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दस्‍तावेज / Records / Plans / Survey

बरा घोखदत का – कुंडुखर गहि, एज्जरना एकासे परदा उंगी?

हमारी सामाजिक एकता टूट रही है क्योंकि - 1.आज हमारी पड़हा,धुमकड़िया,अखड़ा, चाला-टोंका, पंचा, मदाइत, कोहा-बेंज्जा,कुंडी आदि की समृद्ध परंपरा छिन्न-भिन्न हो गई है. फलतः,समाज के सभी लोगों को जोड़े ऱखने की जो एकजुट, मजबूत पुरखा परंपरा कायम थी, वह कड़ी व सामाजिक एकजुटता की लय कहीं टूट गई लगती है.ऐसी हालत में अब हम क्या कर सकते हैं? आइए मिलकर सोचें !

बीस वर्ष की काली रात (संक्षिप्‍त) : कार्तिक उरांव

इस पुस्तिका का लेखन एवं प्रकाशन पंखराज साहेब बाबा कार्तिक उरांव द्वारा कराया गया था। इस पुस्तिका में कार्तिक बाबा द्वारा देश की आजादी के बाद, वर्ष 1950 से 1970 (लगभग 20 वर्ष) के मध्‍य जंगलों एवं पहाड़ों के बीच रह रहे परम्‍परागत आदिवासियों के बारे में भारत देश की जनता एवं सरकार के समक्ष, समाज की दुर्दशा तथा संवैधानिक अधिकारों की उपेक्षा के शिकार दबे-कुचले लोगों की आवाज को शिखर तक पहुंचाने तथा रौशनी दिखाने का कार्य किया गया है। प्रस्‍तुत स्‍वरूप, पंखराज साहेब बाबा कार्तिक उरांव के विचारों को जानने एवं समझने की इच्‍छा रखने वाले सगाजनों के लिये मूल पुस्तिका की छायाप्रति आप पाठको के लिए प्रस्‍तु

कुंड़ुख टाइम्‍स (वेब संस्‍करण) का अक्‍टूबर से दिसंबर 2022 / अंक 5 प्रकाशित

कुंड़ुख टाइम्‍स (वेब संस्‍करण) का अक्‍टूबर से दिसंबर 2022 / अंक 5 का यह संस्‍करण काफी पठनीय है। आप इसे यहां ऑनलाइन पढ़ सकते हैं। आप चाहें तो इसका पीडीएफ फाइल भी अपने लैपटॉप या पीसी अथवा मोबाइल पर डाउनलोड कर सकते।

सरना समाज और उसका अस्तित्व : एक पुस्‍तक चर्चा

‘‘सरना समाज और उसका अस्तित्व’’ नामक इस छोटी पुस्तिका में आदिवासी उराँव समाज की जीवन यात्रा का वृतांत है, जो भारत देश की आजादी के दो दशक बाद, उराँव लोग विषम परिस्थिति में अपने पुर्वजों की धरोहरों को सहेजते हुए देश की मुख्यधारा के साथ चलने का प्रयास कर रहे थे। देश की आजादी के बाद भी आदिवासी उराँव समाज का धार्मिक विश्‍वास एवं सामाजिक जागृति तथा आधुनिक शिक्षा जैसे विषयों पर निचले पायदान से उठने की कोशिश करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इस छोटी सी पुस्तिका में 1965 से 1989 के बीच के सामाजिक परिस्थिति पर आधारित तथ्य-लेख का चित्रण है। संभव है, कई पाठक इसमें उद्धृत तर्कों से सहमत न हों, पर इसे विगत समय की स

‘कुँड़ुख़ व्याकरण की पारिभाषिक शब्दावली‘ विषयक एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

दिनांक 01 मई 2022, दिन रविवार को आदिवासी उराँव समाज समिति, बिरसा नगर, जोन न०-6, जमशेदपुर में ‘‘कुँड़ुख़ व्याकरण की पारिभाषिक शब्दावली‘‘ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न हुआ। यह कार्यशाला, टाटा स्टील फाउण्डेशन, जमशेदपुर के तकनीकि सहयोग से संचालित ‘‘कुँड़ुख़ (उराँव) भाषा एवं लिपि शिक्षण कार्यक्रम‘‘ का अग्रेतर क्रियान्वयन था। इस कार्यशाला में आदिवासी उराँव समाज समिति, बिरसा नगर के पदधारी सहित माध्यामिक विद्यालय के छात्रगण एवं कालेज के छात्र उपस्थित थे। कार्यशाला का शुभारंभ समिति के अध्यक्ष श्री बुधराम खलखो के आशीर्वचन से हुआ।

कुँड़ुख़ भाषा अरा तोलोंग सिकि (लिपि)

1 कुँड़ुख भाषा - कुँड़ुख भाषा एक उतरी द्रविड़ भाषा परिवार की भाषा है। लिंगविस्टक सर्वे ऑफ इंडिया 2011 के रिपोर्ट के अनुसार भारत देश में कुँड़ुख़ भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 19‚88‚350 है। पर कुँड़ुख भाषी उराँव लोग अपनी जनसंख्या के बारे में बतलाते हैं कि पुरे विश्व में कुँड़ुख भाषी उराँव लोग 50 लाख के लगभग हैं। झारखण्ड में इस भाषा की पढ़ाई विश्वविद्यालयों में हो रही है। भारत में उरांव लोग झारखण्ड‚ बिहार‚ छत्तीसगढ़‚ ओड़िसा‚ प0 बंगाल‚ असम‚ त्रिपुरा‚ अरूणांचल प्रदेश‚ उत्तर प्रदेश‚ मध्य प्रदेश‚ हिमाचल प्रदेश‚ महाराष्ट्र तथा विदेशों में से नेपाल‚ बंगलादेश आदि क्षेत्र में है। 

कुँड़ुख़ तोलोङ सिकि (लिपि) की स्थापना में भाषा विज्ञान के तथ्य

झारखण्ड सरकार द्वारा 06 जून 2003 को मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (Medium of  instruction of mother tongue) घोषित किया गया है तथा 18 सितम्बर 2003 को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोङ सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया। सरकार के इस निर्णय के बाद जैक द्वारा वर्ष 2009 से मैट्रिक में कुँड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा तोलोंग सिकि में लिखने की अनुमति मिलने तक में कई भाषाविदों के मार्गदर्शन मिले। उनमें से निम्नांकित भाषाविदों के मंतब्य आधार स्तंभ हैं -

Dr Francis Ekka

तोलोंग सिकि विकासयात्रा: शिक्षाविदों से मिला था मार्गदर्शन

झारखण्ड सरकार द्वारा 06 जून 2003 को मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (medium of  instruction of mother tongue) घोषित किया गया है तथा 18 सितम्बर 2003 को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोङ सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया। सरकार के इस निर्णय के बाद जैक द्वारा वर्ष 2009 में एक विद्यालय के लिए तथा वर्ष 2016 से सभी विद्यालयों के छात्रों के लिए कुँड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा तोलोंग सिकि में लिखने की अनुमति मिली। इस सरकारी प्रावधान के बाद भाषा के अग्रेतर विकास हेतु कई भाषाविदों एवं शिक्षाविदों से मार्गदर्शन मिले। उनमें से निम्नांकित के मंतब्य साहित्य  विकास में मार्गदशक है -

तोलोंग सिकि की मान्‍यता से पूर्व शिक्षाविदों द्वारा प्रोत्‍साहन के संदेश

तोलोङ सिकि को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में मान्यता है। झारखण्ड सरकार द्वारा 06 जून 2003 को मातृभाषा शिक्षा का माध्यम (medium of instruction of mother tongue) घोषित किया गया है तथा 18 सितम्बर 2003 को कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोङ सिकि (लिपि) को स्वीकार किया गया है। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार में राजकीय गजट के माण्यम से कुँड़ुख़ भाषा को 01 जून 2018 से 8वीं राजकीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। इस तरह कुँड़ुख़ भाषा एवं तोलोङ सिकि (लिपि) को झारखण्ड सरकार तथा पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा मान्यता प्रदत है।

कुंड़ुख़ भाषा की तोलोंग सिकि के संस्थापक डॉ. नारायण उरांव को विभागीय एवं सामाजिक सम्मान

भारत सरकार के Linguistic Survey of India  (लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया) विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार कुंड़ुख़ एक उतरी द्रविड़ भाषा समूह की भाषा है। इस भाषा को बोलने वाले उरांव आदिवासी एवं अन्य समूह के लोग अपने देश भारत में लगभग 50 लाख हैं। पिछले दो दशक पूर्व तक इस भाषा की कोई भी मान्यता प्राप्त लिपि नहीं थी। पर झारखण्ड अलग प्रांत आन्दोनल के साथ यहां के लोगों ने भाषायी पहचान का आन्दोलन भी छेड़ रखा था और वर्ष 2016 में झारखण्ड सरकार में कुंड़ुख़ भाषा की लिपि‚ तोलोंग सिकि के माध्यम से मैट्रिक में कुंड़ुख़ भाषा विषय की परीक्षा इस लिपि से लिखने की अनुमति मिली है। इस भाषायी पहचान को मूर्त रूप