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बिरसा शहीद दिवस, दिखावा या दिल से ? - सालखन मुर्मू

आज 9 जून भगवान बिरसा मुंडा का शहीद दिवस है। बिरसा मुंडा रांची जेल में मर गए या मारे गए एक रहस्य है। मगर बिरसा मुंडा हमारे बीच आज भी जीवित हैं। उनका सपना- "अबुआ दिशुम- अबुआ राज" आज भी झकझोरता है, याद दिलाता है। उनके अदम्य साहस और "जंगल गोरिल्ला वारफेर" की रणनीति से महान ब्रिटिश साम्राज्य को भी झुकना पड़ा था। 1895 से 1900 तक उनके नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ भीषण संघर्ष ने ब्रिटिश हुकूमत को छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट 1908 बनाकर आदिवासियों- मूलवासियों के जल जंगल जमीन और जीवन की रक्षार्थ कानून बनाने के लिए मजबूर किया था। बिरसा मुंडा की तरह झारखंड के बाकी भूभाग- संताल परगना में महान वीर शहीद सिदो मुर्मू के अद्भुत नेतृत्व ने 30 जून 1855 (संताल हूल) के हुंकार से अंग्रेजों को 22 दिसंबर 1855 को संताल परगना टेनेंसी एक्ट के निर्माण और संताल परगना प्रदेश के गठन के लिए मजबूर किया था। सीएनटी और एसपीटी कानून नहीं होते तो शायद अब तक झारखंड की आदिवासी आबादी बिल्कुल विलुप्त हो जाती।

Birsa Jayanti

बिरसा मुंडा (उलगुलान) और सिदो मुर्मू  (हूल) की याद में झारखंड और बृहद झारखंड क्षेत्र में जयंती और पुण्यतिथि का पालन नेताओं और जन संगठनों द्वारा किया जाता रहा है। बड़े-बड़े भाषण और उद्गार व्यक्त किए जाते हैं। उनके मार्गदर्शन पर चलने की बात दोहराई जाती है। मगर क्या सीएनटी/ एसपीटी कानूनों के लिए सर्वस्व न्योछावर और जीवन तक बलिदान करने वालों के नाम पर कोई ईमानदार प्रयास हुए हैं ? शायद नहीं। दोनों महान शहीदों के वंशजों की खस्ताहाल से रूबरू होना पड़ता है, शर्म से सर झुक जाता है। स्वीकार करना पड़ेगा कि नेताओं और जनता ने महान शहीदों को अबतक अपमानित ही किया है।

शहीदों के बलिदानों का प्रतिफल सीएनटी/ एसपीटी कानूनों को बचाने की जगह बेचने का काम लगभग झारखंड के सभी मुख्यमंत्रियों ने किया है।   पूंजीपतियों की दबाव में अभी भी यह जारी है। प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा था सीएनटी / एसपीटी कानून बहुत पुराने हो चले हैं। इसमें संशोधन किया जाए ताकि आदिवासी अपनी जमीन करोड़ों में बेचकर मुंबई में मौज कर सकें। अर्जुन मुंडा - हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ मुकदमा ( W-PIL758/ 2011 dt 4.2.11) कर हमने सीएनटी /एसपीटी कानून को बचाया। रघुवर दास के खिलाफ आंदोलन और मुकदमा ( W-PIL 6595/ 2016 dt 17.11.2016) कर सीएनटी/ एसपीटी कानून बचाया। अभी झारखंड विधानसभा में 23 मार्च 2021 को हेमंत सोरेन सरकार द्वारा सीएनटी/ एसपीटी कानून को कमजोर करने वाली ( लैंड पूल ) बिल पास किया। जिसका त्वरित विरोध 31मार्च 2021को माननीय राज्यपाल, झारखंड को मिलकर किया है। इस गंभीर सवाल पर अबतक केवल पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो, जमशेदपुर ने विरोध किया है। झारखंड गठन से अब तक सीएनटी /एसपीटी कानूनों का उल्लंघन जारी है। जमीन लूट जारी है। पक्ष- विपक्ष के अधिकांश नेता इसमे चुप्पी साध लेते हैं। इन मामलों पर केवल मान्य विधायक बंधु तिर्की सक्रिय दिखते हैं। हेमंत सरकार का टीएसी पर हालिया गलत संशोधन भी CNT / SPT को कमजोर करने जैसा है।

Birsa Jayanti

महान शहीदों बिरसा मुंडा और सिदो मुर्म के गांव के वंशजों के साथ मिलने का अनेक अवसर मिला है। उनकी हालत देखकर दुख होता है। रघुवर दास के सीएनटी/ एसपीटी में गलत संशोधन के खिलाफ बिरसा मुंडा के जन्म स्थल उलीहातू से 12.12.2016 को प्रारंभ कर सिदो मुर्मू के जन्म स्थल भोगनाडीह तक 22.12.2016 को किए गए राज्यव्यापी मोटरसाईकिल जन जागरण रैली के दौरान हुई मुलाकातों से दर्द होता है। कहा जा सकता है कि आजतक दोनों वंशजों के परिजनों के शिक्षा ,स्वास्थ्य, रोजगार, सुरक्षा ,सम्मान, समृद्धि आदि के लिए दिल से किसी ने कुछ भी नहीं किया  है। यह शहीदों का अपमान है। हमने 12.1.2017 को उनके सहयोग के लिए भारत के मान्य राष्ट्रपति को और  3.9.2020, 26.9.2020, 31.3.2021 को मान्य राजपाल,झारखंड को और 23.8.2020 को मान्य मुख्यमंत्री, झारखंड को भी पत्र लिखकर  सहयोग के लिए निवेदन किया है कि दोनों वंशजों के परिजनों के लिए दो ट्रस्टों का गठन किया जाए और प्रत्येक ट्रस्ट के लिए एक सौ करोड़ रुपयों का फिक्स डिपोजिट डाल दिया जाए। जिसके इंटरेस्ट से इनको आजीवन सहयोग मिल सकता है। मगर न नेताओं, न जन संगठनों, न जनता ने अब तक इस तरफ ध्यान दिया है। अभी 12 जून 2020 को सिदो मुर्मू की छठी पीढ़ी के रामेश्वर मुर्मू की संदिग्ध मौत, जो अपने भोगनाडीह गांव में हो गई थी  पर सीबीआई जांच अब तक लंबित है। रामेश्वर मुर्मू की विधवा पत्नी कपरो किस्कू और तीन छोटे बच्चों का अब कोई सहारा नहीं है। अतएव तत्कालीक रूप से आदिवासी  सेंगेल अभियान एक वर्ष तक प्रतिमाह दस हजार रुपए का सहयोग करने का फैसला किया। जिसकी शुरुआत हम और हमारी पत्नी सुमित्रा मुर्मू ने  22.9.2020 को  भोगनाडीह जाकर सेंगेल के अन्य नेतागण बिमो मुर्मू, कमिश्नर मुर्मू, गया प्रसाद साह आदि के साथ प्रारंभ किया है। जो अब तक जारी है । बिरसा के पोते सुखराम मुंडा और सिदो मुर्मू के वंशज मंडल मुर्मू को हमारे प्रयासों की जानकारी है।

बिरसा के शहीदी दिवस पर सभी नेताओं और जनता से आह्वान है बिरसा के सपनों की रक्षा और सीएनटी / एसपीटी कानूनों की रक्षा तथा वंशजों को केवल शब्दों से नहीं दिल से साथ देने का संकल्प लें। बिरसा और उनके अनुयायियों ने एकजुटता और संघर्ष हेतु हँड़िया - दारू आदि का भी त्याग कर दिया था। आदिवासी सेंगेल अभियान भी 5 प्रदेशों के आदिवासी बहुल इलाकों में इसको लागू कर रही है। मगर अधिकांश आदिवासी नेता इसके खिलाफ हैं। चूंकि वे हँड़िया - दारू में अपना राजनीतिक ( वोट ) फायदा देखते हैं।दिखावा नहीं दिल से बिरसा मुंडा को नमन।

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