KurukhTimes.com

कुँड़ुख़ भाषा की लिपि‚ तोलोंग सिकि है – बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान

ज्ञात हो कि बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ मोरहाबादी‚ राँची के सभागार में “कुँडख़ भाषा-साहित्य-लिपि : दशा और दिशा” विषयक कार्यशाला दिनांक 19 सितम्बर 1998‚ दिन शनिवार को सम्पन्न हुआ। यह कार्यशाला‚ जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ राँची तथा बिहार शि‍क्षा परियोजना‚ रातू‚ रांची के संयुक्त तत्वधान में बुलाया गया था। इस कार्यशाला में जनजातीय कल्याण शोध संस्थान‚ राँची के निदेशक डॉ॰ प्रकाश चन्द्र उराँव‚ बिहार शि‍क्षा परियोजना‚ रातू‚ राँची के निदेशक श्री विनोद किसपोट्टा (आई.ए.एस.)‚ आयकर अधिकारी श्री प्रभात खलखो‚ ए. जी. बिहार‚ राँची के लेखा अधिकारी श्री सरन उराँव‚ राँची विश्वविद्यालय‚ राँची के प्रोफेसर गण में से डॉ॰ करमा उराँव‚ श्रीमती मीना टोप्पो‚ श्री हरि उराँव‚ श्री एलेक्सियुस ख़ाख़ा‚ श्री नारायण भगत‚ समाजसेवी सह शिक्षाविद् डॉ॰ निर्मल मिंज‚ इंजिनियर दुर्गा कच्छप‚ श्री प्रभाकर तिर्की‚ श्री मुरली मनोहर खलखो‚ फा. अगस्तिन केरकेट्टा‚ श्री मंगरा उराँव‚ श्री विवेकानन्द भगत‚ श्री भीखम उराँव तथा तोलोंग सिकि के अन्वेषक डॉ‚ नारायण उराँव ‘सैन्दा’ उपस्थित थे। कार्यशाला का संयोजन‚ शोध संस्थान की ओर से उपनिदेशक श्री सोमा सिंह मुण्डा द्वारा किया गया। यह कार्यशाला सह विचार-गोष्ठी‚ डॉ॰ निर्मल मिंज की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। आरंभ में निदेशक डॉ॰ प्रकाश चन्द्र उराँव ने इस विचार-गोष्ठी की आवश्यहकता एवं उदेश्योंओ पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संस्थान को जनजातीय क्षेत्रों में जनजातीय भाषाओं के माध्यम से प्राथमिक शि‍क्षा दिये जाने हेतु पाठ्य पुस्तक का लेखन‚ अनुवाद तथा प्रकाशन करने का विभागीय निर्देश प्राप्त हुआ है‚ जिसके आलोक में इस गोष्ठी से आवश्यंक दिशा-निर्देश प्राप्त करना है।

-: राँची में सम्पन्न एक कार्यशाला रिर्पोट :-


    इस कार्यशाला में कई महत्वपूर्ण विन्दुओं पर विचार-विमर्श किया गया। परिचर्चा में बातें आयीं कि एक आदिवासी बच्चा‚ जन्म से 5 वर्ष की उम्र तक अपने माता-पिता एवं गांव-समाज में रहते हुए अपनी मातृभाषा में बोलता है‚ गाता है‚ कहानी सुनता एवं सुनाता है। वह अपने जीवन में घट रही बहुत सारी बातें सीख चुका होता है और आधुनिक विद्यालय में प्रवेश से पूर्व ढेर सारा ज्ञान भंडार संजोकर रखता है। परन्तु उसका यह ज्ञान भंडार आधुनिक विद्यालय के प्रथम कक्षा के प्रथम दिन ही शून्य हो जाता है। उस बच्चे को फिर से उन्हीं बातों को नये सिरे से दूसरी भाषा में सीखना पड़ता है। यहीं से उस बच्चे के मन में आदिवासी होने पर हीन ग्रंथि का शि‍कार होना पड़ता हैं और वहीं से आरंभ होती है School droop out जैसी विडम्बना।
    अतएव आदिवासी बच्चे को उसकी अपनी मातृभाषा में ही 1ली से 5वीं कक्षा तक शि‍क्षा दी जाय और हिन्दी एवं अंगरेजी भी आरंभ की जाए‚ जिससे उपरी कक्षा में हिन्दी-अंगरेजी सीखने में मातृभाषा मददगार बनेगी। इसके चलते बच्चों के माता-पिता एवं अभिभावक अपने बच्चों के पढ़ाई में मददगार बन सकेंगे। इसी तरह आने वाले समय में कुँड़ुख़ भाषा के सम्पूर्ण विकास हेतु कुँड़ुख़ भाषा की अपनी लिपि की आवष्यकता होगी‚ जिसे आज इस प्रतिनिधि सभा में सर्वसहमति से निर्णय लिया जाना चाहिए। 
कार्यशाला के अंत में सर्वसहमति से निर्णय लिया गया कि -
1॰ कुँड़ुख़ क्षेत्रों में‚ प्राथमिक शि‍क्षा‚1ली से 5वीं कक्षा तक कुँड़ुख़ माध्यम से ही हो। 
2॰ कुँड़ुख़ भाषा की लिपि‚ तोलोंग सिकि (लिपि) है। इसे केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान‚ मैसुर के निदेशक डॉ॰ फ्रांसिस एक्का तथा पूर्व कुलपति डॉ॰ रामदयाल मुण्डा ने भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वीकृति दी गई है। अतएव इसके पूर्ण विकसित होने तक पढ़ाई में देवनागरी लिपि का भी प्रयोग हो।

आलेख –
सरन उराँव
पूर्व लेखा पदाधिकारी‚
महालेखकार का कार्यालय‚
झारखण्ड‚ राँची।

Sections