयोग ही जीवन को संतोषजनक और सफल बना सकती है। निर्णय करना होगा कि आप अपने जीवन को कैसे जीना चाहते हैं, यह आप पर निर्भर है।
आलेख - विनोद कुमार भगत,
पूर्व अध्यक्ष, आल झारखण्ड स्टूडेन्टस यूनियन