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गुमला,  घाघरा के पुटो तिलसीरी में तैयार है कुड़ुख-अंग्रेजी स्कूल

गुमला जिला (झारखंड) के घाघरा प्रखंड के पुटो स्थिति तिलसिरी ग्राम में तैयार हो गया है कुड़ुख-अंग्रेजी स्कूल। स्कूल का निर्माण लिटीवीर फाउण्डेशन फॉर एज्युकेशन, एग्रीकल्चर, तिलसीरी, घाघरा द्वारा किया गया है। तिलसीरी गाँव में स्थिति इस स्कूल के लिए स्व. जहाँजिया ऊराँव, तिलसीरी के परिवार ने करीबन 8 एकड़ जमीन दान में दिया है। इसके अलावा भी स्कूल के पास के गैर मजुरवा जमीन स्कूल के लिए उपलब्ध है। जिसके लिए ग्राम सभा की अनुमति मिल गई है। स्कूल का परिदर्शन शिक्षा विभाग के द्वारा कर लिया गया है। लेकिन कोविड के कारण स्कूल चालू नहीं किया जा सका है।

पुटो क्षेत्र में बनने वाला इस कुड़ुख-अंग्रेजी स्कूल के मूल निर्माण अवधारणा में कुड़ुख-अंग्रेजी में ग्रेज्युएशन तक शिक्षा प्रदान करने की है। इसके साथ ही हॉस्टल और आध्यापकों के लिए क्वार्टर बनाने का प्लान भी शामिल है। फिलहाल  कार्यालय और कक्षाओं के संचालन के लिए 7 कमरे की व्यवस्था हो गई है।

Tilsiri

फाउण्डेशन की स्थापना और स्कूल निर्माण में मुख्य भूमिका निभाने वाले  राजेन्द्र भगत, मूल रूप से तिलसीरी अम्बाटोली के रहने वाले भूतपूर्व बैंकर हैं। बैंक से स्वेच्छा सेवानिवृत्ति लेने के पश्चात उन्होंने कुड़ुख भाषा के संरक्षण और विकास के लिए एक स्कूल खोलने का निश्चय किया। स्कूल के निर्माण और अन्य कार्यों में सहायता करने के लिए तिलसीरी गाँव के शिक्षा प्रेमी स्व. जहाँजिया ऊराँव के परिवार ने आगे बढ़ कर जमीन दान देने का फैसला किया। स्कूल निर्माण में ग्राम और क्षेत्र के निवासियों की सामूहिक भागीदारी रही है।  अधिकांश वित्तीय सहभागिता श्री राजेन्द्र भगत ने खुद की है।  सिसई, बिशुनपुर, भण्डरा आदि क्षेत्र से जुड़ा हुआ पुटो, गुमला जिले के घाघरा प्रखंड का एक दूर-दराज क्षेत्र है। यहाँ 99% ऊराँव समुदाय के लोग निवास करते हैं और 90% लोग कुड़ुख भाषा का इस्तेमाल करते हैं।

हाल ही में प्रकाशित कुड़ुख शब्दकोश के रचयिता स्व. विजय कुमार ऊराँव जी का पैत्रिक गाँव तिलसीरी ही है। लेखक और कवि महादेव टोप्पो जी के साथ तिलसीरी गाँव के दौरे के दौरान मुझे स्व. विजय कुमार ऊराँव जी के मकान में जाने और उनके भतीजे श्री रवि ऊराँव और परिवार से मिलने का मौका भी मिला। तिलसीरी एक प्रगतिशील गाँव है और यहाँ स्पोर्टस् और शिक्षा का बहुत महत्व है। यहाँ के युवाओं ने अपने सामूहिक श्रमदान और प्रयास से एक फूटबॉल और हॉकी का  सुंदर और उपयोगी मैदान  बनाया है। गाँव में आम सहित अनेक अन्य फसलों के लिए बगीचे लगाए गए हैं और खेती-बारी के लिए परंपरागत बैल, भैंस सहित टैक्टर का भी उपयोग बहुतायत रूप से किए जाते हैं।

यहाँ  के घरों में बिजली के कनेक्शन उपलब्ध है, लेकिन बिजली की आपूर्ति  अननियमित है। आवागमन के लिए रोड बने हैं, लेकिन उसका संरक्षण और रखरखाव ठीक से किया जाना चाहिए। कोयल नदी पर पुल बने हुए हैं। पास के सामुदायिक जंगल की संरक्षण और देखभाल करने की जरूरत है।  दूर-दराज के क्षेत्र होने के कारण यहाँ सौर ऊर्जा अधिक भरोसेमंद साबित हो सकता है। यहाँ वन रोपन और दुधारू पशुओं के पालन की आपार संभावना है।  क्षेत्र का दौरा करने और तमाम शिक्षित जनों से मिल कर यह  एहसास हुआ कि निकट भविष्य में कुड़ुख अंग्रेजी स्कूल क्षेत्र और कुड़ुख भाषा के शिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

आलेख –
नेह अ. इंदवार

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