दिनांक 26.10.2021 दिन मंगलवार को ग्रामगुरू रांची के सभागार डॉ. कामिल बुल्के पथ (पुरूलिया रोड रांची) में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अन्तर्गत झारखण्ड की नई शिक्षा नीति के विषय पर एक विचार गोष्ठी सम्पन्न हुई। इस विचार गोष्ठी में झारखण्ड क्रिसचियन्स माइनोरिटी एजूकेशन एसोशिएशन के माननीय अध्यक्ष‚ बिशप भिन्सेन्ट बरवा (सिमडेगा धर्मप्रांत‚ झारखण्ड)‚ महासचिव फा. एरेनियुस मिंज‚ माननीय सदस्य श्री शाण्डिल जी‚ सिस्टर सेलिन बड़ा (प्रधानाध्यापिका संत अन्ना‚ रांची)‚ सी.बी.सी.आई नई दिल्ली के सदस्य फादर डा. निकोलस बरला एवं अखिल भारतीय कुंड़ुख़ कत्थ तोलोंग सिकि प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष फा. अगुस्ती न केरकेट्टा‚ महासचिव डा. नारायण उरांव उपस्थित थे। यह गोष्ठी ग्रामगुरू रांची के इंस्पेक्टर फा. मुकुल कुल्लू के आह्वान पर आयोजित हुई थी। इस गोष्ठी का मुख्य उदेश्य झारखण्ड शिक्षा परियोजना‚ रांची के अधिसूचना ज्ञापांक QU/40/147/2021/1800 दिनांक 30.09.2021 में वर्णित विषय-वस्तु पर परिचर्चा करना था। यह विचार गोष्ठी बिशप बरवा की अध्यिक्षता में सम्पन्न हुई।
माननीय सभा अध्यक्ष की अनुमति से ग्रामगुरू रांची के निरीक्षक द्वारा विचार-गोष्ठी की आवश्यक्ता तथा उदेश्यों पर चर्चा की गई। तत्पश्चात झारखण्ड शिक्षा परियोजना‚ रांची के अधिसूचना में वर्णित विषय-वस्तु के संबंध में डा. नारायण उरांव एवं फा. अगुस्तीिन केरकेट्टा द्वारा विस्तार पूर्वक चर्चा किया गया। झारखण्ड सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर दी गई है‚ जिसके तहत शिक्षा विभाग द्वारा झारखण्ड शिक्षा परियोजना‚ रांची के माध्यम से अधिसूचना जारी की गई है। इसके आलोक में 1ली कक्षा से 5वीं कक्षा तक मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा प्रदान किया जाना है। इसके अन्तर्गत 1ली से 12वीं तक की शिक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का गठन 5+3+3+ 4 के तर्ज पर किया गया है।
परिचर्चा में फा. निकोलस बरला ने कहा कि वैश्विक स्तर पर औद्योगीकरण के चलते आदिवासियों एवं मूलवासियों की भाषा एवं सांस्कृतिक पहचान का क्षरण हुआ है। आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों को बचपन से ही हिन्दी एवं अंगरेजी का बोझ डाल दिया जाता है। इसके चलते बच्चे अपने परिवार में रहकर भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को अपना नहीं पाते हैं और सहज भाव से जिन चीजों को वे सीख पाते वह नहीं हो पाता है। इस दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षाविदों का मानना है कि बच्चे किसी भी चीजों को अपनी मातृभाषा में अधिक आसानी से सीखते हैं। अतएव प्राथमिक शिक्षा उनके मातृभाषा में दी जानी चाहिए। वैसे वर्तमान भूमण्डलीकरण के दौर में अपनी भाषायी ज्ञान एवं पहचान भी जरूरी है। उसके बाद फा. एरेनियुस मिंज ने कहा कि हमें अपनी सामाजिक पहचान एवं धरोहर का कवच मातृभाषा को सीखना है। अतएव राज्य सरकार द्वारा लिये गये निर्णय के लिए हम सभी कृतज्ञ हैं और मातृभाषा शिक्षा को आगे बढ़ाने के अवसर के तलाश में हैं। माननीय शाण्डिल जी ने कहा कि भाषा पढ़ाई के अवसर के साथ कई कठिनाईयां भी हैं पर सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। हमें यह भी देखना होगा कि स्कूलों में आदिवासी भाषा एक विषय के तौर पर रखना होगा या सभी विषयों के लिए माध्यम बनेगा। सिस्टर सेलिन बड़ा ने कहा कि बचपन में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दिये जाने का प्रयास स्वागत योग्य है। इसके लिए हम सभी की तैयारी वांच्छनीय है। इस संबंध में डा. नारायण उरांव ने कहा कि वर्तमान में कुंड़ुख़ भाषा की पढ़ाई मैट्रीक स्तर तक देवनागरी एवं तोलोंग सिकि में हो रही है। झारखण्ड सरकार द्वारा 2003 में संताली भाषा की लिपि ओलचिकि‚ हो भाषा की वराङ चिति एवं कुंड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोंग सिकि है कहकर केन्द्र सरकार के साथ पत्राचार किया गया है। तत्पश्चात शिक्षा विभाग की अनुमति से वर्ष 2009 से कुंड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोंग सिकि में मैट्रिक परीक्षाएं हो रही है। वर्ष 2016 से सभी विद्यालय के बच्चों के लिए यह अवसर प्रदत है। राज्य सरकार के इस नये कदम से हम सबों को आगे बढ़कर स्वागत करना चाहिए और सामाजिक स्तर पर तैयारी करनी चाहिए। कुंड़ुख़ कत्थ तोलोंग सिकि प्रचारिणी सभा के अध्यिक्ष फा. अगुस्तीकन केरकेट्टा द्वारा कुंड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर चर्चा किया गया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का यह निर्णय समाज के लिए सराहणीय कार्य है।
इस विचार गोष्ठी में सभा अध्यक्ष बिशप बरवा ने अपने आर्शीवचन में कहा कि सरकार का यह निर्णय आदिवासी भाषा-संस्कृति के विकास एवं बचाव के लिए सराहनीय है। इस दिशा में सरकार की योजना को देख समझकर आगे का कार्य किया जाएगा। सभा के अंत में ग्रामगुरू रांची के निरीक्षक फा. कुल्लू द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया और विचार गोष्ठी समाप्त हुई।
संकलन सह संपादन:-
फा. अगुस्तीन केरकेट्टा
सामलोंग‚ रांची।