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22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा 2020 का घोषणा पत्र

जैसा कि हम सभी जानते हैं - भारतीय संविधान के निर्माण से पूर्व, भारत में बहुत से राष्ट्र, प्रदेश एवं कबिलार्इ समूह स्वतंत्र रूप से गुजर-बसर कर रहे थे। देश की आजादी के पश्‍चात् नये जीवन की तरह भारतीय संविधान का निर्माण हुआ और वे सभी पुराने दल एक झण्डे के नीचे आ गये। इस नव निर्माण के क्रम में लोगों के बीच अपने समाज एवं सम्प्रदाय के अनुसार हिन्दु पर्सनल लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, र्इसार्इ विवाह कानून आदि का गठन हुआ और वे उसी के अनुसार चल रहे हैं। भारतीय कबिलार्इ समूह क्षेत्र के लोगों के लिए भी 5 वीं एवं 6 वीं अनुसूचित क्षेत्र के नाम से विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में संविधान में स्थान दिया गया, जो कर्इ अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलित है। इसी 5 वीं अनुसूचित क्षेत्र के अन्तर्गत उराँव (कुँड़ुख़) कबिलार्इ समूह, अनुसूचित जनजाति के नाम से देश के कर्इ हिस्से में निवासरत है। हमारे उराँव (कुँड़ुख़) समूह की अपनी भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्परा एवं विधान है। हमारी मातृभाषा की लिपि भी विकसित हो चुकी है। भारतीय कानून व्यवस्था में हमारे रीति-रिवाज, परम्परा, संस्कृति आदि को कस्टमरी लॉ या दस्तूर कानूून के नाम से जाना जाता है। हमारे समूह की परंपरागत सामाजिक एवं वैधानिक संगठन का नाम पड़हा है, जिसे 3, 5, 7, 9, 12, 21, 22 आदि गाँव के लोग परम्परानुसार गठन किये हुए थे। जब कभी किसी मामले का फैसला पड़हा में नहीं हो पाता था, तब कर्इ पड़हा मिलकर आयोजित बिसु सेन्दरा में मामले का निपटारा किया जाता था, जहाँ के फैसले को अंतिम माना जाता था।

22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा 2020 का घोषणा पत्र
कैम्प कार्यालय :- धुमकुड़िया डिप्पा, ग्राम : सैन्दा, थाना : सिसई, जिला : गुमला, पिन-835324


उपरोक्त परम्पारिक व्यवस्था को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने के उदेश्य से भारतीय संसद द्वारा पारित पेसा कानून 1996, (PESA 1996) के धारा 4 (घ) के आलोक में दिनांक 04 एवं 05 मर्इ 2019 को ग्राम सभा जिसके अन्तर्गत 22 ग्राम सभा (22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा 2019), स्थान : टाना बगिचा, लंगटा पबेया, थाना : सिसर्इ, जिला : गुमला में दो दिवसीय सम्मेलन कर, विधि विशेषज्ञों से समीक्षा के उपरांत निम्नलिखित निर्णय लिया गया और 22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा महाधिवेशन 2019, कार्यकारिणी समिति के बेल (राजा) : श्री दशरथ टाना भगत, देवान (मंत्री) : श्री गजेन्द्र उराँव तथा भँड़ारी (भंडारी) : श्री मटकु उराँव के संयुक्त हस्ताक्षर से जनसूचना एवं अनुपालन हेतु जारी किया गया। यह घोषणा पत्र वर्श 2011 से 2019 तक लगातार किये गये बिसु सेन्दरा की कार्यवाही के फलस्वरूप तय हुआ है, जो इस प्रकार है :-
1. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज अपने घर-परिवार में जन्म से लेकर मृत्यु तक कुँड़ुख़ नेगचार एवं पर्व त्योहार को शुद्धता एवं श्रद्धा के साथ मनाएँ। साथ ही कुँड़ुख़ समाज के सभी, अपने पड़हा क्षेत्र के अन्तर्गत ग्राम सभा, पड़हा एवं धुमकुड़िया को परम्परागत तरीके से पुनर्गठित एवं संगठित करें। साथ ही अखड़ा, चा:लामड़ा तथा देबीमड़ा को सुरक्षित एवं संरक्षित करें।
2. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज में सामाजिक शादी के अन्तर्गत सिर्फ स्वजातीय शादी की मान्यता है किन्तु स्वजाति में सगोत्रीय शादी वर्जित है। स्वजाति सगोत्रीय एवं विजातीय शादी को परम्परागत कुँड़ुख़ समाज, वर्जित करता है। एक गोत्र के लोगों में भार्इ-बहन का रिश्ता माना गया है। सामाजिक परम्परा के विरूद्ध की गयी शादी निंदनीय एवं दण्डनीय है। 
3. कुँड़ुख़ समाज पुरूष वंश परम्परा पर आधारित है। अतएव वर्जना के बाद भी यदि कोर्इ पुरूष विजातीय शादी या ढुकू को बढ़ावा देता है तो उसे समाज मान्यता नहीं देता है। अतएव परम्परानुसार वह सामाजिक दण्ड का भागी होगा और समाज में मिलने-मिलाने के लिए वर-वधु का सामाजिक शुद्धिकरण तथा सामाजिक शादी नेगचार आवश्यक होगा। सामाजिक दण्ड के रूप में 5100/(पांच हजार एक सौ ) रूपया एवं पड़हा भोज करना होगा।
4. कुँड़ुख़ समाज में वर्जना के बाद भी यदि कोर्इ महिला विजातीय शादी को बढ़ावा देती है तो वह गाँव एवं समाज को छोड़कर अपने चुने हुए पति के साथ चली जाय। इस कृत्य के लिये परम्परानुसार उसके माता-पिता या अभिभावक सामाजिक दण्ड के भागी होंगे तथा उस महिला को एवं उसके संतान को अपने मूल जाति समाज का सदस्य नहीं माना जाता है। उदाहरण - एक उराँव महिला तथा एक गैर उराँव पुरूश से उत्पन्न संतान को उराँव जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा। सामाजिक दण्ड के रूप में लड़की के पिता को 2500/(दो हजार पाँच सौ) रूपया एवं पड़हा भोज करना होगा। रूढ़ी व्यवस्था के अंतर्गत जाति-बाहर लोग परम्परागत समाज का नियम तथा रूढ़ीप्रथा सामाजिक सम्पति नियम कायदा से मुक्त एवं बाहर हो जाते हैं। 
एक आदिवासी लड़की अपने परिवार, समाज और कबिला के वर्जना के बाद भी यदि दूसरे समाज के लड़के के साथ शादी रचाती है तो वह परिवार, समाज और कबिला छोड़कर चले जाय और यदि वह दूसरे समाज में चली जाती है तो वह सामाजिक रिश्ता और अधिकार छोड़कर जाती है। वैसे में एक आदिवासी बनकर जमीन खरीदना आदिवासी रूढ़ी-प्रथा समाज के खिलाफ है। संसद द्वारा पारित च्म्ै। कानून आदिवासी सामाजिक रूढ़ी-प्रथा पर न्याय करे। आदिवासी सामाजिक रूढ़ी-प्रथा के अनुसार जमीन खरीद के लिए आदिवासी पिता और आदिवासी पति होना आवश्यक है।
5. विश्‍व में 50 से अधिक देशों में प्राचीन आदिवासी धर्म को कबिलार्इ धर्म के नाम से मान्यता दी गर्इ है किन्तु अपने ही देश में हमें, धार्मिक पहचान नहीं मिली है, यह हम आदिवासियों के लिये विडम्बना की बात है। परम्परागत कुँड़ुख़ समाज के लोग अपने परम्पारिक विश्‍वास-धर्म को आदि धरम/सरना धरम के नाम से जानते हैं। राज्य एवं केन्द्र सरकार इसे संवैधानिक मान्यता दे।
6. परम्परागत आदिवासी समाज में जमीन को परिवार के भरन-पोषण का आधार माना गया है, जिसके चलते यह वंशानुगत सम्पति है और सामाजिक व्यवस्था में एक वशं से अन्य वशं में हस्तान्तरण नहीं हो सकता है। इस परम्परा के अनुसार समाज में हरेक लड़की को शादी से पहले अपने पिता के घर तथा शादी के बाद अपने पति के वंशानुगत सम्पति में स्वाभाविक उपभोग की भागीदार माना गया है, किन्तु पुस्तैनी जमीन को बेचना महिला के लिए वर्जित है। एक वयस्क लड़की या महिला को अपना जीवन साथी चुनने तथा साथ रहने का हक है, जिसमें समाज के अन्दर जीवन साथी का चुनाव करने पर, परिवार की सहमति या असहमति की वाध्यता शिथिल किया गया है। लड़की या महिला की यह सामाजिक आजादी के चलते, वंशानुगत पारिवारिक अचल संपत्ति को हस्तान्तरण से रोकने तथा बचाने के लिए पुस्तैनी जमीन को महिला द्वारा बेचना वर्जित है। सी.एन.टी. में भी दर्ज है कि भ्ाूर्इहरी एवं कोड़कर खेत, सिर्फ खेवटदारों के बीच उपयोग किया जा सकता है।  
7. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज में शादी के समय बेंज्जा किचरी में हल्दी लगा हुआ लाल पाड़ साड़ी तथा लड़का के लिए हल्दी लगा हुआ धोती अनिवार्य होगा। 
8. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज में शादी के अवसर पर सिर्फ नेग हड़िया का व्यवहार होगा।
9. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज के शादी नेग में कुल लेन-देन 1101 रू0 के अन्दर होगा। 
10. परम्परागत पड़हा समाज के शादी-व्याह के अवसर पर परपरागत बाजा का रिवाज है। डिस्को बाजा या बैंड बाजा को पड़हा समाज वर्जित करता है। उलंघन करने पर 5000/(पांच हजार) रूपया जुर्माना देना होगा। 
11. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज, एक शादी की अनुमति देता है किन्तु विशेष परिस्थिति में, जैसे - (1) पहली पत्नी की मृत्यु होने पर। (2) पहली पत्नी के पागल होने पर। (3) पहली पत्नी के अपनी मर्जी सेे घर छोड़कर चले जाने पर। (4) पहली पत्नी के बदचलन साबित होने पर। (5) पहली पत्नी से वंश न चल पाने पर (अर्थात बांझपन की स्थिति में), पति-पत्नी के रजामंदी से परिवार की खुशी के लिए समाज में, सगर्इ नेग द्वारा समाज में दूसरी पत्नी लाने का प्रथा है। सगर्इ नेग में सिर्फ सभा सिंदरी नेग होता है, पगसी में बैठना तथा पट्टा में चढ़ना नेग नहीं होता है। एक लड़के द्वारा पहली पत्नी के रहते जबरन दूसरी औरत लाये तो समाज भितर करने में सिर्फ सभा सिंदरी किया जाता है।
     (नोट :- कर्इ बार पहली पत्नी से बच्चा नहीं होने की स्थिति में पहली पत्नी अपने घर-परिवार की खुशी के लिए अपने पति से कहती है - ए:न निंग्गा गे अउर ओण्टा कनियाँ बेद्दा चिआ लगेन, मुन्दा एंग्गन अमके अम्मबा, नाम ओरमत संग्गेम रओत। रूढ़ीगत आदिवासी समाज में खेत, खेती और आदमी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आदिवासी समाज का एक व्यक्ति अपने तथा परिवार के लिए जंगल साफ कर नया खेत बनाता है या फिर अपने खेत में नया पेड़ लगाता है यह सोचकर कि उनके बाल-बच्चों के लिए समय पर काम आवे। बांझपन का मापदण्ड या परिभाषा, चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मान्य होगा। परम्परागत षादी तथा परम्परागत सगर्इ दोनों मान्य है। परम्परागत शादी में लड़का-लड़की को पगसी (जुआठ) में बैठाया जाता है और पट्टा में चढ़ाकर सिंदरी टिप्पा करवाया जाता है, सगर्इ नेग में पट्टा में चढ़ाकर ओर पगसी में बैठाने वाला नेग नहीं होता है, सिर्फ सभा सिंदरी होता है। इसलिए सामाजिक मान्यतानुसार की गर्इ शादी के बाद उत्पन्न बच्चे के लिए समाज, उसके पिता की सम्पति का हिस्सेदार बनाती हैं। सामाजिक शादी के बाद खाशकर पासर्पोट के लिए रजिस्टर्ड मैरेज सर्टिफिकेट की आवश्यकता पड़ती है। वैसी स्थिति में स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करवाया जा सकेगा।)
12. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज, एक शादी की अनुमति देता है किन्तु विशेष परिस्थिति में एक महिला, जैसे - (1) पहले पति के मृत्यु होने पर। (2) पहले पति के पागल होने पर। (3) पहले पति के नामर्द रहने पर। (4) पति द्वारा पहली पत्नी के रजामंदी में बिना दूसरी औरत लाने पर - शादीशुदा महिला, अपने व्यक्तिगत हित में पहले पति को छोड़कर चली जाया करती है या कहीं-कहीं अपने परिवार की खुशी बनाये रखने में मदद करने में बढ़चढ़ कर हिस्सेदार बनती है। एक महिला को पूरी आजादी है कि वह पति के घर रहे या पति को छोड़कर जाय।  
नोट :- सिक्किम राज्य के कर्इ आदिवासी समूह में महिला को तलाक लेने का हक नहीं है। यह उद्धरण एक अंगरेजी पत्रिका में छपे खबर के अनुसार है।
13. पति-पत्नी के बीच संबंध विच्छेद (तलाक) के लिए परम्परागत तरीके से बिहउड़ी लेन-देन किया जाना आवश्यक है। पुत्र/पुत्री के परवरिश (परबस्ती) की जिम्मेदारी प्राकृतिक रूप से पिता पर होगी। यदि बच्चा 5 साल से कम हो तो वह माँ के साथ रह सकेगा या बिहउड़ी के समय बच्चे के हित में समाज को जैसा अच्छा लगे के अनुसार होगा। यदि संबंध विच्छेद लड़का द्वारा किया गया हो तो माँ-बच्चे के परवरिश के लिए बच्चे के पिता को खोरपोस (जीवन यापन का साधन) व्यवस्था करना होगा। यदि संबंध विच्छेद लड़की द्वारा किया गया हो तो खोरपोस व्यवस्था के लिए लड़का बाध्य नहीं होगा। पति-पत्नी के बीच संबंध नहीं होने का समय सीमा कम से कम 2 वर्श होने के बाद ही बिहउड़ी के लिए अरजी मान्य होगा। खोरपोस दावा के लिए कंडिका 12 (4), महिला को बाधित नहीं करेगी। 
नोट :- आजकल लोग पति-पत्नी के बीच संबंध विच्छेद (तलाक) के लिए आदिवासी परिवार के सदस्य भी कोर्ट से मदद लेने जाते हैं, पर कोर्ट या फॉमिली कोर्ट, आदिवासी मामलों में तलाक मुद्दे पर आदिवासियों का सामाजिक मामला कहकर दखल नहीं देता है। इसलिए आदिवासियों को सामाजिक नियमों को पालन करना होगा। परम्परागत आदिवासी समाज में हिन्दु विवाह कानून लागू नहीं हैं। भारतीय इसार्इ विवाह कानून भारतीय इसार्इयों में तथा मुस्लिम पर्सलन लॉ, मुस्लिमो में लागू है। खाशकर इसार्इ लोग कैनन लॉ अथवा चर्च लॉ एवं भारतीय र्इसार्इ विवाह कानून  से संचालित होते हैं।
14. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज की रूढ़ीवादी परम्परा, विश्‍वास-धर्म ही हमारी धरोहर है। इसलिए परम्परागत कुँड़ुख़ समाज रूढ़ीवादी परम्परा को बरकरार रखते हुए परम्परा के अनुसार की गर्इ शादी से उत्पन्न संतान को ही वंशानुगत सम्पति (पुस्तैनी जमीन) में हिस्सेदारी देता है। इससे इतर किसी अन्य विधि से की गर्इ शादी से उत्पन्न संतान को पुस्तैनी जमीन में हिस्सेदारी के लिए परम्परागत समाज जवाबदेह नहीं है।
15. अपनी परम्परागत भाषा एवं संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दी एवं अंगरेजी के साथ कुँड़ुख़ भाषा की पढ़ार्इ की भी करनी है। इसके लिए हम राज्य सरकार से मदद लेेंगे।
16. कुँड़ुख़ भाषा (तोलोंग सिकि के साथ) को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करवाया जाय। इसके लिए एक कमिटी गठित कर राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को ज्ञापन दिया जाय।
17. पड़हा कार्यकारिणी की सहमति से अपने-अपने क्षेत्र के विधायक एवं सांसद अपना प्रतिनिधित्व पड़हा सम्मेलन में भेजना सुनिश्‍चित किया करेंगे।
18. जनजातीय जनहित में राज्यक्षेत्र में चल रहे विकास कार्यों की जानकारी एवं जन-जागृति के लिये पड़हा सम्मेलन या बिसु सम्मेलन में कार्यकारिणी के आमंत्रण पर उपायुक्त/जिलाधिकारी अपना प्रतिनिधि/प्रतिनिधि मंडल भेजना सुनिश्‍चित करेंगे।
19. अपनी रूढ़ीवादी परम्परा के साथ नर्इ तकनीक को अपनाते हुए कुँड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोंग सिकि को अपनाना है तथा इसे पढ़ार्इ-लिखार्इ में भी अनिवार्य रूप से शामिल करना है। झारखण्ड सरकार में हिन्दी, अंगरेजी तथा कुँड़ुख़ (त्रिभाषा पढ़ार्इ) नियम लागू है। 
20. परम्परागत सामाजिक व्यवस्था पड़हा, धुमकुड़िया एवं अखड़ा को पुनर्जीवित कर इसे वर्तमान प्रशासनिक एवं राजनैतिक व्यवस्था के साथ सामंजस्य स्थापित करना है। गाँव-समाज में झगड़ा-झंझट का निपटारा स्थानीय तरीके से एवं कानून संम्मत होगा। दोशी व्यक्ति को पंच द्वारा निर्धारित विधि सम्मत जुर्माना भी देना होगा।
21. पड़हा के अन्तर्गत 10 से 15 गाँव के लोग आपसी सामाजिक सहमति से एक मध्य विद्यालय या उच्च विद्यालय चलाएँ। इसके लिए प्रत्येक परिवार से पड़हा के नाम पर 1 (एक) सूप धान तथा धुमकुड़िया के नाम पर साप्ताहिक मुठा चावल जमा करेंगे। आमद-खर्चा का हिसाब रखने में अद्दी कुँड़ुख़ चाला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा नामक संस्था (निबंधन संख्या 105/2013-14, झारखण्ड) या समय-काल के अनुसार निर्धारित संस्था से मदद ली जाएगी।
22. झारखण्ड में स्थानीय लोगों के हित में स्थानीय नियोजन नीति बने और शीघ्र लागू हो तथा जिलावार नौकरी एवं ठेकेदारी में स्थानीय लोगों को प्राथ्मिकता दी जाय।    
23. परम्परागत कुँड़ुख़ समाज के सभी भार्इ-बहन अपने मुख्य नाम के बाद जातीय नाम उराँव जोड़ें। गोत्र एवं गोत्र चिन्ह की पवित्रता बनाये रखें तथा समाज-परिवार के धार्मिक अनुश्ठान में श्रद्धा पूर्वक में भाग लें।                            
24. कुँड़ुख़ समाज अपने पारम्परिक व्यवस्था के अन्तर्गत कोर्इ पति-पत्नी अपने वंश-परिवार में आपसी रजामंदी के बाद अपने वंश-परिवार के बच्चे को गोद लेकर माय-बाप (माता-पिता) बन सकता है और स्वंय द्वारा अर्जित धन को उस बच्चे को दे सकता है। वर्तमान स्थिति में इस पर कोर्ट में राजीनामा करना होगा। वैसे समाज में बेटी दमाद को घरदमाद रखने का रिवाज है, या पोस बाप या पोस बेटा तय कर अपनी कमार्इ की संपति में दिये जाने की भी मान्यता है। पर, वंश में चले आ रहे पुस्तैनी जमीन, जैसे - कोड़कर, खुटकटी तथा भ्ाूर्इंहरी को नहीं दिया जाता है। ‘‘हिन्दु दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 - सिर्फ हिन्दु परिवार के सदस्यों में लागू है। र्इसार्इ एवं मुसलमान परिवार में यह नियम लागू नहीं होता है।
25. कुँड़ुख़ समाज परम्परागत तीरंदाजी को बढ़ावा देने के लिए 22 पड़हा बिसु सेन्दरा क्षेत्र में तीरंदाजी प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित करेगा। इसके लिए सरकार से मदद ली जाएगी।
26. कैडेस्टल सर्वे (1908 र्इ0 का खतियान) का 106 वाँ वर्ष पूरा हो गया। तब से अब तक, एक लम्बा समय अंतराल हो चुका है। समाज एवं समय की स्थिति के अनुसार पड़हा-पंच एवं ग्रामसभा एक साथ मिलकर कैडेस्टल सर्वे के आधार पर खतियानी वारिशों का कुर्सीनामा, खेवट से जोड़कर तैयार करेगी और आवश्यकता पड़ने पर सरकार से भी मदद लेगी। यह कार्य आनेवाली पीढ़ी के लिए सद्भावना और शांति का रास्ता बनाएगा। 
27. सम्मेलन में पारित नियम का अनुपालन, प्रत्येक गाँव में परम्पारिक तरीके से चले आ रहे पद्दा पचोरा (ग्राम सभा) के द्वारा संचालित किया जाएगा, जिसकी कार्यकारिणी समिति में गाँव का - 1) पहान 2) पुजार 3) महतो (भ्ाुँर्इहर महतो) 4) जेठ रर्इयत (जेट्ठा भ्ाुँर्इहर) एवं 5) गौंरो पारम्परिक रूप से पदधारी होंगे तथा 7 (सात) मनोनित सदस्य होंगे, जिसमें 3 (तीन) महिलाएँ भी होंगी। बैठक में परम्परागत कुँड़ुख़ समाज के सभी सदस्य भागीदारी करेंगे। कार्यकारिणी समिति का चुनाव परम्परागत रूप से 3 (तीन) वर्ष में होगा। पहनर्इ बदली होने पर ग्राम सभा की कार्यकारिणी समिति भी बदल जाएगी। ग्राम सभा (पद्दा पंच्चा) द्वारा, नये कार्यकारिणी समिति के गठन की सूचना अपने-अपने क्षेत्र के उपायुक्त को आवश्यक रूप से देना होगा। ग्राम सभा (पद्दा सभा) के कार्यकारिणी समिति के चुनाव में विवाद होने पर आध्यात्मिक विधि द्वारा अर्थात पाय रेंगवाना अनुष्ठान विधि के चयनित प्रतिनिधि को अंतिम माना जाएगा। सभा का संचालन - ‘नैगस पद्दा कमदस अरा महतोस पद्दन चलाबअ़दस’ अर्थात ‘‘पहान गाँव बनायला (सभापति) और महतो गाँव चलाएला (मंत्री)’’ वाली मान्यता एवं कहावत के अनुसार होगा।
28. पद्दा पंच्चा (ग्राम सभा) में किसी मामले का निपटारा नहीं हो पाने पर, पड़हा स्तर पर विवाद को सुलझाया जाएगा और पड़हा स्तर पर विवाद नहीं सुलझने ही स्थिति में मामले के अनुसार वह मामला बिसु सेन्दरा में विचार किया जाएगा। जहाँ अर्थात बिसु सेन्दरा में परम्पारिक रूप से गठित पदाधिकारियों जैसे - पडह़ा बेल, पड़हा देवान, पड़हा कोटवार आदि के द्वारा निर्णय किया जाएगा। यहाँ भी यदि किसी मामले का निर्णय नहीं हो पाने की स्थिति में ही न्यायालय में मामला जाएगा। पड़हा एवं बिसु सेन्दरा, सामाजिक न्याय प्रणाली की क्रमवार उच्चतर तथा उच्चतम व्यवस्था है। इसके पदाधिकारी पारम्परिक रूप से चुने जाते हैं। पड़हा की कार्यकारिणी समिति में पारम्परिक पड़हा बेल, देवान आदि होते हैं।
(नोट :- रूढ़ी परम्परा के अन्तर्गत, सामाजिक न्याय प्रणाली में यह व्यवस्था समाज की भागीदारी को बढ़ावा देता है। एक कमजोर एवं बुजूर्ग आदिवासी परिवार का सदस्य भी यदि इस सामाजिक प्रणाली में भागीदार और मददगार होता है। वर्तमान समय में यह पंचनामा की तरह लिखित होने से तीन सीढ़ी यानि पद्दा पंच्चा, पड़हा पंच्चा तथा बिसु सेन्दरा से गुजरने पर एक कमजोर से कमजोर व्यक्ति को सामाजिक न्याय मिल पाएगा। यदि कोर्इ व्यक्ति, सामाजिक न्याय से संतुश्ट न हों तो न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। बिसु सेन्दरा, वर्श में सिर्फ एक बार होता है, इसलिए यह तीन सीढ़ी वाली, सामाजिक न्याय प्रणाली में कम से कम 6 से 12 महीने का समय लग सकता। इस रूढ़ीगत सामाजिक न्याय प्रणाली को वर्तमान न्यायालय व्यवस्था को मान्यता दे तो सरकार तथा देश का समय और संसाधन के खर्चे में कमी होगी। वर्तमान प्रशासन एवं न्यायालय व्यवस्था को रूढ़ीगत सामाजिक न्याय प्रणाली के न्याय पर सहमति नहीं भी हो सकती है, वैसी स्थिति में न्यायालय, प्रस्तुत गवाह और साक्ष्य के आधार कर अपना न्याय सुनाये।)
22 पड़हा ग्रामसभा बिसु सेन्दरा 2019 में पारित विधि-विधान को, 22 पड़हा क्षेत्र के अन्तर्गत परम्परागत कुँड़ुख़ समाज के सभी गाँव वासियों को पालन करना होगा। इस विधि-विधान में आवश्यक संशोधन, आगामी 22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा में ही किया जा सकेगा।

Signature

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22 पड़हा ग्रामसभा बिसुसेन्दरा 2019 का घोषणा पत्र
बिसुसेन्दरा स्थल - ग्राम : लंगटा पबेया, थाना : सिसई, जिला : गुमला (झारखण्ड)

ग्रामीणों का हस्‍ताक्षर

 

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