कुँड़ुख तोलोङ सिकि की विकास यात्रा और राजी पड़हा, भारत का उद्घोष
कुँड़ुख भाशा की लिपि तोलोङ सिकि के बारे में कहा जाता है कि यह लिपि, भारतीय आदिवासी आंदोलन एवं झारखण्ड का छात्र आंदोलन की देन है। इस लिपि का शोध एवं अनुसंधान पेशे से चिकित्सक डॉ0 नारायण उराँव द्वारा 1989 में आरंभ किया गया। उन्होंने पहली बार 1993 में सरना नवयुवक संघ, राँची द्वारा आयोजित, करमा पूर्व संध्या के अवसर पर राँची कालेज, राँची के सभागार में प्रदर्शनी हेतु रखा। इस लिपि में पहली प्राथमिक पुस्तक ‘‘कुँड़ुख तोलोङ सिकि अरा बक्क गढ़न’’ के नामक से दिसम्बर 1993 में उशा इंडस्ट्रीज, भागलपुर (बिहार) में छपा और हिजला मेला, दुमका 1994 में, प्रदर्शनी के लिए रखा गया।