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आलेख / Articles

धुमकुडि़या : आदिवासी समाज की आरंभिक सामाजिक पाठशाला (भाग1/3)

इस विशेष अंक का भाग एक नीचे ऑनलाइन पढ़ें नि: शुल्‍क.. 
आप इसे डाउनलोड कर सकते हैं.. 

 

धुमकुडि़या भाग-2 https://kurukhtimes.com/node/380
धुमकुडि़या भाग-3 https://kurukhtimes.com/node/381

परम्‍परागत ग्रामसभा पड़हा बेलपंच्‍चा सामाजिक न्‍याय पंच - Digital

परम्‍परागत ग्रामसभा पड़हा बेलपंच्‍चा सामाजिक न्‍याय पंच पर विशेष कवरेज। इस विशेष अंक को यहां नीचे पीडीएफ में पढ़ सकते हैं। आप चाहें तो इसे यहीं से डाउनलोड भी कर सकते हैं।   

इंटरमीडियट काउंसिल, रांची विवि एवं कुंड़ुंंख समाज का अन्‍तर्द्वन्‍द्व : नीतू साक्षी टोप्‍पो

शोधार्थी नीतू साक्षी टोप्‍पो का पठनीय आलेख जिसमें कुंड़ुंख भाषा एवं लिपि को लेकर झारखंड अधिविद्य परिषद, रांची विश्‍वविद्यालय के कुंड़ुंख भाषा विभाग और कुड़ुंख भाषा-भाषी उरांव समाज के अंतर्द्वन्‍द्व को विस्‍तार से बताया गया है। पूरा आलख पढ़ें नीचे पीडीएफ में.. 

जमशेदपुर में तोलोंग सिकि प्रशिक्षण शिविर का अनुभव साझा किया रोहतास (बिहार) के आदिवासियों ने.. 

यह  मार्मिक आलेख एक प्रशिक्षु का है जिन्‍होंने पिछले दिनों जमशेदुपर में आयोजित तोलोंग सिकि प्रशिक्षण शिविर में अपनी मंडली के साथ हिस्‍सा लेकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। जरूर पढि़ये और अपनी प्रतिक्रिया दीजिये.. 

कुँडुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि, लिपि के प्रचार-प्रसार की उलझने और चुनौतियाँ

विदित है कि कुँडुख़़ भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि के विकास में देश का आदिवासी आन्दोलन तथा झारखण्ड अलग प्रांत आन्दोलन का छात्र आन्दोलन की भूमिका उल्लेखनीय रही है। इसके वाबजूद कुँडुख़ तोलोंग सिकि के प्रचार-प्रसार में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। वैसे पेशे से चिकित्सक डा० नारायण उराव के लगन एवं सूझबूझ से कुँडुख़ भाषा की लिपि के रूप में तोलोंग सिकि, लिपि को सामाजिक मान्यता मिल पायी और सामाजिक चिंतकों तथा बुद्धिजीवियों के मार्गदर्शन से झारखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2003 में कुँडुख़ भाषा की लिपि के रूप में स्वीकार कर लिया गया। ये सभी बातें होते हुए कुँडुख़ भाषा एवं लिपि के अग्रेतर विकास के क्रम में

आदिवासी समाज में सच और झूठ के बीच ईर्ष्या द्वेष की दीवार

ईर्ष्या द्वेष और मैजिकल माइंडसेट आदिवासी समाज और खासकर संताल समाज में इतना ज्यादा है कि भले सच्चाई दब जाए ? समाज मिट जाए ? मगर हम किसी को उसकी मेहनत, मेरिट और सफलता का श्रेय नहीं देंगे ? क्यों देंगे ?

आदिवासी शोध एवं सामाजिक सशक्तिकरण अभियान के तहत व्याख्यान एवं परिचर्चा श्रृंखला

उराँव समाज में पारंपरिक विवाह (बेंज्जा) एवं विवाह विच्छेद (बेंज्जा बिहोड़) और न्यायालय व्यवस्था में वर्तमान चुनौतियाँ" विषयक श्रृंखला परिचर्चा का द्वितीय बैठक आदिवासी कॉलेज छात्रावास के पुस्तकालय कक्ष में आयोजन किया गया। जिसमें निम्न गणमान्य लोगों की अहम उपस्थिति रही :- डॉ नारायण भगत (अध्यक्ष, कुँड़ुख साहित्य अकादमी, राँची), श्रीमती महामनी कुमारी उराँव, (सहायक प्राध्यापक, मारवाड़ी काॅलेज राँची), प्रो• रामचन्द्र उराँव, श्री सरन उराँव (संरक्षक, चाला अखड़ा खोंड़हा, हेहेल,राँची), श्री जिता उराँव (अध्यक्ष,अद्दी अखड़ा,राँची), बहुरा उरांव , डाॅ. विनीत भगत, श्री फूलदेव भगत, जीता उरांव, डॉ.

प्रकृति का पारिस्थितिकी तंत्र कैसे काम करता है, बताया भेडि़यों ने..

अगर आपको ये समझना है कि एको सिस्टम यानि हमारी प्रकृति का पारिस्थितिकी तंत्र कैसे काम करता है तो आपको अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क के उदाहरण से इसे समझना चाहिए..
चूँकि हमारा एको सिस्टम एक जटिल कार्यप्रणाली है जिसे आप अपनी आखों से देखकर कभी समझ नहीं सकते हैं.. आप ये कभी नहीं समझ पायेंगे कि जंगल, मैदान, नदी, पेड़ पौधे और जानवर कैसे मिलकर हमारे पारिस्थितकी तंत्र का निर्माण करते हैं, इसलिए इसे आपको इस उदाहरण से समझना होगा. अमेरिका का येलोस्टोन नेशनल पार्क दुनिया का सबसे बड़ा संरक्षित वन्य जीवन का स्थान है..

गांव-समाज में सुधार, एकता और एजेंडा से आदिवासी बच सकते हैं - सालखन मुर्मू

संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित 1994 से  आदिवासी अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी आदि को समझने, सहयोग करने और संवर्धन करने हेतु दुनिया भर में विभिन्न देश और आदिवासी 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस  मनाते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 13 सितंबर 2007 को विश्व आदिवासी अधिकार घोषणा- पत्र भी जारी किया है। संयुक्त राष्ट्र ने 2022 से 2032 के दशक को आदिवासी भाषाओं के संरक्षण का दशक घोषित किया है।आज दुनिया भर में लगभग 7000 भाषाएं हैं जिसके लगभग 40% भाषाएं विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं, और उसमें सर्वाधिक आदिवासी भाषाएं डेंजर जोन में हैं।

पिता की संपत्ति पर बेटी का अधिकार : एक उराँव आदिवासी महिला की कलम से

देश की आजादी के बाद भारत में नया संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और कई पुराने छोटे-बड़े रियासत एक झण्डे के नीचे आ गये। इस नव निर्माण में लोगों के बीच, संविधान बनने के पूर्व से चले आ रहे हिन्दु पर्सनल लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, ईसाई विवाह कानुन इत्‍यादि सामाजिक एवं सम्प्रदायिक कानून नये संविधान में यथावत स्वीकार कर लिया गया। भारतीय जनजाति समूह क्षेत्र में भी 5वीं एवं 6वीं अनुसूचित क्षेत्र के नाम से विषेष प्रशासनिक क्षेत्र निर्धारित किया गया। इन्ही 5वीं अनुसूची क्षेत्र के अन्तर्गत उराँव (कुँड़ुख़) जनजाति के नाम से देश के कई हिस्से में निवासरत है। इनकी अपनी भाषा, लिपि, संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पर