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आलेख / Articles

बरा नाम चिहुँट ननोत (आइये हमलोग प्रयास करें)

भइया—बहीन बगारो‚ ओन्टेर कत्थाद तेंग्गइना अरा बअना र’ई का बरना 2022-2032 चान स्वदेशी भाषा ही अंतर्राष्ट्रीय दशक घोषणा मंजकी र'ई (UNESCO Regional consultation Asia on Global Action Plan for International Decade of Indigenous Languages (IDIL) 2022-2032.( 10-11 May 2021.) 

कुँड़ुख़ व तोलोंग सिकि पर क्‍या कहा था डॉ मुन्‍डा व डॉ मिंज ने

यह आलेख पद्मश्री डॉ रामदयाल मुण्डा एवं साहित्य अकादमी सम्मान (कुँड़ुख़ भाषा) से सम्मानित डॉ निर्मल मिंज का कुँड़ुख़ भाषा एवं तोलोंग सिकि के विकास में उनके योगदान एवं उनके विचार को केंद्रित करके लिखा गया है। डॉ मुण्‍डा ने कहा था- 'हमारे देश के आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं के लिए एक सामान्य लिपि विकसित करने के डॉ. नारायण उरांव के प्रयासों से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। तोलोंग नाम उनमें से अधिकांश को स्वीकार्य होगा और इसे लिखने की शैली उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं के अनुरूप है।...' उधर डॉ मिंज का कथन था- 'डॉ.

झारखंडी शिक्षाविद् डॉ निर्मल मिंज जिन्होंने आदिवासी भाषाओं को पढ़ने पढ़ाने का मौका दिया

यह सत्तर के बाद का समय था, जब डॉ. निर्मल मिंजअक्सर संत जेवियर कॉलेज आते-जाते दिखाई पड़ते थे. उनके बारे जानकारी मिलती थी-अनुशासनप्रियके साथ-साथ झारखंड के भाषा संस्कृति के विकास के लिए उत्सुक हैं.यही कारण था कि झारखंड में नौ झारखंडी भाषाओं की पढ़ाई अपने कॉलेज में शुरू करने का साहस एवं दूरदरर्शी निर्णय उन्होंने लिया. बाद में ‘वीर भारत तलवार’ के साथ झारखंडी संस्कृति, भाषा, इतिहास आदि के विकास के लिए उन्होंने अग्रणी भूमिका निभायी और ‘झारखंडी बुद्धिजीवी परिषद’ का गठन किया जिसके वे अध्यक्ष थे.

कोलकाता कुँड़ुख़ बकलुरिया खोड़हा गही कुंदुरना अरा परदना

चान 1950 नु एम्मबस बकरा कोचा (टांेगो) जिला: गुमला (झारखण्ड) अरा इंग्गयो ही पद्दा, चैनपुर, गुमला बेजरार ती नुकरी खतरी उत्तर पानियलगुड़ी, अलिपुरद्वार जंक्षन, जलपाईगुड़ी (पष्चिम बंगाल) नु डेरा बसा नंज्जर। इंग्गयो, निर्मला गल्र्स हाई स्कूल, दमनपुर मिषन नु मस्टारिन रहचा। इसता पद्दा नुम एंगहय कुंदुरना मंज्जा। पद्दा-ख़ेप्पा नु नन्ना जातियर सादरी, बंगला, हिन्दी, बग्गे कछनखरआ लगियर। कुँड़ुख़ ही बोल-चाल माल रहचा। अयंग-बंग तम्हंय मझि नु उर्मी बारी कुँड़ुख़ दिम कछनखरआ लगियर। कुँड़ुख़ ही महबन बुझुरआ लगियर। असतला परिवेष चड्डे कुँड़ुख़ भखा सिखिरना मल मंज्जा। ओरे नु मिषनरी कोनभेन्ट, ती पढ़ाई नंजकन, तसले लाॅरेटो काॅलेज

आदिवासी त्यौहार मनते रहें ... ताकि धरती की उर्वरता, निर्मलता बची रहे !

आज संपूर्ण विश्व में आदिवासियों के जीवन-व्यवहार, पर्व-त्यौहार, इतिहास, भोजन, रहन-सहन और भाषा, संस्कृति का अध्ययन किया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि पहले इनका अध्ययन नहीं किया जा रहा था. यूरोपीय मानव-विज्ञानइन्हें कभी सब-ह्यूमन कह रहा था और लोग इनके नरभक्षी होने, इनकी निर्वस्त्रता, निरक्षरता, गरीबी, विचित्रता को कौतुहलवश देख रहे थे, उन्हें पिछड़ा, निम्न्नस्तरीय बताने के लिए कई सारे मापदंड तैयार कर रहे थे. वहीं सन् 1994 से, दो बार संयुक्त राष्ट्र संघ ने आदिवासी दशक के रूप में मनाया और दुनिया भर में विभिन्न तरह के कार्यक्रम आदि आयोजित किए गए.

तोलोंग सिक‍ि पठन-पाठन हेतु आवश्‍यक निर्देश

तोलोंग सिकि (लिपि) एक वर्णात्‍मक लिपि है। इसे 'रोमन लिपि' की तरह एक के बाद एक करके लिखा जाता है। यह 'देवनागरी लिपि' में मात्रा चिन्‍ह लगाने की परंपरा से मुक्‍त है। इस लिपि से किसी शब्‍द को उसके शब्‍द-खंड (Syallable) के आधार पर लिखा एवं पढ़ा जाता है। जैसे- कमहड़। इस शब्‍द में कम् + हड़ दो शब्‍द खंड है।

यह पूरा आलेख पढ़ने के लिए डाउनलोड करें यहां :  तोलोंग सिक‍ि पठन-पाठन हेतु आवश्‍यक निर्देश

 

संस्कृत-हिन्दी शब्दों को तोलोंग सिकि में लिप्यन्तरण हेतु जानकारियाँ

ध्यातब्य हो कि आदिवासी भाषाओं में से कुँड़ुख़ भाषा की अपनी विशिष्ट शैली एवं विशेषताएँ हैं। इस विशिष्ट पहचान पर आधारित इस भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि विकसित हुर्इ है। यह तथ्य है कि कुँड़ुख़ भाषा में कर्इ ध्वनियाँ है जिसे दिखलाने के लिए रोमन एवं देवनागरी लिपि में लिपि चिन्ह नहीं हैं। रोमन लिपि के माध्यम से अन्य भाषाओं को लिखने के लिए 2nd Oriental Congress, JENEVA, 1900 AD में किये गये मानकीकरण के आधार इस क्षेत्र की भाषाओं पर कर्इ साहित्य रचे गये। परन्तु, देवनागरी लिपि में आदिवासी भाषाओं को लिखने के लिए हिन्दी प्रचारिणी सभा या देवनागरी प्रचारिणी सभा आदि द्वारा किसी तरह का मानकीकरण किया गया हो, ऐसा इ

देवनागरी में कुँड़ुख़ भाषा की लेखन समस्या और समाधान

कुँड़ुख़ भाषा की लेखन समस्या और गिनती को सुगम एवं सरल करने हेतु अब तक कर्इ पहल हुए। इस क्रम में दिनांक 26.08.2000 को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, राँची विश्‍वविद्यालय, राँची के सभागार में सम्पन्न हुए कार्यशाला में शून्य (0) का नामकरण ‘निदि’ रखा गया। उसके बाद दिनांक 24.09.2001 को पुन: जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के सभागार में कुँड़ुख़ गिनती मानकीकरण संबंधी दूसरी बैठक हुर्इ, जिसमें आम सहमति से निर्णय लिया गया कि शून्य के लिए प्रस्तावित नामकरण ‘निदि’ को स्वीकार किया जाय तथा शून्य वाली बड़ी संख्या का नाम दैनिक कार्यों के उपयोग में आने वाली वस्तुओं के नामकरण के समरूप गिनती के नामकरण को रखे

अनेक बाधाओं के बावजूद कीर्तिमान की मुख्‍य धारा में गोते लगा रहे हैं आदिवासी

जब हम आदिवासी युवाओं की ओर देखते हैं तो लगता है उनके सामने बाधाओं की गहरी खाई और कंटीली राह खड़ी कर दी गई है। पढ़ने-लिखने, छात्रवृत्ति, नौकरी, आरक्षण से लेकर भाषा, संस्कृति, धर्म, जीवन-शैली, खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा आदि को लेकर इनके सामने इतने प्रश्न और समस्याएं खड़ी कर दी जाती हैं बेचारे का माथा चकरा जाता है कि वह क्या करे क्या न करे। वह कई बार दिग्भ्रमित हो जाता है। कई बार दवाब में आकर आदिवासियों के पारंपरिक कमजोरी – शराबखोरी का शिकार हो जाता है। वह अपने गैर-आदिवासी मित्रों की तरह कई बार पढ़ाई कर नहीं पाता, बोल नहीं पाता। अच्छे अंक ला नहीं पाता। उनकी तरह ठाठ से रह नहीं पाता तो निश्चय ही