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कुड़ुख़ लिपि दर्शन

भूमिका : कुड़ुख़ लिपि को तोलोंग सिकि के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह लिपि कुड़ुख़ बोलने वालों की तोलोंग (परम्परागत वस्त्र) पहनने की कला तथा उनके घुमने-फिरने व काम करने के तरीकों के अनुसार बनायी गयी है। कहने का तात्पर्य यह कि तोलोंग-लिपि, कुड़ुख़ संस्कृति की विशेषताओं को उजागर करते हुए गढ़ी गयी है। चूँकि इस विषय पर पर्याप्त लिखा जा चुका है, इसलिए इस लघु लेख में कुड़ुख़ लिपि के दर्शन पर विचार किया जा रहा है। 
दर्शन यानी दृष्टि, एक ऐसी दृष्टि जो सामान्य आँख से देखते हुए आन्तरिक आँख से परख पाने के लिए पाठक को प्रेरित करे। दूसरे शब्दों में, लिपि का जो उद्देश्‍य है तथा उसके जो लक्षण होते हैं, उन तक लोगों के देखने की क्षमता को ले जाना। आशा है कि इस लघु लेख को पढ़ने वाले उस तक पहुँच सकें व उन मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में ढाल सकें। 

लिपि का महत्व : 
    लिपियों का इतिहास पढ़ने से पता चलता है कि जिन-जिन समुदायों ने अपनी लिपि बनायी, वे ईसा पूर्व के होने के बाबजूद आज तक याद किये जाते हैं, जैसे मेसोपोटामिया, मिस्र, सिन्धु-घाटी, ग्रीस, रोम, आदि के लोग। कहने का तात्पर्य यह कि जो अपनी संस्कृति को लिखित रूप में प्रकट कर सकते हैं, उनकी अभिव्यक्ति उनके गुणों की पहचान बन जाती है, साथ ही साथ अन्य लोगों के लिए सीखने का माध्यम भी।     
उसी इतिहास से पता चलता है कि प्रत्येक संस्कृति में विशिष्ट विशेषताएँ प्रकट होती हैं, जैसे मेसोपोटामिया में लिखने की कला, मिस्र में वास्तु कला, सिन्धु-घाटी में बाहर सजाने की कला, ग्रीस में दर्शन-शास्त्र, रोम में प्रशासन व न्याय प्रणाली, आदि मुख्य प्रतिभाएँ रही हैं, जो आज तक दुनिया के विद्वानों के लिए अध्ययन के विषय बने हुए हैं। इस कारण किसी भी समाज को कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक की देन अपने में अद्वितीय होती है। इस तरह प्रत्येक संस्कृति, मानवता की धरोहर होती है तथा संस्कृतियाँ स्वभावतः एक दूसरे की पूरक बनती जाती हैं।

कुड़ुख़ लिपि क्यों ?
    लिपि का आविष्कार, लिखने की कला व विज्ञान से संबंधित है, यानी अपनी बोल-चाल की भाषा को लिखित रूप देते हुए अपने अनुभवों व विचारों को कार्यरूप देने हेतु उन्हें प्रकट करना, जिससे समुदाय के लोग एक साथ अनुभव कर सकें, एक साथ विचार कर सकें और मिलकर अर्थपूर्ण तरीके से कर्म कर सकें। मनुष्य की यह विशेषता है कि वह मिलकर कार्य कर सकता है। यही कारण है कि वह अन्य जानवरों से श्रेष्ठ हो सका है। इसी प्रक्रिया से मानवीय समुदाय निर्मित होकर विकसित होता जाता है। कुड़ुख़ समुदाय उसी दिशा में बढ़ना चाह रहा है।     
बारीकी से देखें तो यह भी पता चलता है कि लिखने वाला व्यक्ति अपने दिल की बात को मन में रखते हुए लिख-पढ़ सकता है, अर्थात् सोच-बात-काम को एक करने की क्षमता रखता है, जिसके कारण उसे परिपक्व होने में मदद मिलती है। दूसरे शब्दों में जब कोई व्यक्ति लिखता है तो लोग उसके सोच को समझ पाते और उसकी मनोभावनाओं में भी प्रवेश कर पाते हैं, जिससे उसके साथ आदान-प्रदान सहज व सरल हो जाता है। व्यक्तिगत परिपक्वता व परस्पर साहचर्य हेतु लिपि एक सशक्‍त माध्यम बन गयी है। यही कारण है कि शिक्षा, आज विकास का आधार बन गयी है। फलतः प्रत्येक कुड़ुख़ के व्यक्तिगत विकास व सामुदायिक साहचर्य में बढ़ने के लिए लिखने की क्षमता का विकास करना अपेक्षित रहा है। 
कुड़ुख़ लिपि या तोलोंग सिकि की यह विशेषता है कि उसके माध्यम से कई अन्य भाषाएँ भी लिखी जा सकेंगी। यह इसलिए क्योंकि लिपि का स्वभाव, मानव स्वभाव से मिलता जुलता है। कुड़ुख़ लिपि अपने कुड़ुख़ समुदाय के स्वभाव की पहचान दर्शाते हुए अन्य भाषाओं के साथ आदान-प्रदान कर सकती है। जिस तरह एक समय रोमन लिपि और देवनागरी लिपि में कुड़ुख़ भाषा को लिखा जाता रहा है, उसी तरह अब तोलोंग-सिकि के माध्यम से कई अन्य भाषाओं को भी लिखा जा सकेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि मानव-स्वभाव भी अपनी अस्मिता को रखते हुए बहुर्मुखी होता है। ध्यान रहे, एकता या सामंजस्य में बढ़ने की बात तब होती है, जब समाज में विभिन्नता पायी जाती है। विभिन्नता, सृष्टिकर्ता की अनूपम देन है, जिनमें कुड़ुख़ समुदाय एक है। फलतः उसका विकास ईश्‍वरीय योजना का अंग होगा। 
तभी सवाल उठता है कि कुड़ुख़ लिपि की आवश्‍यकता ही क्यों पड़ी, यदि अन्य लिपि भी उसे प्रकट कर पाते हैं। सच है यह लिपि ध्वनि प्रधान संकेतों से बना है, जो प्रत्येक भाषा में कुछ विशेष या भिन्न होते हैं जिनके लिए अलग संकेतों की जरूरत पड़ती है। इन विशिष्ट संकेतों के कारण कुड़ुख़ भाषा अपनी पहचान लेकर आती है और जो इन विशेषताओं से जुड़ते जाते हैं, उनके साथ स्वतः संबंध मधुर होता जाता है। उदाहरणार्थ, कुड़ुख़ द्रविड़-भाषा परिवार का अंग होने के कारण द्रविड़-भाषाओं के साथ मेल बढ़ाता जा रहा है। फलस्वरूप संस्कृतियों की पहचान और उनके बीच आदान-प्रदान लिपि व भाषा के माध्यम से सरल अपितु गहरे तरीके से संभव होगा। 

कुड़ुख़ लिपि की चुनौतियाँ :
    लिपि का उद्देश्‍य है व्यक्तियों के बीच आदान-प्रदान को आसान बनाना तथा अपनी संस्कृति को नयी पीढ़ी तक पहुँचाना। इस तरह लिखित कृति एक ऐसा खजाना है जो समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर बन जाती है तथा प्रगति के मार्ग खोल देती है। इतिहास इस तरह नयी पीढ़ी के लिए दिशा निर्देशक बन जाता है। अब प्रश्‍न है कि क्या कुड़ुख़ समाज इस दिशा में आगे बढ़ सकेगा, क्योंकि उनकी तोलोंग सिकि उनके समाज के लिए एक दिशा के रूप में रखी गयी है। क्या उसे आत्मसात करने के लिए समुदाय के पास साधन व अवसर पर्याप्त हैं? समाज इसके लिए और उपाय खोजे तथा समय के अनुरूप कदम बढ़ाए। विशेष तौर पर चुनौती इस बात में होगी कि यदि कुड़ख़र इस दिशा में स्वभावतः व सरलता पूर्वक न अपनाएँ तो क्या होगा। मानवीय स्वभाव सरलता व सुगमता की ओर जाना चाहता है, जैसे यूरोपवासियों ने किया। अपनी विभिन्नता को रखते हुए रोमन लिपि में ही अपनी विशेषताओं को दिखलाकर एकता का परिचय दिया। इस तरह आज वे वैश्‍वीकरण, यानी विभिन्नता में एकता का पाठ, सबको पढ़ा पा रहे हैं। सच है कि मानवीय-स्वभाव दिनों-दिन एकता की खोज कर रहा है, जिसके कारण विश्‍वभर में भ्रमण करना तथा आदान-प्रदान करना आसान होता जा रहा है। क्या इस आसान धारा को कुड़ुख़ लिपि संभाल सकेगी? दोनों रास्ते खुले हैं - एक कि कुड़ुख़ समुदाय अपनी एकता का परिचय देते हुए जापान और चीन की तरह अपना अस्तित्व दुनिया में रखे, तथा दूसरा - कि यूरोप की तरह अपनी विशेषता को रखते हुए वैश्‍वीकरण का रास्ता अपनाए। 
समाज किसी भी रास्ते को चुने, वह अपनी अस्मिता को रखे बिना अपनी सभ्यता को नहीं रख पायेंगी। उसे चाहिए कि वह अपने आन्तरिक संगठनों को मजबूत करते हुए अपनी ईश्‍वर प्रदत्त गुणों को सानन्द जीये और उसका प्रचार-प्रसार सगर्व करता रहे। दोनों रास्ते खुले हैं, पहला कि - कुड़ुख़ समुदाय अपनी एकता का परिचय देते हुए जापान और चीन की तरह अपना अस्तित्व दुनिया में रखे तथा दूसरा कि - यूरोप की तरह अपनी विशेषता को रखते हुए वैश्‍वीकरण का रास्ता अपनाए। किसी भी रास्ते को वह चुने, वह अपनी अस्मिता को रखे बिना अपनी सभ्यता को नहीं रख पायेगी। उसे चाहिए कि वह अपने आन्तरिक संगठनों को मजबूत करते हुए अपनी ईश्‍वर प्रदत्त गुणों को सानन्द जीये और उसका प्रचार-प्रसार सगर्व करता रहे।

Linus Kujur

- लीनूस कुजूर
Professor, Pontifical Gregorian 
University, Rome.
Dated –  April 12, 2019

संकलन एवं प्रस्तुतिकरण -
फा० अगुस्तिन केरकेट्टा
अध्यक्ष, अखिल भारतीय कुँड़ुख़ तोलोंग सिकि 
प्रचारिणी सभा, झारखण्ड, राँची, दिनांक : 09.08.2022

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