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बरा घोखदत का – कुंडुखर गहि, एज्जरना एकासे परदा उंगी?

हमारी सामाजिक एकता टूट रही है क्योंकि - 1.आज हमारी पड़हा,धुमकड़िया,अखड़ा, चाला-टोंका, पंचा, मदाइत, कोहा-बेंज्जा,कुंडी आदि की समृद्ध परंपरा छिन्न-भिन्न हो गई है. फलतः,समाज के सभी लोगों को जोड़े ऱखने की जो एकजुट, मजबूत पुरखा परंपरा कायम थी, वह कड़ी व सामाजिक एकजुटता की लय कहीं टूट गई लगती है.ऐसी हालत में अब हम क्या कर सकते हैं? आइए मिलकर सोचें !

Kurukh Times मैगजिन का vol. 12 प्रकाशित

Kurukh Times vol. 12 प्रकाशित हो रहा है। इसका पी.डी.एफ.आप सभी डाउनलोड करें और कूड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास की कथा जानें। अंक 12 में माह जुलाई-सितंबर 2024 का सामयिक लेख एवं विचार है। आइए देखें - कुड़ुख़ टाइम्स,अंक 12.
 

Kurukh Times मैगजिन vol. 11 प्रकाशित

Kurukh Times vol. 11 प्रकाशित हो रहा है। इसका पी.डी.एफ.आप सभी डाउनलोड करें और कूड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास की कथा जानें। अंक 11 में माह अप्रैल-जून 2024 का सामयिक लेख एवं विचार है। आइए देखें - कुड़ुख़ टाइम्स,अंक 11.

कुंड़ुख भाषा - तोलोंग सिकि लिपि पर राष्‍ट्रीय सेमिनार का दूसरा दिन

दिनांक 02 एवं 03 अक्टुवर 2024 को कुड़ुख़ भाषा की दशा एवं दिशा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार, कुड़ुख़ भाषा एवं सांस्कृतिक पुनरूत्थान केन्द, बम्हनी  गुमला में सम्पन्न हुआ। इस सेमिनार में दिनांक 03 अक्टुवर 2024  किये गये  प्रस्तुति में से कुड़ख़ भाषा तोलोंग सिकि और उरांव समाज की भूमिका विषय किए गए प्रस्तुति का पीडीएफ आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है -

राष्‍ट्रीय सेमिनार

कुंड़ख़ कत्था अईन अरा ख़ोसराचम्मबी एक आधुनिक उरांव/कुंड़ुख़ भाषा व्याकरण

प्रस्तुत पुस्तक कुंड़ख़ कत्था अईन अरा ख़ोसराचम्मबी एक आधुनिक उरांव/कुंड़ुख़ भाषा व्याकरण है। इसका शोध संकलन पेशे से चिकित्सक डॉ नारायण उरांव सैन्दा द्वारा किया गया है। यह  टाटा स्टील फाउंडेशन, के तकनीकी सहयोग से इस ऊंचाई तक पंहुचा है। समाज में लोगों तक पहुंचाने का कार्य अद्दी अखड़ा संस्था रांची द्वारा किया जा रहा है।इसमें भाषा है, भाषा की रचना है, भाषा विज्ञान है और अन्य प्राचीन भाषा के साथ तुलनात्मक अध्ययन है। इस व्याकरण में कुंड़ुख़ भाषा को समझने तथा समझाने के लिए हिन्दी के साथ अंग्रेजी का भी प्रयोग किया गया है।इस पुस्तक के विशिष्ट पहलुओं को जानने के लिए रूप का प्रयोग किया जाता है। इसकी व

हाईकोर्ट झारखंड एवं छत्तीसगढ़ का आदेश और परम्परागत उरांव समाज का सामाजिक न्याय पंच व्यवस्था

माननीय हाईकोर्ट के टिप्पणी के बाद परम्परागत उरांव समाज के जागरूक लोग अपने पुस्तैनी विरासत को संयोजने के लिए विगत 12 वर्ष तक काम को सम्पादित कर वर्तमान समय के न्यायालय व्यवस्था के मोताबिक परम्परागत उरांव सामाजिक न्याय पंच का अभिलेख तैयार किया गया है। विस्तृत जानकारी के लिए इस शीर्षक का पी.डी.एफ. पढ़ें... 

वैदिक वर्णमाला और संस्‍कृत व्‍याकरण ऐसे समझिये (भाग 3/3)

वैदिक वर्णमाला और संस्कृत वैयाकरण विशेषज्ञों की मान्यताएं विषय पर चर्चा करना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी इसे जानने और समझने का प्रयास किये जाने पर ही यह बातें लोगों तक पहुंच पाएंगी। जब मैं 1991-96 में आदिवासी उरांव भाषा की लिपि विषय पर कार्य कर रहा था, तब संस्कृत व्याकरण के ग्रेजुएट ने संस्कृत व्याकरण के तथ्यों एवं मान्यताओं पर प्रकाश डाला। मैं तब से अबतक इसे समझने का प्रयास कर रहा हूं। इसके संदर्भ में नयी जानकारी के साथ यह फोटो पी डी एफ देखें और पढ़ें -- डॉ नारायण उरांव 'सैन्दा

इस आलेख का अगला हिस्‍सा ठीक नीचे लिंक में देखें: 

वैदिक वर्णमाला और संस्‍कृत व्‍याकरण ऐसे समझिये (भाग 2/3)

वैदिक वर्णमाला और संस्कृत वैयाकरण विशेषज्ञों की मान्यताएं विषय पर चर्चा करना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी इसे जानने और समझने का प्रयास किये जाने पर ही यह बातें लोगों तक पहुंच पाएंगी। जब मैं 1991-96 में आदिवासी उरांव भाषा की लिपि विषय पर कार्य कर रहा था, तब संस्कृत व्याकरण के ग्रेजुएट ने संस्कृत व्याकरण के तथ्यों एवं मान्यताओं पर प्रकाश डाला। मैं तब से अबतक इसे समझने का प्रयास कर रहा हूं। इसके संदर्भ में नयी जानकारी के साथ यह फोटो पी डी एफ देखें और पढ़ें -- डॉ नारायण उरांव 'सैन्दा

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वैदिक वर्णमाला और संस्‍कृत व्‍याकरण ऐसे समझिये (भाग 1/2)

वैदिक वर्णमाला और संस्कृत व्‍याकरण विशेषज्ञों की मान्यताएं विषय पर चर्चा करना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी इसे जानने और समझने का प्रयास किये जाने पर ही यह बातें लोगों तक पहुंच पाएंगी। जब मैं 1991-96 में आदिवासी उरांव भाषा की लिपि विषय पर कार्य कर रहा था, तब संस्कृत व्याकरण के ग्रेजुएट ने संस्कृत व्याकरण के तथ्यों एवं मान्यताओं पर प्रकाश डाला। मैं तब से अबतक इसे समझने का प्रयास कर रहा हूं। इसके संदर्भ में नयी जानकारी के साथ यह फोटो पी डी एफ देखें और पढ़ें -- डॉ नारायण उरांव 'सैन्दा