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धुमकुड़िया महबा उल्ला 2025 सैंदा में संपन्न हुआ

दिनांक 09/02/2025 को ग्राम - सैंदा, जिला गुमला में धुमकुड़िया कोरना- पूरना (प्रवेश-विदाई) का समारोह सम्पन्न हुआ। इस समारोह में बच्चे, बड़े बच्चे एवं बड़े बुजुर्ग उपस्थित हुए। यह आयोजन प्रतिवर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष में हुआ करता है। इस वर्ष यह आयोजन शुक्ल पक्ष में रविवार के दिन दिनांक 09.02.2025 को ग्रामीणों के सहयोग से आयोजित हुआ।
तथ्य है कि प्राचीन काल से ही उरांव समाज में बच्चे के 7 वें वर्ष में धुमकुड़िया प्रवेश कराया जाता था और विवाह के पूर्व उन लड़के-लड़कियों की धुमकुड़िया से विदाई की जाती थी। यहां उठते बैठते लोग सामाजिक जीवन जीने के तौर-तरीके सीखते थे। यह बीते समय की मांग थी। पर जो वर्तमान समय के थपेड़े में अथवा दुनियां के विकास दौड़ की चकाचौंध में या वैश्विक दबाव में अपनी  खो चुका है और वर्तमान में मिटने के कगार पर है। अब नए दौर में पूर्ववर्ती छात्र-छात्राएं लूरगढ़िया यानी प्रशिक्षक के रूप में सेवा देते हैं। नए नामांकन वाले गीत- कविताएं- कहानियां और अन्य गतिविधियों को सीखना आरंभ करते हैं।
सामाजिक जागरूकता के फलस्वरूप ग्राम सैन्दा थाना सिसई गुमला में पिछले एक दशक से माघ मास में धुमकुड़िया कार्यक्रम किया जा रहा है। 
इस धुमकुड़िया कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए वर्तमान में अद्दी कुड़ुख़ चाला धुमकुड़िया पड़हा अखड़ा, रांची एवं टाटा स्टील फाउंडेशन जमशेदपुर के सहयोग से धुमकुड़िया में कुड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि की पढ़ाई लिखाई करायी जा रही है। इसका फायदा अब दिखने लगा है।लोग अपनी भाषा लिपि में लिखने पढ़ने का कार्य करने लगे हैं। ऐसा होने से नई पीढ़ी अपनी आदिवासी पहचान एवं परंपराओं के प्रति गर्व महसूस करेगी।
इस वर्ष भी धुमकुड़िया दिवस का शुभारंभ गांव की देवी माता या देवीगुड़ी की परिक्रमा कर गोहरारने से शुरूआत हुई, नेग- दस्तुर के बाद अखड़ा की भी परिक्रमा की गई। जिसके बाद सभी ने अपना स्थान ग्रहण किया। मंच का संचालन सैन्दा ग्राम की 8वीं की छात्रा सुश्री शिल्पा उरांव द्वारा किया गया । धुमकुड़िया सैंदा में सीख रहे बच्चों ने धुमकुड़िया कत्थडण्डी प्रस्तुत किया। बीते वर्ष से ही पेल्लो मंक्ख़ना समारोह की शुरुआत की गई है। जिसमें विशेषकर किशोरी अवस्था में प्रवेश करने वाली लड़कियां का नेग- अनुष्ठान किया जाता है। उन्हें उरांव समुदाय की वीरांगनाओं की तरह गुण विकसित करने, आत्मविश्वास, आत्मरक्षा और सामाजिक दायित्व सीखने की संदेश दी जाती है।
धुमकुड़िया प्रवेश के बाद बच्चों को उपहार में पढ़ने- सीखने की सामग्री भी दी गई। इस दिन के समारोह के लिए बिहरी करके भोजन व्यवस्था की गई जिसमें प्रति घर से सहयोग लिया गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि सामुहिकता का बल से चुनौतियां स्वीकार कर सामाजिक दायित्व पूरा किया जा सकता है।

वहां उपस्थित बुद्धिजीवीयों ने युवाओं की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई कि किस प्रकार वे पारिवारिक दायित्व के साथ सामाजिक दायित्व में भी लापरवाही बरती जा रही है । डॉ नारायण उरांव सैंदा पेशेवर चिकित्सक होते हुए भी इस विशेष समारोह में जरूर शामिल होते हैं। उरांव समुदाय के अपने पारंपरिक रूढ़िगत व्यवस्था के प्रति नियमित रूप से जन जागरूकता में लगे रहते हैं। अपने सैंदा गांव की तरह संपूर्ण कबिले को सशक्त बनाने में हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। इस कारण से हमलोग को विज्ञान और रूढ़िगत व्यवस्था का सामंजस्य करके सामाजिक जीवन जीने हेतु सीखने को मिल रहा है। 

इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य अपनी संस्कृति को जीवित रखना है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों में से श्री मटकू उरांव, बुधराम उरांव, कोटवार गजेन्द्र उरांव, गांव के पुजार, महतो, समेत सभी गांव वालों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। समापन पुर्व एजेरना बेड़ा प्रोजेक्ट के शिक्षकों- समन्वयकों की बैठक भी रखी गई और अद्दी अखड़ा रांची के कार्य में सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई।

रिपोर्टर:-
नीतू साक्षी टोप्पो 
पेल्लो कोटवार, अद्दी अखड़ा संस्था रांची।

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