साम्राज्यवादी धर्मों का आक्रमण और बिखरों को समेटते प्राकृतिक आदिवासी
पहले, प्रथम आदिवासी और प्रकृति दोनों एक ही बात थी. कोई भी एक को दूसरे की बिना कल्पना नहीं कर सकते थे. आज के समय में थोड़ा बदलाव आया भी है तो आदिवासी और प्रकृति को आप अन्योन्याश्रिता के तौर पर देख सकते हैं, जो की अंधाधुंध औद्योगीकरण और शहरीकरण के प्रभाव में थोड़ा कमजोर हुआ है. आदिवासियों का प्रकृति के साथ इसी सामंजस्यता, अन्योन्याश्रिता, सहोदरता को दर्शाता है - 'सरना' का अस्तित्व. 'सरना' के आविर्भाव के बारे में काफी कुछ कहा और सुना जा चुका है कि आदिवासी कोई भी मीटिंग और महत्वपूर्ण काम करने से पहले तीर (सर) छोड़ते थे.