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हिंदू धर्म के 16 संस्‍कारों की परंपरा का पालन आदिवासी भी करते हैं फिर सरना धर्म कोड क्‍यों?

रांची: आदिवासी नेता डॉ करमा उरावं के बयान पर हमलावर विश्‍व हिंदू परिषद (विहिप) व सहयोगी संस्‍थाओं ने सरना धर्म कोड की मांग के खिलाफ मोर्चा खोला है। उनका कहना है कि आदिवासी या जनजातीय समाज को अलग धर्म कोड की कोई आवश्‍यक्‍ता ही नहीं। वे तो हिंदू हैं। 'सरना' केवल पूजा स्‍थल को कहा जाता है, धर्म कैसे हो सकता है?

विहिप के प्रांत मंत्री डॉ बिरेन्‍द्र साहु ने अपनी विज्ञप्ति में चर्चा करते हुए डॉ करमा उरावं के उस अखबारी बयान पर हमला किया है जिसमें कथित तौर पर डॉ करमा ने भाजपा के पूर्व सांसद कडि़या मुंडा को हिंदू धर्म में धर्मांतरित आदिवासी बताया था। विहिप नेता डॉ बिरेन्‍द्र कहते हैं, हिंदूओं में 16 संस्‍कारों की परंपरा है जिसका पालन जनजातीय समाज भी करते आ रहे हैं। केवल हिंदू धर्म में जाति व्‍यवस्‍था और आदिवासी या अनुसूचित जनजाति इसका हिस्‍सा हैं।

आदिवासी नेता डॉ करमा के बयान पर जनजाति सुरक्षा मंच के जिला सहसंयोजक जादो उरांव की अध्‍यक्षता में 19 नवंबर को आयोजित एक बैठक में भी कहा गया कि जनजाति समाज को किसी अलग धर्म कोड की बिल्‍कुल जरूरत नहीं। बैठक में कहा गया कि 'सरना' धर्म नहीं बल्कि पूजा स्थल का नाम है। जनजाति समाज में पूजा स्थलों का भिन्न-भिन्न नाम है। उरांव में 'चाला टोंका सरना', मुंडा में 'जाहेर', संताल में 'जाहेर थान', हो में 'जाहेरा' वगैरह-वगैरह। 32 जनजातियों में भिन्न-भिन्न नाम है। संविधान के अनुच्छेद 25 में कोई भी व्यक्ति अपने अंतःकरण से कोई भी धर्म अपना सकता है। जबरदस्ती नहीं। सरना धर्म कोड हमें कतई स्वीकार नहीं है। डॉ करमा उरांव जनजाति समाज को दिग्भ्रमित कर रहे हैं, इसे कभी सफल नहीं होने दिया जाएगा। जनजाति समाज को ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है। बैठक में निर्णय लिया गया कि शीघ्र ही एक प्रतिनिधिमंडल प्रदेश के राज्‍यपाल से मिलकर इसपर एक ज्ञापन देगा कि आदिवासियों के लिये अलग धर्म कोड बिल्‍कुल अस्‍वीकार्य है। यह विज्ञप्ति जनजाति सुरक्षा मंच के सहसंयोजक सोमा उरांव ने जारी की है।

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