वर्ष - 1997 में 3‚ 4 एवं 5 जनवरी को राजी पड़हा देवान श्री भिखराम भगत के नेतृत्व में राजी पड़हा‚ भारत का वार्षिक सम्मेलन‚ ब्रहमनडिहा‚ लोहरदगा (बिहार/झारखण्ड) में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में उपस्थित पड़हा प्रतिनिधि एवं जनसभा द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया‚ परन्तु माननीय श्री भिखराम भगत द्वारा श्री इन्द्रनाथ भगत (माननीय सांसद‚ लोहरदगा) के साथ विमर्श के पश्चात् कहा गया कि - इस नई लिपि के साथ इसका व्याकरण भी जरूरी है। अतएव व्याकरण के लिए भाषाविदों तथा शिक्षाविदों के साथ मिलकर लिपि एवं व्याकरण पर चर्चा कर‚ पड़हा के सामने लायें। इसके बाद ही इसका सामाजिक मान्यता हो पाएगा।
इसके बाद वर्ष 1998 को राजी पड़हा‚ भारत का पादा पड़हा‚ बिहार (बिहार प्रदेश इकाई) का वार्षिक सम्मेलन‚ घाघरा‚ गुमला में सम्पन्न हुआ। इस बैठक में भी उपस्थित पड़हा प्रतिनिधि एवं जनसभा द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि को स्वीकार किया गया‚ परन्तु माननीय श्री भिखराम भगत द्वारा पुनः निर्देश दिया गया कि - इस लिपि (तोलोंग सिकि) के साथ इसका व्याकरण भी जरूरी है। अतएव व्याकरण के साथ में ही पड़हा के सामने लायें।
इसके बाद 10 जनवरी 2011 को राजी पड़हा‚ भारत की स्थानीय इकाई बालीजोड़ी‚ राउरकेला‚ ओडिशा द्वारा आयोजित पड़हा गुरू श्री भिखराम भगत का 74 वीं जयन्ती के अवसर पर उपस्थित पड़हा प्रतिनिधि एवं जनसभा द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि को स्वीकार किया गया एवं साहित्य सृजन किये जाने का निर्णय लिया गया।
इसके बाद 27 मई 2012 को ‘‘राजी पड़हा स्वर्ण जयन्ती समारोह‚ मोरहाबादी‚ राँची’’ में राजी बेल श्री बागी लकड़ा की उपस्थिति में पड़हा प्रतिनिधियों एवं जनसभा द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि को मान्यता दी गई तथा इस लिपि के सर्जक डॉ॰ नारायण उराँव ‘सैन्दाी’ को बधाई दिया गया।
इसके बाद 22‚ 23 एवं 24 मई 15 को राजी पड़हा‚ भारत का पादा पड़हा‚ झारखण्ड (झारखण्ड प्रदेश इकाई) का वार्षिक सम्मेलन‚ लोरोबगीचा‚ नवडिहा‚ घाघरा‚ गुमला में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में भी उपस्थित पड़हा प्रतिनिधि एवं जनसभा द्वारा कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि को स्वीकार किया गया।
इस संबंध में ज्ञातव्यप है कि इस लिपि (तोलोंग सिकि) में दो व्याकरण की पुस्तकें 1॰ कुँड़ुख़ कत्थअईन अरा पिंजसोर एवं 2॰ ईन्नलता कुँड़ुख़ कत्थअईन‚ छप चुकी हैं। साथ ही झारखण्ड में विगत 12 वर्षों से मैट्रिक में कुँड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा‚ सरकार द्वारा आयोजित परीक्षा में तोलोंग सिकि में लिखी जा रही हैं तथा रिजल्ट प्रकाशित हो रहा है। भाषा विकाश के क्रम में पश्चिम बंगाल सरकार में वर्ष 2018 से कुँड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि के साथ राजकीय भाषा का दर्जा मिल चुका है और सरकारी स्तर पर पठन-पाठन हेतु प्रशिक्षित किया जा रहा है।
उपरोक्त सभी तथ्यों के आधार पर तथा पड़हा गुरू बाबा भिखराम भगत के इच्छा एवं निर्देश के अनुसार लिपि एवं व्याकरण का प्रकाशन के साथ विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों के विचार सह निर्णय के बाद राजी पड़हा‚ भारत के राजी बेल‚ एडवोकेट श्री बागी लकड़ा द्वारा पादा पड़हा‚ ओडिशा के वार्षिक सम्मेलन 2018 में ‘तोलोंग सिकि’ को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में पूरे कुँड़ुख़ समाज में लागू किये जाने की घोषणा की गई है।
मैं पड़हा देवान‚ लोहरदगा‚ झारखण्ड श्री विनोद भगत ‘हिरही’‚ पड़हा गुरू बाबा भिखराम भगत के सामाजिक दूरदर्शिता दृष्ि )ा पर कहना चाहता हूँ कि - बाबा भिखराम भगत ने आज से दो दशक पूर्व ही किसी लिपि के साथ उसके व्याकरण की अनिवार्यता का संकेत देकर कुँड़ुख़ भाषा एवं समाज को दिशाहीन होने से बचा लिये। अब बारी वर्तमान कुँड़ुख़ समाज की है‚ वे आगे बढ़ें और अपना भविष्य एवं रास्ता तय करें।
आलेख व संपादन -
विनोद भगत
ग्राम: हिरही‚ थाना: लोहरदगा सदर‚
जिला: लोहरदगा (झारखण्ड)