भारत में आदिवासियों के कई मामलों में अलग कानून चलता है, जिसे कस्टमरी लॉ या प्रथागत कानून कहते हैं। इस प्रसंग में हम पिछले अंक में चर्चा कर चुके हैं। आप उस वीडियो को यहां ऊपर, दाहिनी तरफ आ रहे लिंक पर देख और सुन सकते हैं। उस वीडियो में हमने कस्टमरी लॉ के अर्थ, उसके अलग-अलग तत्वों पर चर्चा की थी। आदिवासियों की रूढि़यों पर आधारित उनकी सामाजिक संरचना पर भी हम बात कर चुके हैं। आज हम कस्टमरी लॉ के कुछ अन्य पहलुओं पर बातें करेंगे। जैसे, कोई प्रथा या रूढि़ कानून बनने लायक है, या नहीं, यह तय कैसे होगा? तय करने की प्रक्रिया क्या है? भारतीय न्यायालयों में कस्टमरी लॉ को कितना महत्व मिलता है? इस दिशा में चुनौतियां क्या-क्या हैं? साथ ही हम जानेंगे, सुलभ और त्वरित न्याय की दिशा में आदिवासियों की परंपरागत संस्थाएं, जैसे, मानकी-मुन्डा, पड़हा, मांझी-परगना, इत्यादि की भूमिका क्या है? तो चलिये शुरूआत करते हैं..
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